भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां देश के मौजूदा हालात में एक अजीब मगर गंभीर विरोधाभास देखने को मिल रहा है वह यह कि यहां युवाओं में लगातार कौशल की कमी बढ़ रही है जबकि दूसरी ओर युवाओं में बेरोजगारी आये दिन बढ़ती जा रही है। जिससे विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। ग्रेजुएट स्किल इंडेक्स- 2024 में रोज़गार क्षमता में 42.6% की चिंताजनक गिरावट दर्शाता है।हालांकि केंद्र सरकार ने इसका संज्ञान लेते हुए विशेष रूप से स्किल इंडिया मिशन और पाँच वर्षों में 10 मिलियन युवाओं को लक्षित करने वाली एक महत्त्वाकांक्षी इंटर्नशिप पहल, शुरू की हैं। ये कार्यक्रम शैक्षिक परिणामों को उद्योग की आवश्यकताओं के साथ संरेखित करने के लिये महत्त्वपूर्ण प्रयासों का प्रतिनिधित्व करते हैं, बावजूद इनके हमारे देश को उक्त समस्याओं से निकलने के लिए पर्याप्त प्रगति करनी होगी। आइये समझते हैं कि भारत में कौशल विकास से संबंधित कौन सी प्रमुख सरकारी कोशिशें हैं। इन में वर्ष 2015 में औपचारिक रूप दिया गया, यह आई टी आई, पॉलिटेक्निक और व्यावसायिक केंद्रों के माध्यम से व्यापक कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये एक व्यापक पहल के रूप में कार्य करता है।यह उद्योग-संचालित प्रशिक्षण और उद्यमिता विकास पर केंद्रित है। स्किल इंडिया डिजिटल हब भारत के कौशल विकास, शिक्षा, रोज़गार और उद्यमिता परिदृश्य को समन्वित करने के लिये एक डिजिटल मंच है। वर्ष 2015 में विभिन्न ट्रेडों में अल्पकालिक प्रशिक्षण और प्रमाणन प्रदान करने वाली एक प्रमुख योजना के रूप में शुरू किया गया था। यह रोज़गार योग्यता को बढ़ावा देने के लिये स्कूल छोड़ने वाले, बेरोज़गार युवाओं और वंचित समूहों को लक्षित करता है। वर्ष 2023 का उन्नयन– पी एम के वी वाई 4.0, उद्योग-संरेखित पाठ्यक्रमों, डिजिटल कौशल और हरित नौकरियों पर ज़ोर देता है। वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था, यह उद्योगों और एम एस एम ई में प्रशिक्षुता के माध्यम से नौकरी पर प्रशिक्षण को बढ़ावा देती है। यह उन नियोक्ताओं को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करता है जो प्रशिक्षुओं को नियुक्त करते हैं और प्रशिक्षित करते हैं।वर्ष 2008 में स्थापित यह सार्वजनिक-निजी सहयोग राष्ट्रव्यापी कौशल पहलों को क्रियान्वित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय के तहत संचालित इसका मिशन विविध क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा देना है। निजी क्षेत्र को शामिल करके, यह समग्र कौशल विकास को बढ़ाने के लिये नवीन प्रयासों को बढ़ावा देता है। दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना भारत में ग्रामीण युवाओं के लिये एक कौशल विकास कार्यक्रम है। यह कार्यक्रम ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। आजीविका संवर्द्धन के लिये कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता भारत सरकार द्वारा संस्थानों को सुदृढ़ करने, बाज़ार संपर्क बढ़ाने और कौशल विकास पहलों में समाज के सीमांत वर्गों को शामिल करके अल्पकालिक कौशल प्रशिक्षण की गुणवत्ता एवं मात्रा में सुधार करने के लिये शुरू किया गया एक कार्यक्रम है। औद्योगिक मूल्य संवर्द्धन के लिये कौशल सुदृढ़ीकरण का उद्देश्य औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों और प्रशिक्षुता के माध्यम से प्रदान किये जाने वाले कौशल प्रशिक्षण की गुणवत्ता एवं प्रासंगिकता में सुधार लाना है, जिससे बाज़ार के भीतर औद्योगिक कार्यबल की क्षमताओं व मूल्य में भी वृद्धि हो सके। वर्ष 2023 में शुरू की जाने वाली प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना, बढ़ई, बुनकर और लोहार जैसे पारंपरिक कारीगरों एवं शिल्पकारों के कौशल उन्नयन पर केंद्रित है। यह विरासत कौशल को संरक्षित करने और बढ़ाने के लिये वित्तीय सहायता, टूलकिट व उद्यमिता प्रशिक्षण प्रदान करता है। भारत की कौशल पहल से जुड़े कई प्रमुख मुद्दे हैं इनमें कौशल और उद्योग की मांग के बीच असंगतता, कौशल कार्यक्रमों में महिलाओं की कम भागीदारी, प्रशिक्षुता और कार्यस्थल पर प्रशिक्षण की असंगत संस्कृति, खंडित एवं अतिव्यापी कौशल कार्यक्रम, निजी क्षेत्र की अपर्याप्त भागीदारी और निवेश, ग्रामीण और अनौपचारिक क्षेत्रों में कौशल चुनौतियाँ, कौशल की कम मान्यता और प्रमाणन आदि हैं। भारत अपने कौशल पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ाने और सुधारने के लिये कई रणनीतिक उपाय लागू कर सकता है जैसे अनौपचारिक और ग्रामीण कार्यबल समावेशन के लिये कौशल, उद्योग-संरेखित और भविष्य-तैयार पाठ्यक्रम विकास, प्रशिक्षुता और कार्य-आधारित शिक्षण मॉडल को सुदृढ़ बनाना, डिजिटल कौशल और ऑनलाइन शिक्षण अवसंरचना को बढ़ाना, स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणाली के साथ कौशल को एकीकृत करना, लिंग-समावेशी कौशल और कार्यबल भागीदारी संवर्द्धन हैं इनके तहत महिलाओं के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम को स्टेम गिग इकॉनमी, वित्तीय सेवाओं और डिजिटल उद्यमिता में महिला भागीदारी बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। लिंग-संवेदनशील कौशल केंद्र, लचीले प्रशिक्षण कार्यक्रम, दूरस्थ शिक्षा विकल्प और बाल देखभाल सहायता महिलाओं के लिये अभिगम में सुधार कर सकते हैं। कौशल विकास में महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों के लिये वित्तीय प्रोत्साहन, स्टार्टअप अनुदान और मार्गदर्शन कार्यक्रम शुरू किये जाने चाहिये। इसी प्रकार पूर्व शिक्षा की मान्यता और कार्यबल गतिशीलता के लिये कौशल उन्नयन, निजी क्षेत्र की भागीदारी और पी पी पी मॉडल को सुदृढ़ करना, सॉफ्ट स्किल्स, व्यावसायिक नैतिकता और कार्यस्थल तत्परता सुनिश्चित करना, निगरानी, मूल्यांकन और उत्तरदायित्व तंत्र को सुदृढ़ करना आदि हैं। इनके तहत नामांकन, पूर्णता, रोज़गार दर और उद्योग फीडबैक को ट्रैक करने के लिये एक वास्तविक काल, ए आई-संचालित कौशल डैशबोर्ड विकसित किया जाना चाहिये। यह सुनिश्चित करने के लिये कि कौशल विकास कार्यक्रम वास्तविक रोज़गार अवसरों में तब्दील हो जाएँ, परिणाम-आधारित वित्तपोषण तंत्र को लागू किया जाना चाहिये। कौशल केंद्रों को तृतीय पक्ष द्वारा ऑडिट कराया जाना चाहिये तथा उद्योग सलाहकार बोर्डों को समय-समय पर सिफारिशें दी जानी चाहिये। कौशल केंद्रों की जियो-टैगिंग और बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली से अकुशलता पर अंकुश लगाया जा सकता है तथा गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण सुनिश्चित किया जा सकता है। अंत में कहा जा सकता है कि अपने जनांकिकीय लाभांश का लाभ उठाने के लिये, भारत को कुशल, उद्योग-संरेखित प्रशिक्षण के माध्यम से कौशल अंतर को समाप्त करना होगा। प्रशिक्षुता, डिजिटल कौशल और ग्रामीण कार्यबल समावेशन को मज़बूत करना आवश्यक है। निजी क्षेत्र के मज़बूत सहयोग के साथ एक एकीकृत, मांग-संचालित कौशल पारिस्थितिकी तंत्र रोज़गार क्षमता को बढ़ा सकता है। तभी भारत अपनी युवा क्षमता को स्थायी आर्थिक विकास में बदल सकता है।