भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां हाल ही में म्यांमार में आए विनाशकारी भूकंप ने पूरे विश्व में तबाही मचा दी है। अब तक 150 लोगों के मरने के समाचार मिले हैं, जबकि 1000 से अधिक लोगों के घायल होने का खुलासा हुआ है। संपादकीय लिखते समय पता चला है कि सेना और आपातकालीन सेवाओं ने मृतकों की संख्या में और भी इजाफा होने की बात कही है, क्योंकि बचाव कार्यों के दौरान भी कई लोगों का मलबे के नीचे दबे होने का अनुमान है। विशेषज्ञों के मुताबिक भूकंप की तीव्रता 7.2 रिएक्टर स्केल मापी गई, जिसका केंद्र म्यांमार के सागाइंग क्षेत्र में था। इसके झटके थाईलैंड, भारत, बांग्लादेश और चीन तक महसूस किए गए। कई रिहायशी और व्यावसायिक इमारतें जमींदोज हो गईं। कई प्रमुख सड़कें और पुल क्षतिग्रस्त हो गए, जिससे राहत कार्य बाधित हुआ।कई इलाकों में बिजली आपूर्ति ठप हो गई और संचार नेटवर्क बाधित हो गया। विशेषज्ञों के अनुसार, यह भूकंप टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल के कारण आया। इस क्षेत्र में भविष्य में भी बड़े भूकंप आने की संभावना बनी हुई है। याद रहे भूकंप एक विनाशकारी प्राकृतिक आपदा है, जो अचानक आती है और जीवन तथा संपत्ति को व्यापक नुकसान पहुंचाती है। भूकंप आने के तुरंत बाद स्थानीय प्रशासन, सेना और राहत एजेंसियां सक्रिय हो गईं।सेना और आपातकालीन टीमें मलबे में दबे लोगों को निकालने के लिए तुरंत सक्रिय हो गईं। बेघर हुए लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया और उनके लिए राहत शिविर बनाए गए।घायलों के इलाज के लिए अस्थायी अस्पताल और चिकित्सा शिविर स्थापित किए गए। प्रभावित क्षेत्रों में भोजन और पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की गई। भूकंप पीड़ितों को मानसिक रूप से मजबूत बनाए रखने के लिए परामर्श सेवाएं प्रदान की गईं। यह सच है कि भूकंप आमतौर पर तब आते हैं जब पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटें अचानक खिसक जाती हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया में कई सक्रिय फॉल्ट लाइनें हैं, जिनमें इंडो-बर्मा सबडक्शन ज़ोन शामिल है। भारत भूकंप के भयावह प्रभावों से बचा नहीं रह सका है। यहां भी समय समय पर भूकंप अपना तांडव दिखाता रहता है। आइये बात करते हैं भारत में आये बड़े भूकंपों के बारे में जो हमारे देश के हजारों लोगों की जिंदगीयां लील गये और लाखों को घायल कर गये। वर्ष 1897 में शिलांग मेघालय में 8.0 की तीव्रता से भूकंप आया था जिसमें 1500 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, 1905 में कांगड़ा हिमाचल प्रदेश में 7.8 की तीव्रता से आये भूकंप में 20 हजार से ज्यादा लोग मरे थे, 1934 में बिहार-नेपाल में आये 8.0 की तीव्रता से आये भूकंप ने 10,700 से ज्यादा लोगों को मार डाला था और हजारों को घायल कर दिया था। 1950 में असम-तिब्बत में 8.6 की तेजी से आये भूकंप ने 1526 से ज्यादा लोगों को मार डाला और हजारों को घायल किया था, 1991 में उत्तरकाशी उत्तराखंड में 6.8 की तीव्रता से आये भूकंप में 768 से ज्यादा लोग मरे थे और 5000 से ज्यादा जख्मी हुए थे, 1993 में लातूर महाराष्ट्र में 6.4 की तीव्रता वाले भूकंप ने 9,748 से ज्यादा लोगों को मार डाला और 30 हजार से ज्यादा लोगों को घायल कर दिया, 1999 में चमोली उत्तराखंड में 6.8 की तीव्रता वाले भूकंप ने 103 लोगों को मार डाला और 850 लोगों को घायल कर दिया, 2001 में भुज, गुजरात में 7.7 की तीव्रता वाले भूकंप ने 20000 लोगों की जिंदगीयां छीन ली और 1 लाख 67 हजार लोगों को घायल कर दिया, 2004 में हिंद महासागर में 9.1 की तीव्रता वाली सुनामी ने 12, 405 लोगों को मार डाला और हजारों लोगों को घायल कर दिया, 2005 में कश्मीर में 7.6 की तीव्रता वाले भूकंप ने 1350 लोगों की जान ले ली जबकि 6266लोगों को घायल कर दिया। भारत भूकंप-प्रवण क्षेत्र में आता है, खासकर हिमालयी क्षेत्र, उत्तर और पूर्वोत्तर भारत में भूकंप की संभावना अधिक रहती है। हालांकि आधुनिक तकनीक से भूकंप की तीव्रता और प्रभाव का विश्लेषण किया जा सकता है, लेकिन इसे सटीक रूप से भविष्यवाणी करना अभी भी मुश्किल है। वैज्ञानिक इस दिशा में लगातार शोध कर रहे हैं ताकि भूकंप की पूर्वसूचना मिल सके और नुकसान कम किया जा सके। दूसरी ओर भूकंप के प्रति जागरूकता और बचाव उपाय उतने ही आवश्यक होते हैं जितने कि भूकंप आने के बाद किये जाने वाले बचाव कार्य। आइये बात करते हैं व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर उठाए जाने वाले कदमों के बारे में। भूकंपरोधी निर्माण- हमें नई इमारतों को भूकंपरोधी तकनीकों के अनुसार बनाया जाना चाहिए और पुरानी इमारतों को मजबूत किया जाने चाहिए। इसी प्रकार आपातकालीन योजना भी बनानी चाहिए। परिवार और समुदायों को यह जानना जरूरी है कि भूकंप के समय क्या करना चाहिए। सरकारी नीतियां और प्रशिक्षण पर गौर करना काफी जरूरी है। सरकारों को भूकंप प्रबंधन के लिए ठोस नीतियां बनानी चाहिए और आम नागरिकों को इसके लिए प्रशिक्षित करना चाहिए। आपातकालीन किट तैयार रखनी चाहिए। हर परिवार के पास आवश्यक वस्तुओं से भरा एक आपातकालीन बैग होना चाहिए। भूकंप के दौरान सुरक्षित स्थानों की पहचान पहले से कर लेनी चाहिए। भूकंप आने पर खुले मैदानों या मजबूत संरचनाओं के नीचे छुपना चाहिए। यह भी सच है कि भूकंप के बाद पुनर्निर्माण की कई चुनौतियां देखने को मिल सकती हैं। जैसे पुनर्वास और राहत- भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्निर्माण एक कठिन कार्य होता है। सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को प्रभावित लोगों को स्थायी आश्रय, रोजगार और शिक्षा प्रदान करने के लिए कार्य करना चाहिए। मजबूत बुनियादी ढांचे का निर्माण- भूकंपरोधी इमारतें बनाना, सड़कों और पुलों को मजबूत करना और संचार नेटवर्क को अधिक टिकाऊ बनाना बहुत जरूरी है। शिक्षा और प्रशिक्षण-भूकंप के दौरान बचाव और राहत कार्यों के लिए लोगों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। स्कूलों, कार्यालयों और सार्वजनिक स्थानों पर नियमित रूप से भूकंप ड्रिल कराई जानी चाहिए। सरकारी और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग-भूकंप से निपटने के लिए सरकारों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करना चाहिए और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ाना चाहिए। अंत में कह सकते हैं कि भूकंप से होने वाली तबाही को पूरी तरह से रोकना संभव नहीं है, लेकिन जागरूकता और सतर्कता से इसके प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है। भूकंपरोधी निर्माण, आपातकालीन योजना और सरकारों द्वारा सक्रिय नीतियां इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। यह समय की मांग है कि हम भूकंप से जुड़ी सुरक्षा को प्राथमिकता दें और अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करें।