भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां मौजूदा हालात में पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण विषय बन चुके हैं। यही वजह है कि औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण कार्बन उत्सर्जन में भारी वृद्धि हुई है, जिससे जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में वृद्धि जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इस समस्या से निपटने के लिए विभिन्न नीतियाँ और योजनाएँ विकसित की जा रही हैं, जिनमें से एक प्रमुख समाधान 'कार्बन ट्रेडिंग' है। भारत, जो एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, इस प्रणाली को अपनाने और इसे प्रभावी रूप से लागू करने की दिशा में प्रयासरत है। यह भी सच है कि भारत में कार्बन ट्रेडिंग के भविष्य, इसकी चुनौतियों और संभावनाओं का विश्लेषण आज के समय में खासा जरूरी हो जाता है। आइये समझते हैं कि कार्बन ट्रेडिंग आखिर होता क्या है? कार्बन ट्रेडिंग एक बाजार आधारित प्रणाली होती है, जिसमें कंपनियों या संगठनों को उनके ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए क्रेडिट दिए जाते हैं। यदि कोई कंपनी निर्धारित सीमा से कम कार्बन उत्सर्जन करती है, तो वह अतिरिक्त क्रेडिट्स को उन कंपनियों को बेच सकती है जो तय सीमा से अधिक उत्सर्जन कर रही हैं। इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक इकाइयों को कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए प्रेरित करना और पर्यावरण संतुलन बनाए रखना है। कार्बन ट्रेडिंग मुख्यतः दो तरह से होती है। कैप एंड ट्रेड-इस में नियामक संस्थाएँ कंपनियों के लिए एक सीमा (कैप) निर्धारित करती हैं। यदि कोई कंपनी इस सीमा से कम उत्सर्जन करती है, तो वह अतिरिक्त क्रेडिट्स को बेच सकती है। दूसरा ऑफसेट ट्रेडिंग-इस प्रणाली में कंपनियाँ अपने कार्बन उत्सर्जन की भरपाई करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं, वृक्षारोपण और अन्य हरित पहलों में निवेश कर सकती हैं। हमारे देश में कार्बन ट्रेडिंग की मौजूदा स्थिति के बारे में बात करते हैं। हालांकि भारत में पूर्ण रूप से कार्बन ट्रेडिंग प्रणाली अभी लागू नहीं हुई है, लेकिन सरकार ने इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। विभिन्न सरकारी एजेंसियाँ, जैसे कि एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड और ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी, कार्बन क्रेडिट सिस्टम को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं पर कार्य कर रही हैं। इसके अतिरिक्त, 'राष्ट्रीय कार्य योजना जलवायु परिवर्तन' और 'परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड' जैसी योजनाएँ लागू की गई हैं। इस क्षेत्र भारत सरकार ने कई प्रमुख कदम उठाये हैं जैसे परफॉर्म, अचीव एंड स्कीम - यह एक बाजार आधारित प्रणाली है, जो ऊर्जा-गहन उद्योगों को ऊर्जा कुशल बनने के लिए प्रेरित करती है और उन्हें कार्बन क्रेडिट प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है। रिन्यूएबल एनर्जी क्रेडिट सिस्टम - यह उन कंपनियों को लाभ पहुँचाने के लिए लागू किया गया है जो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग कर रही हैं। ग्रीन हाइड्रोजन मिशन - इस पहल का उद्देश्य भारत को कार्बन न्यूट्रल बनाने की दिशा में अग्रसर करना है। राष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार योजना - सरकार इस योजना को लागू करने पर विचार कर रही है ताकि कार्बन ट्रेडिंग को और प्रभावी बनाया जा सके। भारत में कार्बन ट्रेडिंग के कई लाभ भी हैं इन में पर्यावरण संरक्षण: कार्बन ट्रेडिंग प्रणाली से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नियंत्रित करने में मदद मिलती है, जिससे जलवायु परिवर्तन की समस्या को कम किया जा सकता है। आर्थिक लाभ: इस प्रणाली के तहत कंपनियाँ अतिरिक्त क्रेडिट्स को बेचकर आर्थिक लाभ अर्जित कर सकती हैं। तकनीकी उन्नति: कार्बन ट्रेडिंग कंपनियों को अधिक ऊर्जा-कुशल तकनीकों को अपनाने और नवाचार करने के लिए प्रेरित करती है। वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़त: यदि भारत इस प्रणाली को प्रभावी रूप से लागू करता है, तो यह भारतीय उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में एक मजबूत स्थिति प्रदान करेगा। नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा: इस प्रणाली से सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने में वृद्धि होगी। इतना ही नहीं कार्बन ट्रेडिंग की कई चुनौतियाँ भी होती हैं जैसे नीतिगत अस्पष्टता: भारत में कार्बन ट्रेडिंग के लिए अभी तक पूरी तरह से स्पष्ट और प्रभावी नीतियाँ नहीं बनाई गई हैं। तकनीकी और प्रशासनिक बाधाएँ: इस प्रणाली के सुचारू कार्यान्वयन के लिए प्रभावी डेटा संग्रहण, निगरानी और सत्यापन तंत्र की आवश्यकता है। उच्च लागत और निवेश की जरूरत: कई उद्योगों के लिए कार्बन उत्सर्जन कम करने वाली तकनीकों में निवेश करना महंगा साबित हो सकता है। जागरूकता की कमी: कई कंपनियों को अभी भी कार्बन ट्रेडिंग की कार्यप्रणाली और लाभों की पूरी जानकारी नहीं है। वैश्विक कार्बन बाजार में समायोजन: भारत को वैश्विक कार्बन बाजार में सफलतापूर्वक एकीकृत होने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता होगी। बावजूद चुनौतियों के कार्बन ट्रेडिंग की कई संभावनाएँ होती हैं जैसे नीतिगत सुधार और पारदर्शिता: यदि भारत सरकार कार्बन ट्रेडिंग को सुचारू रूप से लागू करने के लिए स्पष्ट और मजबूत नीतियाँ बनाती है, तो यह प्रणाली अधिक प्रभावी हो सकती है। डिजिटल और ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग: कार्बन क्रेडिट के सुरक्षित और पारदर्शी लेन-देन के लिए ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है। नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश: यदि भारत सौर और पवन ऊर्जा जैसे हरित ऊर्जा स्रोतों में अधिक निवेश करता है, तो कार्बन ट्रेडिंग प्रणाली अधिक सफल होगी। निजी क्षेत्र की भागीदारी: कंपनियों और उद्योगों को इस प्रणाली का हिस्सा बनाने के लिए उन्हें उचित प्रोत्साहन देना आवश्यक है। स्मार्ट सिटी पहल और शहरीकरण: स्मार्ट सिटीज़ में कार्बन न्यूट्रल परियोजनाओं को बढ़ावा देकर इस प्रणाली को सफल बनाया जा सकता है। अंत में कह सकते हैं कि भारत में कार्बन ट्रेडिंग की अपार संभावनाएँ हैं, लेकिन इसे सफलतापूर्वक लागू करने के लिए सरकार, उद्योग और नागरिकों को मिलकर प्रयास करने होंगे। यह प्रणाली पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ आर्थिक और तकनीकी विकास को भी बढ़ावा दे सकती है। यदि भारत सही नीतियाँ और तकनीकी नवाचारों को अपनाता है, तो वह कार्बन ट्रेडिंग में वैश्विक नेतृत्व कर सकता है।