भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां जम्मू-कश्मीर की वादियां जहां एक ओर देश-विदेश से आए पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं तो वहीं दूसरी ओर आतंकवाद की छाया ने इस सुंदरता पर कई बार काली लकीर खींची है। हाल ही में पहलगाम क्षेत्र में हुए आतंकी हमले ने न केवल स्थानीय जनमानस को झकझोर दिया, बल्कि राज्य के पर्यटन उद्योग को भी एक गहरा आघात पहुंचाया है। यह घटना तब सामने आई जब पर्यटन का चरम सीजन अपने पूरे यौवन पर था और लाखों पर्यटक कश्मीर की खूबसूरती में खोने पहुंचे थे।पहलगाम, जो कि अमरनाथ यात्रा का प्रमुख पड़ाव भी है, हमेशा से आतंकियों के रडार पर रहा है। बीते सप्ताह एक पर्यटक वाहन को निशाना बनाकर किए गए ग्रेनेड हमले में तीन लोग घायल हो गए, जिनमें दो पर्यटक और एक स्थानीय चालक शामिल हैं। इस हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े गुट ने ली है। पुलिस और सुरक्षा बलों ने तत्परता से कार्रवाई करते हुए सर्च ऑपरेशन शुरू किया है, लेकिन यह हमला स्पष्ट करता है कि कश्मीर घाटी अभी भी असुरक्षा की चपेट से बाहर नहीं निकल सकी है। आइये बात करते हैं पर्यटन उद्योग पर तात्कालिक प्रभाव के बारे में। हमले के तुरंत बाद ही कई राज्यों से आए पर्यटकों ने अपनी बुकिंग रद्द कर दीं। प्रमुख ट्रैवल पोर्टलों के आंकड़े बताते हैं कि केवल 48 घंटे में ही करीब 27% बुकिंग रद्द हुईं। होटल व्यवसायी, टैक्सी चालक, हाउसबोट मालिक, और स्थानीय दुकानदारों में एक बार फिर चिंता की लहर दौड़ गई है। कश्मीर का पर्यटन उद्योग जो धीरे-धीरे कोविड-19 के प्रभाव से उबर रहा था, उसके सामने एक बार फिर अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया है। कश्मीर का एक बड़ा वर्ग, खासकर युवावर्ग, पर्यटन से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। गाइड, होटल स्टाफ, शिल्पकार, हस्तशिल्प विक्रेता, ड्राइवर, कुक और अन्य अनेक पेशेवर अपनी रोज़ी-रोटी इस उद्योग पर निर्भर करते हैं। हमले के बाद होटल्स में रद्द बुकिंग, घटती पर्यटक आवाजाही, और अंतरराज्यीय ट्रैवल एजेंसियों की चेतावनी ने हजारों परिवारों की आजीविका को संकट में डाल दिया है। गर हम भूतकाल की बात करें तो 1990 के दशक में जब कश्मीर चरमपंथ की चपेट में आया था, तब पर्यटन उद्योग पूरी तरह से चरमरा गया था। पहलगाम, गुलमर्ग, सोनमर्ग, श्रीनगर जैसे क्षेत्र पर्यटकों के लिए प्रतिबंधित हो गए थे। अब, दो दशक बाद कश्मीर के सामान्यीकरण की उम्मीदें फिर से डगमगाने लगी हैं। इससे न केवल व्यवसायियों में डर है, बल्कि आम नागरिकों के मनोविज्ञान पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। इतना ही नहीं पर्यटकों में असुरक्षा की भावना भी पैदा हुई है। हालांकि केंद्र सरकार और राज्य प्रशासन लगातार यह दावा कर रहे हैं कि कश्मीर अब पूरी तरह सुरक्षित है, लेकिन ऐसी घटनाएं पर्यटकों के विश्वास को कमजोर करती हैं। देश-विदेश से आने वाले पर्यटक अब अपनी यात्रा योजनाओं पर पुनर्विचार करने लगे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में कई ट्रैवल एजेंसियों ने बताया कि पिछले हमले के बाद से "कश्मीर ट्रिप्स" को लेकर क्वेरीज़ में 40% तक की गिरावट दर्ज की गई है। अब बात करते हैं सरकार की प्रतिक्रिया और नीतिगत उपायों की। राज्य और केंद्र सरकार ने इस हमले की निंदा करते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया है। साथ ही, सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने, संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त बलों की तैनाती, और सीसीटीवी निगरानी जैसे कदमों की घोषणा की गई है। पर्यटन को पुनः प्रोत्साहित करने के लिए विशेष पैकेज और छूट की योजना भी बनाई जा रही है। यह पहली बार नहीं हुआ है कि पर्यटन और आतंकवाद आपस में टकराये होँ। कश्मीर में आतंकवादियों का मुख्य उद्देश्य है अस्थिरता फैलाना और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि को नुकसान पहुंचाना। पर्यटन जैसे संवेदनशील क्षेत्र को निशाना बनाकर वे न केवल आर्थिक नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि भारत की आंतरिक संप्रभुता को भी चुनौती देते हैं। यह हमला भी इसी रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है। यह भी सच है कि स्थानीय लोगों के लिए पर्यटन केवल व्यवसाय नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। इनका मानना है कि सरकार को केवल सुरक्षा उपायों पर ही नहीं, बल्कि स्थानीय युवाओं को रोजगार व शिक्षा के अवसर प्रदान करने पर भी ध्यान देना चाहिए ताकि आतंकवाद की जड़ों को कमजोर किया जा सके। भविष्य के मद्देनजर अब वैकल्पिक उपाय और पुनर्स्थापन की आवश्यकता है। घाटी में ड्रोन, स्मार्ट कैमरा, जीपीएस ट्रैकिंग जैसे आधुनिक उपकरणों का उपयोग बढ़ाया जाना चाहिए।पर्यटन स्थलों की सुरक्षा में स्थानीय लोगों को भागीदार बनाना चाहिए ताकि वे संदिग्ध गतिविधियों की रिपोर्ट कर सकें।पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए विशेष बीमा योजनाएं चलाई जा सकती हैं जो किसी भी अप्रिय घटना में उनकी क्षतिपूर्ति करें।सोशल मीडिया और टीवी माध्यमों से यह प्रचारित किया जाना चाहिए कि कश्मीर अब पर्यटकों के लिए सुरक्षित है। ऐतिहासिक रूप से यह देखा गया है कि जब-जब पर्यटन ने कश्मीर में प्रगति की है, तब-तब आतंकवादियों को मुंह की खानी पड़ी है। इसका मुख्य कारण यह है कि पर्यटन स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल देता है और युवाओं को मुख्यधारा में लाता है। अतः यह आवश्यक है कि आतंकवाद से लड़ने के साथ-साथ पर्यटन को भी राष्ट्रीय सुरक्षा का अंग मानकर उसकी रक्षा की जाए। अंत में कह सकते हैं कि पहलगाम आतंकी हमला सिर्फ एक क्षेत्रीय घटना नहीं है, यह भारत की आंतरिक सुरक्षा, आर्थिक स्थायित्व और सामाजिक समरसता पर एक गहरी चोट है। इसे केवल सुरक्षा की दृष्टि से नहीं, बल्कि एक व्यापक दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है जिसमें पर्यटन को एक रणनीतिक संसाधन मानते हुए, उसके पुनर्जीवन की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं। केवल तभी कश्मीर सचमुच “धरती का स्वर्ग” कहलाने का हकदार बन सकेगा।