भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां ये सवाल हम नहीं बल्कि देश का वह हर नागरिक पूछ रहा है जो अपने बेहतर स्वास्थ्य के लिए पर्यावरण मंत्रालय की भरपूर कोशिशों की बाट जोह रहा है। गौरतलब है कि हाल ही में एक संसदीय समिति ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को प्रदूषण नियंत्रण योजना के तहत निधियों के अपर्याप्त उपयोग के लिए कड़ी फटकार लगाई है। संसद में प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में ‘प्रदूषण नियंत्रण’ योजना के तहत मंत्रालय को आवंटित 858 करोड़ रुपये में से मात्र 7.22 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जो कुल बजट का 1% से भी कम है। यह सच है कि देश में वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण के स्तर की निगरानी और सुधार के लिए केंद्र सरकार ने 2018 में ‘प्रदूषण नियंत्रण’ योजना की शुरुआत की थी। यह योजना पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित है और इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) है। एनसीएपी का मुख्य उद्देश्य 2026 तक 131 शहरों में पार्टिकुलेट मैटर 10 (पीएम10) के स्तर को कम करना है, जिससे वायु गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके। योजना के अंतर्गत 82 ऐसे शहरों को चिन्हित किया गया है, जहां वायु गुणवत्ता मानकों का पालन नहीं किया जाता। इन शहरों में प्रदूषण कम करने और स्वच्छ हवा सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने 2019-20 से 2025-26 तक 3,072 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है। समिति ने पाया कि पर्यावरण मंत्रालय द्वारा वार्षिक बजट का भी समुचित उपयोग नहीं किया जा रहा है। 31 जनवरी तक मंत्रालय ने केवल 54% यानी 1,712.48 करोड़ रुपये खर्च किए थे। हालांकि, मंत्रालय के सचिव ने समिति को आश्वासन दिया कि कुल बजट का लगभग 69% उपयोग किया गया है। यह रिपोर्ट यह दर्शाती है कि सरकार की प्रदूषण नियंत्रण नीतियों के क्रियान्वयन में गंभीर खामियां हैं। संसदीय समिति ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेने और बजट के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करने की सिफारिश की है। याद रहे भारत सरकार हर वर्ष प्रदूषण नियंत्रण, पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से संबंधित कार्यक्रमों के लिए बजट आवंटित करती है। इस बजट का उपयोग विभिन्न योजनाओं जैसे वायु प्रदूषण नियंत्रण, जल संरक्षण, वन संरक्षण और सतत विकास परियोजनाओं के लिए किया जाना चाहिए। हालांकि, रिपोर्ट में यह उजागर हुआ कि वित्तीय वर्ष 2023-24 में, पर्यावरण मंत्रालय को जो राशि आवंटित की गई थी, उसमें से मात्र 1% से भी कम खर्च किया गया। यह आंकड़ा यह दर्शाता है कि या तो योजनाओं के कार्यान्वयन में लापरवाही बरती जा रही है या फिर प्रशासनिक स्तर पर कोई बाधा है, जिससे बजट का सही तरीके से उपयोग नहीं हो पा रहा है। गर हम भारत में प्रदूषण की मौजूदा स्थिती की बात करें तो पायेंगे कि भारत में प्रदूषण, विशेष रूप से वायु और जल प्रदूषण, एक गंभीर समस्या बन चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में भारत के कई शहर शामिल हैं। दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी और गाजियाबाद जैसे शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक लगातार खतरनाक स्तर पर बना रहता है। प्रदूषण से संबंधित कई समस्याएं पैदा होती हैं जैसे वायु प्रदूषण – भारत में वायु प्रदूषण का मुख्य कारण औद्योगिक उत्सर्जन, वाहनों से निकलने वाला धुआं, निर्माण कार्यों से उड़ने वाली धूल, पराली जलाने और कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से निकलने वाले जहरीले तत्व हैं। वायु प्रदूषण के कारण लाखों लोग श्वसन तंत्र की बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं। जल प्रदूषण – भारत की प्रमुख नदियाँ, जैसे गंगा और यमुना, लगातार प्रदूषित हो रही हैं। औद्योगिक कचरा, सीवेज और प्लास्टिक कचरे के कारण जल स्रोतों की गुणवत्ता खराब हो रही है, जिससे जल जनित बीमारियाँ फैल रही हैं। भूमि और ठोस कचरा प्रबंधन – देशभर में कचरा प्रबंधन की समस्या गंभीर रूप ले चुकी है। शहरी क्षेत्रों में कचरे का सही निपटान न होने के कारण मिट्टी और भूजल प्रदूषित हो रहे हैं। प्लास्टिक कचरा विशेष रूप से एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। ध्वनि प्रदूषण – शहरी क्षेत्रों में बढ़ते वाहन, निर्माण कार्य और औद्योगिक गतिविधियों के कारण ध्वनि प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है, जिससे मानसिक तनाव और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो रही हैं। यह भी देखने को मिला है कि आखिर फंड का सही इस्तेमाल न होने का क्या कारण है। रिपोर्ट के अनुसार कई योजनाएं कागजों पर बनी रहती हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर उनका कार्यान्वयन कमजोर रहता है। सरकारी योजनाओं में नौकरशाही की धीमी प्रक्रिया और फंड जारी करने की जटिल प्रणाली के कारण आवंटित धन का समय पर उपयोग नहीं हो पाता।सरकार की प्राथमिकताएँ कई बार बदलती रहती हैं, और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता जितनी अन्य विकास परियोजनाओं को। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अन्य संबंधित एजेंसियां फंड का सही तरीके से उपयोग नहीं कर पा रही हैं। सरकारी योजनाओं का पूरा लाभ तभी मिल सकता है जब आम जनता को इनके बारे में पर्याप्त जानकारी हो और वे भी इसमें भाग लें। लेकिन पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी योजनाओं को लेकर जागरूकता की कमी बनी हुई है। आइये गौर करते हैं उक्त समस्या के समाधान के बारे में। प्रदूषण नियंत्रण के लिए आवंटित फंड के उपयोग को पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न स्तरों पर निगरानी एजेंसियों को मजबूत किया जाना चाहिए ताकि योजनाओं का सही कार्यान्वयन हो। प्रदूषण नियंत्रण के प्रयासों में स्थानीय प्रशासन और आम जनता की भागीदारी सुनिश्चित करने से नीतियों को सफलतापूर्वक लागू किया जा सकता है। जिन उद्योगों, कंपनियों या व्यक्तियों द्वारा प्रदूषण फैलाया जा रहा है, उन पर कठोर जुर्माना लगाया जाना चाहिए। लोगों को प्रदूषण के प्रभाव और उससे बचाव के तरीकों के बारे में जागरूक करने के लिए स्कूलों, कॉलेजों और सामाजिक संगठनों को भी जोड़ा जा सकता है। अंत में कह सकते हैं कि भारत में बढ़ते प्रदूषण की समस्या को देखते हुए सरकार द्वारा आवंटित फंड का सही तरीके से उपयोग किया जाना बेहद आवश्यक है। यदि इस स्थिति में सुधार नहीं किया गया, तो प्रदूषण का स्तर और भी गंभीर हो सकता है।