भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां यह बड़े ही दुःख की बात है कि देश की वित्तीय राजधानी मुंबई समेटे महाराष्ट्र राज्य में हाल के महीनों में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा की घटनाओं में खासी वृद्धि देखी गई है। हैरानी की बात है कि उक्त सांप्रदायिक घटनाएं मात्र 3 महीनों के अंतराल के भीतर घटी हैं। एसा लगता है कि यह सुनियोजित रही होंगीं। पुलिस विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, केवल तीन महीनों के भीतर 800 से अधिक सांप्रदायिक घटनाएं दर्ज की गई हैं, जो राज्य की कानून-व्यवस्था के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई हैं। इन घटनाओं में धार्मिक टकराव, झड़पें, अफवाहों के कारण भड़की हिंसा, और विभिन्न समुदायों के बीच बढ़ता तनाव शामिल है। सांप्रदायिक हिंसा और सामाजिक अस्थिरता किसी भी राज्य की शांति और विकास को बाधित कर सकती है। ऐसे में यह समझना आवश्यक हो जाता है कि आखिर इस तरह की घटनाओं के पीछे क्या कारण हैं, कौन-कौन से कारक इसमें योगदान कर रहे हैं, और प्रशासन इसे रोकने के लिए क्या कदम उठा रहा है। आइये समझते हैं सांप्रदायिक घटनाओं में वृद्धि के प्रमुख कारणों को। महाराष्ट्र, जो अपनी सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक समरसता के लिए जाना जाता है, पिछले कुछ वर्षों में बढ़ती सांप्रदायिक घटनाओं से जूझ रहा है। इसके पीछे कई सामाजिक, राजनीतिक और तकनीकी कारण हो सकते हैं।यह सच है कि राजनीतिक दल अक्सर चुनावों के दौरान अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए धर्म और जाति की राजनीति का सहारा लेते हैं। कई बार राजनीतिक दलों द्वारा सांप्रदायिक मुद्दों को हवा दी जाती है, जिससे समाज में तनाव उत्पन्न हो जाता है। चुनावी रैलियों और भाषणों के दौरान नेताओं द्वारा दिए गए भड़काऊ बयान सांप्रदायिक अस्थिरता को बढ़ा सकते हैं।किसी विशेष धर्म या समुदाय के प्रति झुकाव दिखाने वाली नीतियां असंतोष पैदा कर सकती हैं, जिससे तनाव और टकराव की स्थिति बन सकती है। स्थानीय राजनीति में भी धार्मिक ध्रुवीकरण का उपयोग किया जाता है, जिससे समुदायों के बीच विभाजन गहराता है।दूसरी ओर सोशल मीडिया और अफवाहों का प्रसार भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आधुनिक युग में सोशल मीडिया गलत सूचनाओं के प्रसार का एक बड़ा माध्यम बन गया है। भड़काऊ पोस्ट, अफवाहें, और फर्जी खबरें सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती हैं।कई बार व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर जैसे प्लेटफार्मों पर गलत सूचना फैलाई जाती है, जिससे लोगों की भावनाएं भड़कती हैं।मॉर्फ्ड (छेड़छाड़ किए गए) वीडियो और तस्वीरों के माध्यम से किसी समुदाय विशेष को टारगेट किया जाता है। अफवाहों के कारण भीड़-तंत्र सक्रिय हो जाता है, जो कई बार हिंसा का रूप ले लेता है।धार्मिक आयोजनों के दौरान भी टकराव संभव रहता है। धार्मिक आयोजन और त्योहार सामाजिक एकता का प्रतीक होते हैं, लेकिन कभी-कभी इन्हीं अवसरों पर सांप्रदायिक तनाव बढ़ने की घटनाएं भी देखने को मिलती हैं।धार्मिक जुलूसों और रैलियों के दौरान दूसरे समुदायों से टकराव होने की घटनाएं सामने आई हैं। धार्मिक स्थलों के आसपास किसी भी प्रकार की उत्तेजक गतिविधि माहौल को खराब कर सकती है।पूजा स्थलों पर तोड़फोड़ या अपमानजनक कृत्य भी हिंसा भड़कने का कारण बन सकते हैं। बेरोजगारी और आर्थिक असंतोष भी टकराव के कारण हो सकते हैं। कई बार आर्थिक समस्याएं भी सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देती हैं। जब लोगों को रोजगार नहीं मिलता या आर्थिक संकट बढ़ता है, तो उनमें असंतोष उत्पन्न होता है। बेरोजगारी से ग्रस्त युवा अक्सर गलत संगठनों का हिस्सा बन जाते हैं और उन्हें उकसाया जाता है। आर्थिक असमानता के कारण एक समुदाय दूसरे समुदाय को दोषी ठहराने लगता है, जिससे टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है। बाहरी तत्वों की संलिप्तता से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। कुछ मामलों में सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने में बाहरी संगठनों और कट्टरपंथी गुटों की भूमिका भी सामने आई है। ये गुट सामाजिक समरसता को बिगाड़ने के लिए योजनाबद्ध तरीके से दंगे करवाते हैं। बाहरी संगठनों द्वारा वित्तीय सहायता देकर असामाजिक तत्वों को भड़काने की घटनाएं भी देखी गई हैं। आइये बात करते हैं उक्त नाजुक हालातों में पुलिस और प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में। महाराष्ट्र सरकार और पुलिस प्रशासन ने इन घटनाओं को रोकने और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाना-संवेदनशील इलाकों में पुलिस बल की तैनाती बढ़ाई गई है।सीसीटीवी कैमरों की मदद से निगरानी बढ़ाई गई है ताकि किसी भी संदिग्ध गतिविधि पर तुरंत कार्रवाई की जा सके।कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए विशेष पुलिस दस्तों का गठन किया गया है। साइबर क्राइम सेल को विशेष निर्देश दिए गए हैं कि वे सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट और अफवाहों की निगरानी करें।गलत सूचना फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा रही है। सरकार और स्थानीय प्रशासन धार्मिक नेताओं, सामाजिक संगठनों और समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा दे रहे हैं।सांप्रदायिक तनाव को कम करने के लिए विभिन्न संगठनों के साथ मिलकर शांति बैठकें आयोजित की जा रही हैं। राज्य सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए कठोर कानून लागू करने पर जोर दिया है।गिरफ्तारियों और जांच के जरिए असामाजिक तत्वों को कानून के दायरे में लाया जा रहा है।उक्त हालातों में समाज की भूमिका और समाधान के संभावित उपाय अहम हो जाते हैं। सांप्रदायिक तनाव को कम करने में केवल सरकार और पुलिस प्रशासन की भूमिका पर्याप्त नहीं है, बल्कि समाज के प्रत्येक नागरिक को भी इस दिशा में योगदान देना होगा।समाज में सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार किया जाना चाहिए। युवाओं को धार्मिक सहिष्णुता और भाईचारे का महत्व सिखाने के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। विभिन्न समुदायों के बीच आपसी संवाद को बढ़ावा देना आवश्यक है ताकि गलतफहमियां दूर हो सकें।धार्मिक संस्थाओं को आगे आकर शांति और सद्भाव बनाए रखने की पहल करनी चाहिए।मीडिया को निष्पक्ष रूप से खबरें प्रस्तुत करनी चाहिए और किसी भी प्रकार की भ्रामक रिपोर्टिंग से बचना चाहिए।पत्रकारों को समाज में शांति बनाए रखने की दिशा में काम करना चाहिए। अंत में कह सकते हैं कि महाराष्ट्र में तीन महीनों के भीतर 800 से अधिक सांप्रदायिक घटनाओं का होना एक गंभीर चिंता का विषय है। यह न केवल राज्य की शांति व्यवस्था के लिए खतरा है, बल्कि यह सामाजिक समरसता को भी नुकसान पहुंचाता है। हालांकि, सरकार और प्रशासन स्थिति को नियंत्रित करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं, लेकिन समाज के प्रत्येक व्यक्ति को भी इसमें सहयोग देना होगा। यदि सभी पक्ष मिलकर कार्य करें, तो निश्चित रूप से महाराष्ट्र में शांति और स्थिरता बनी रह सकती है।