भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां मौजूदा हालात में अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों के आरोप सरकार और समाज दोनों के लिए गंभीर चिंता का विषय बने हुए हैं इसमें कोई दो राय नहीं है कि भारत एक बहुसांस्कृतिक और बहुधार्मिक देश है, जहाँ विभिन्न धर्मों के लोग सदियों से अक साथ रहते आए हैं। लेकिन हाल के वर्षों में धार्मिक असहिष्णुता की घटनाएँ बढ़ने के समाचार मिलने लगे हैं जिनसे स्वभाविक है कि देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को चुनौती मिल रही है। अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से मुस्लिम और ईसाई संगठनों, ने उनके खिलाफ बढ़ती असहिष्णुता पर न केवल चिंता व्यक्त की है बल्कि तरह तरह के आरोप भी लगाये हैं। जहाँ मुस्लिम समुदाय के मानवाधिकार संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता सांप्रदायिक हमलों, सामाजिक बहिष्कार और कानूनी दमन के मुद्दों पर आवाज उठाते रहे हैं, तो वहीं अखिल भारतीय कैथोलिक संघ ने भी ईसाई समुदाय के प्रति बढ़ती हिंसा और भेदभाव पर गहरी चिंता जतानी शुरु कर दी है। इन दोनों समुदायों का आरोप है कि देश के कुछ हिस्सों में उनके धार्मिक अधिकारों का हनन किया जा रहा है और उन्हें डराने-धमकाने की घटनाएँ बढ़ रही हैं। जहां तक मुस्लिम समुदाय का ताल्लुक है उनका कहना है कि उनके खिलाफ हाल के वर्षों में हुई घटनाओं में भीड़ द्वारा हिंसा एक प्रमुख मुद्दा रहा है। गोहत्या के संदेह, अंतरधार्मिक विवाह (जिसे 'लव जिहाद' कहा जाता है), और सांप्रदायिक झड़पों को लेकर मुस्लिमों को निशाना बनाए जाने की कई घटनाएँ घटित हुई हैं। कई मुस्लिम युवाओं का कहना है कि उनको धार्मिक भावनाएँ आहत करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया । कई मामलों में आरोप कमजोर होते हैं, लेकिन कानूनी प्रक्रिया के कारण समुदाय के भीतर डर का माहौल बन जाता है। कुछ राज्यों में मुस्लिम व्यापारियों, छोटे दुकानदारों और मांस विक्रेताओं को बहिष्कार का सामना करना पड़ा है। इससे उनके आर्थिक जीवन पर बुरा असर पड़ा है और समुदाय के भीतर असुरक्षा की भावना गहरी हुई है। अब आइये बात करते हैं ईसाई समुदाय द्वारा लगाये गये आरोपों की। अखिल भारतीय कैथोलिक संघ का आरोप है कि ईसाई समुदाय के खिलाफ हिंसा और भेदभाव की घटनाएँ बढ़ी हैं, विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में। कई चर्चों पर हमले किए गए, धार्मिक सभाओं को रोका गया और प्रार्थना करने वाले लोगों को धमकाया गया। ईसाई मिशनरियों के सेवा कार्यों को शक की नजर से देखा जाता है, जिससे उनकी गतिविधियों में बाधा उत्पन्न होती है। उनका यह भी आरोप है कि भारत में जबरन धर्मांतरण एक संवेदनशील मुद्दा है, और कई बार ईसाई समुदाय को इसके झूठे आरोपों में फँसाने की घटनाएँ हुई हैं। हालाँकि, अधिकतर मामलों में ऐसे आरोपों के पीछे कोई ठोस प्रमाण नहीं होता, लेकिन फिर भी इससे समुदाय के खिलाफ नकारात्मक माहौल बनता है। पादरियों और ननों को शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। कुछ मामलों में उन्हें गिरफ्तार भी किया गया है, जिससे उनकी सुरक्षा पर गंभीर प्रश्न खड़े होते हैं। यह सच है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 से 28 प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का पालन, प्रचार और अभ्यास करने की स्वतंत्रता देता है। लेकिन मुस्लिम और ईसाई संगठनों द्वारा लगाये जा रहे आरोप गंभीर आरोप हैं। इनका कहना है कि धार्मिक आयोजनों को रोका जाना, चर्चों और मस्जिदों को निशाना बनाना, और अल्पसंख्यकों को डराने-धमकाने जैसी घटनाएँ देश की धर्मनिरपेक्ष छवि पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं। इन दोनों समुदायों ने सरकार और समाज से गुहार लगाते हुए कई अपेक्षाएँ जाहिर की हैं। जैसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव को रोकने के लिए कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए। दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि इस तरह की घटनाएँ दोबारा न हों। धार्मिक सहिष्णुता और सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने के लिए शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों की आवश्यकता है। स्कूलों, कॉलेजों और सामाजिक संगठनों को धार्मिक विविधता के महत्व को समझाने वाले विशेष कार्यक्रम आयोजित करने चाहिए। विभिन्न धर्मों के नेताओं को एक मंच पर लाकर संवाद स्थापित किया जाना चाहिए। इससे गलतफहमियों को दूर करने और आपसी विश्वास बढ़ाने में मदद मिलेगी। मीडिया को धार्मिक मामलों की रिपोर्टिंग में संतुलन बनाए रखना चाहिए और अफवाहों या भ्रामक सूचनाओं से बचना चाहिए। भारत में धार्मिक असहिष्णुता की घटनाओं पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने भी जंप करने की कोशिश की है। कई मानवाधिकार संगठनों और धार्मिक स्वतंत्रता समूहों ने भारत सरकार से अनुरोध किया है कि वह धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाए। अंत में कह सकते हैं कि कई बार तो एसा लगता है कि भारत में मुस्लिम और ईसाई समुदायों के खिलाफ बढ़ती घटनाओं ने देश में धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सौहार्द को खतरे में डाल दिया है। जहाँ मुस्लिम समुदाय के लोग भीड़ द्वारा हिंसा, कानूनी उत्पीड़न और सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहे हैं, वहीं ईसाई समुदाय चर्चों पर हमले और जबरन धर्मांतरण के झूठे आरोपों से पीड़ित है। मगर सच क्या है वह तो मौका ए वारदात से ही पता लग सकता है। दूसरी ओर हमें भी सरकार और समाज को धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता को बनाए रखने के लिए सरकार, सामाजिक संगठनों, और आम जनता को मिलकर प्रयास करने होंगे। सभी धर्मों के लोगों को एक-दूसरे का सम्मान करना होगा ताकि भारत की पहचान एक समावेशी और बहुलतावादी समाज के रूप में बनी रहे। भारत की ताकत उसकी विविधता में है, और इसे बनाए रखना हम सभी की ज़िम्मेदारी है।