भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां मौजूदा हालात में देश में जिस प्रकार आधुनिक युग की तेज रफतार के मद्देनजर दूरसंचार उद्योग ताबड़तोड़ तरक्की कर रहा है और इस उद्योग में 1.18 बिलियन ग्राहक शामिल हो चुके हैं अब वक्त आ गया है कि हम इस उद्योग से जुड़े करोड़ों ग्राहकों की सुविधा के लिए ओ टी टी सेवाओं, डेटा सुरक्षा और बुनियादी अवसंरचना की लागत को संतुलित करने पर गंभीरता से विचार करें। इस में कोई दो राय नहीं है कि टेलीडेंसिटी में एक महत्त्वपूर्ण शहरी-ग्रामीण अंतर बना हुआ है। यह भी सच है कि ए आई और स्थानीयकृत डेटा केंद्रों द्वारा समर्थित तेज़ी से 5जी रोलआउट आगामी विस्तार का वादा करता है। प्रौद्योगिकी से परे, उद्योग की सफलता अपने विकास प्रक्षेपवक्र को बनाए रखने के लिये कुशल जनशक्ति विकास और रणनीतिक वैश्विक साझेदारी पर निर्भर करती है। आइये बात करते हैं भारत में दूरसंचार क्षेत्र के विकास को प्रेरित करने वाले प्रमुख कारकों की। भारत विश्व स्तर पर सबसे तीव्र 5जी तैनाती का अनुभव कर रहा है, जो कनेक्टिविटी को बढ़ा रहा है तथा AI-संचालित स्वचालन और आई ओ टी जैसे नए युग के अनुप्रयोगों को सक्षम कर रहा है। दूरसंचार कंपनियाँ निर्बाध हाई-स्पीड इंटरनेट सुनिश्चित करने के लिये फाइबर नेटवर्क और बेस स्टेशनों का तीव्र गति से विस्तार कर रही हैं। जून, 2024 तक भारत में स्थापित 4.48 लाख 5जी बेस स्टेशनों में से लगभग 3.03 लाख को फाइबरयुक्त कर दिया गया है। सरकार के राइट ऑफ वे नीति सुधारों ने नेटवर्क विस्तार को सुव्यवस्थित किया है, जिससे प्रशासनिक विलंब कम हुआ है। स्मार्टफोन और डेटा प्लान के बढ़ते सामर्थ्य के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में भी इंटरनेट की पहुँच में वृद्धि हुई है। बढ़ती डिजिटल साक्षरता और सरकार समर्थित पहल ई-कॉमर्स, फिनटेक और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में स्मार्टफोन के उपयोग को बढ़ावा दे रही हैं। भारत में वर्ष 2026 तक 1 बिलियन स्मार्टफोन उपयोगकर्त्ता होंगे, ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट-सक्षम फोन की बिक्री में वृद्धि होगी। भारत सरकार ने स्पेक्ट्रम मूल्य निर्धारण युक्तिकरण, एफ डी आई उदारीकरण और वित्तीय राहत पैकेज सहित प्रगतिशील दूरसंचार नीतियों को लागू किया है। विगत स्पेक्ट्रम नीलामियों के लिये आवश्यक बैंक गारंटी माफ करने के सरकार के निर्णय से दूरसंचार उद्योग को मदद मिलेगी, जिससे 4जी और 5जी नेटवर्क के विस्तार के लिये बैंकिंग संसाधनों का बेहतर उपयोग संभव होगा। दूरसंचार पी एल आई योजना के 3 वर्षों के भीतर, इस योजना ने 3,400 करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित किया है, दूरसंचार उपकरण उत्पादन 50,000 करोड़ रुपए की उपलब्धि को पार कर गया है। वीडियो स्ट्रीमिंग, गेमिंग और सोशल मीडिया के कारण भारत मोबाइल डेटा का विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता बनकर उभरा है। ओवर-द-टॉप ओ टी टी प्लेटफॉर्म और ई-कॉमर्स के उदय से इंटरनेट की मांग में काफी वृद्धि हुई है। महामारी के बाद घर से काम और हाइब्रिड कार्य मॉडल ने डेटा खपत को और भी बढ़ा दिया है। भारत में ओ टी टी वीडियो उपयोगकर्त्ताओं की संख्या वर्ष 2024 और वर्ष 2029 के दौरान 28.89% बढ़कर 634.31 मिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है। आत्मनिर्भर भारत के लिये किये गए प्रयासों ने घरेलू दूरसंचार उपकरण विनिर्माण को मज़बूत किया है, जिससे आयात पर निर्भरता कम हुई है। सरकार सेमीकंडक्टर, 5जी बुनियादी अवसंरचना और नेटवर्क गियर के स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित कर रही है। भारत 6जी और ए आई-संचालित नेटवर्क सहित भविष्य की दूरसंचार प्रौद्योगिकियों के लिये अनुसंधान और विकास में भी निवेश कर रहा है। वित्त वर्ष 2023-24 में दूरसंचार उपकरण और मोबाइल का निर्यात संयुक्त रूप से 1.49 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया, जो उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है।उपग्रह संचार ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में कनेक्टिविटी में क्रांतिकारी बदलाव ला रहा है, जहाँ स्थलीय नेटवर्क अव्यावहारिक हैं। वनवेब, स्टारलिंक और जियोस्पेसफाइबर जैसी कंपनियाँ लो अर्थ ऑर्बिट उपग्रहों के माध्यम से हाई-स्पीड इंटरनेट प्रदान करने पर काम कर रही हैं। सरकार डिजिटल डिवाइड को समाप्त करने और दुर्गम क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड एक्सेस को बेहतर बनाने के लिये सैटेलाइट-आधारित इंटरनेट का समर्थन कर रही है। यह लास्ट माइल कनेक्टिविटी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। सरकार ई-गवर्नेंस, टेलीमेडिसिन, डिजिटल बैंकिंग और स्मार्ट शहरों के लिये दूरसंचार बुनियादी अवसंरचना का लाभ उठा रही है। आधार-आधारित मोबाइल प्रमाणीकरण और यू पी आई लेन-देन जैसी पहल सुदृढ़ दूरसंचार नेटवर्क पर बहुत हद तक निर्भर करती हैं। भारत में दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित कई प्रमुख मुद्दे हैं जैसे ग्रामीण-शहरी डिजिटल डिवाइड, उच्च स्पेक्ट्रम लागत और ऋण बोझ, वहनीयता और 5जी एक्सेस, साइबर सुरक्षा और डेटा गोपनीयता जोखिम, नियामक अनिश्चितता और ओ टी टी- आई एस पी संघर्ष, आयात पर निर्भरता और स्वदेशी विनिर्माण का अभाव, विदेशी निवेश चुनौतियाँ और भू-राजनीतिक जोखिम, स्थिरता और ई-अपशिष्ट प्रबंधन मुद्दे आदि हैं। भारत अपने दूरसंचार क्षेत्र में सुधार और पुनरुद्धार के लिये कई उपाय अपना सकता है इनमें ग्रामीण कनेक्टिविटी और डिजिटल समावेशन को बढ़ाना, स्पेक्ट्रम मूल्य निर्धारण और लाइसेंसिंग मानदंडों को युक्तिसंगत बनाना, साइबर सुरक्षा और डेटा संरक्षण को मज़बूत करना, ओ टी टी सेवाओं को विनियमित करना और उचित राजस्व साझाकरण सुनिश्चित करना, स्वदेशी दूरसंचार विनिर्माण और अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देना, वित्तीय संकट से निपटना और दूरसंचार क्षेत्र की व्यवहार्यता सुनिश्चित करना, फाइबरीकरण और 5 जी अवसंरचना विस्तार में तेज़ी लाना, सैटेलाइट आधारित इंटरनेट और लास्ट माइल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना, ए आई, ब्लॉकचेन और उभरती प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाना शामिल हैं। अंत में कह सकते हैं कि भारत का दूरसंचार क्षेत्र एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जो विनियामक, वित्तीय और तकनीकी चुनौतियों के साथ तेज़ी से विस्तार को संतुलित कर रहा है। स्वदेशी दूरसंचार विनिर्माण को मज़बूत करना तथा ओ टी टी प्लेटफॉर्मों एवं दूरसंचार ऑपरेटरों के बीच उचित राजस्व साझाकरण सुनिश्चित करना आवश्यक है। रणनीतिक सुधारों और निवेशों के साथ, भारत सभी के लिये डिजिटल समावेशन सुनिश्चित करते हुए एक वैश्विक दूरसंचार महाशक्ति के रूप में अपनी स्थिति को सुदृढ़ कर सकता है।