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संपादकीय

अब भारतीय शिक्षा प्रणाली में केवल नीतियाँ पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि उनके कुशल क्रियान्वयन और ज़मीनी बदलाव की खासी जरूरत है वह भी वक्तानुसार

April 16, 2025 09:04 PM

भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़

जी हां भारत की शिक्षा प्रणाली इस समय संक्रमण काल से गुज़र रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू होने के पाँच साल बाद भी ज़मीनी स्तर पर कई अहम चुनौतियाँ जस की तस बनी हुई हैं। हालिया रिपोर्टों के अनुसार कक्षा 3 के लगभग 75% छात्र ग्रेड 2 के स्तर की पाठ्य सामग्री को समझने में असमर्थ हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि रटंत प्रणाली और शिक्षण गुणवत्ता की कमी अब भी एक बड़ी बाधा है। सरकारी स्कूलों में प्रणालीगत खामियाँ, सीमित संसाधन और शिक्षक प्रशिक्षण की कमी जैसे मुद्दे आज भी प्रभावी सुधारों में रोड़ा बने हुए हैं।आइये बात करते हैं डिजिटल क्रांति और ऑनलाइन शिक्षा के उदय की। कोविड-19 महामारी के बाद भारत में डिजिटल शिक्षा के प्रति झुकाव काफी तेज़ी से बढ़ा है। ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफॉर्म, एडटेक स्टार्टअप्स और सरकारी योजनाएँ जैसे पी एम ई-विद्या और दीक्षा ने डिजिटल पहुंच को गांव-गांव तक पहुँचाने में योगदान दिया है। रिपोर्ट के अनुसार 2022 तक भारत के एडटेक बाज़ार में $3.94 बिलियन का निवेश हुआ। वहीं, 2025 तक इसके $2.28 बिलियन की वृद्धि के साथ 20% की CAGR से बढ़ने का अनुमान है।हालाँकि, यह भी सच है कि देश के एक बड़े हिस्से, विशेषकर ग्रामीण भारत, में आज भी डिजिटल संसाधनों की भारी कमी है, जो शिक्षा में डिजिटल डिवाइड को दर्शाता है। नेप 2020 में स्किल-बेस्ड एजुकेशन को मुख्यधारा में लाने पर ज़ोर दिया गया है। उद्देश्य है युवाओं को उद्योगों के अनुकूल बनाना और रोजगार योग्य बनाना।कौशल भारत मिशन के अंतर्गत लाखों युवाओं को प्रशिक्षण दिया गया है। केंद्रीय बजट 2025-26 में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (ए आई) में उत्कृष्टता के लिए ₹500 करोड़ का प्रावधान किया गया। यह प्रयास भारत को एक वैश्विक प्रतिभा केंद्र बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण क़दम है।भारत सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी देकर वैश्विक भागीदारी को आकर्षित किया है।2000 से 2024 के बीच ₹83,550 करोड़ का विदेशी निवेश इस क्षेत्र में आया। अनुमान है कि 2025 तक भारत का शिक्षा बाज़ार $225 बिलियन तक पहुँच सकता है।निजी क्षेत्र के इस सक्रिय प्रवेश ने गुणवत्ता, नवाचार और बुनियादी ढांचे के विकास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।यह सच है कि पिछले कुछ वर्षों में भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।2025 तक भारत में 52,538 कॉलेज और 1,362 विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।सकल नामांकन अनुपात (जी ई आर) 28.4% तक पहुँच गया है, जो उच्च शिक्षा की व्यापकता को दर्शाता है।इसके साथ ही सरकार राइज़और अटल इनोवेशन मिशन जैसे कार्यक्रमों के ज़रिए अनुसंधान और नवाचार को भी प्रोत्साहन दे रही है। स्टेम शिक्षा (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) में रुचि और निवेश दोनों में वृद्धि हो रही है। नीति आयोग द्वारा स्थापित अटल टिंकरिंग लैब्स देशभर में 8,000 से अधिक स्कूलों में नवाचार को बढ़ावा दे रही हैं। वहीं नेप 2020 के अनुसार क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा पर बल दिया गया है, जिससे स्थानीय संस्कृति और समावेशी शिक्षा को मज़बूती मिली है।आइये बात करते हैं उन प्रमुख चुनौतियों की जो सुधारों को धीमा कर रही हैं। ग्रामीण स्कूलों में पेयजल, बिजली और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव एक बड़ी चिंता है।2023 की रिपोर्ट के अनुसार केवल 47% स्कूलों में पीने का पानी और 53% में लड़कियों के लिए अलग शौचालय उपलब्ध हैं।देशभर में 4,500 से अधिक माध्यमिक विद्यालयों में प्रशिक्षित शिक्षक नहीं हैं। स्टेम विषयों में विशेषज्ञ शिक्षकों की भारी कमी है।भारत शिक्षा पर जी डी पी का सिर्फ 4% खर्च करता है जबकि नेप के अनुसार यह 6% होना चाहिए।आदिवासी और ग्रामीण समुदाय के छात्रों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ना अब भी चुनौती बना हुआ है।एकलव्य मॉडल स्कूलों में भाषा अवरोध प्रमुख समस्या है।नई नीति में योग्यता आधारित शिक्षा की बात कही गई है, लेकिन पारंपरिक परीक्षा प्रणाली से निकलने की गति धीमी है।केवल 47% ग्रामीण छात्र ही उच्च गति इंटरनेट तक पहुँच रखते हैं।स्कूल एकीकरण जैसे नेप के प्रस्तावों को कई राज्य सरकारें चुनौती मानकर धीमा कर रही हैं।यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार 33% लड़कियाँ घरेलू कार्यों के कारण स्कूल छोड़ देती हैं। यह भी सच है कि भारत अन्य देशों से शिक्षा के क्षेत्र में खासा सीख सकता है। फिनलैंड: शिक्षकों को उच्च दर्जा और स्वायत्तता दी जाती है। भारत में भी शिक्षक प्रशिक्षण और स्वायत्तता को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है। सिंगापुर: परियोजना आधारित शिक्षण को अपनाकर छात्रों में समस्या सुलझाने की क्षमता बढ़ाई गई है। यह मॉडल भारत के लिए भी अनुकरणीय हो सकता है।दक्षिण कोरिया: वहाँ शिक्षा बजट जीडीपी का 7% है और डिजिटल शिक्षा व्यापक स्तर पर अपनाई गई है।अंत में कह सकते हैं कि भारत की शिक्षा प्रणाली अब उस मोड़ पर है जहाँ केवल नीतियाँ पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि उनके कुशल क्रियान्वयन और ज़मीनी बदलाव की आवश्यकता है। शिक्षकों की गुणवत्ता, डिजिटल पहुँच, वित्तपोषण और सामाजिक समावेशन जैसे पहलुओं पर केंद्रित प्रयासों से ही "शिक्षा का अधिकार" वास्तव में "शिक्षा की गुणवत्ता का अधिकार" बन पाएगा।शिक्षा सुधार भारत के लिए केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता है – ताकि यह राष्ट्र अपनी अगली पीढ़ी को भविष्य के लिए सक्षम बना सके।

 

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