भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां अब वक्त आ गया है कि हम सब मिलकर मौजूदा हालात में मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व सुनिश्चित करने के लिये प्रयास करने शुरु कर दें। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अक्सर विभिन्न स्थानों पर हो रही घटनाओं में यह देखा गया है कि वन्यजीव तेज़ी से स्थान एवं संसाधनों के लिये मनुष्यों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं जो गंभीर बात है। यह भी सच है कि प्रायः जनसंख्या वृद्धि को पारंपरिक रूप से संरक्षण प्रगति के एक प्रमुख संकेतक के रूप में देखा जाता है, जबकि अब यह नई चुनौतियाँ प्रस्तुत करने लगा है। यही वजह है कि हाल ही में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की बैठक में, भारतीय प्रधानमंत्री ने मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन के लिये समर्पित एक केंद्र की स्थापना की घोषणा की है। आइये समझते हैं कि आखिर भारत की पारिस्थितिकी और आर्थिक संधारणीयता के लिये वन्यजीव संरक्षण क्यों महत्त्वपूर्ण है। वन्यजीव पारिस्थितिकी तंत्र की संधारणीयता बनाए रखने, जैव-विविधता सुनिश्चित करने और जलवायु पैटर्न को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बाघों एवं हाथियों जैसी प्रमुख/कीस्टोन प्रजातियों के नष्ट होने से खाद्य शृंखलाएँ बाधित होती हैं, जिससे शाकाहारी जानवरों की जनसंख्या में वृद्धि होती है और आवासों का क्षरण होता है। वन्य जीव गतिविधियों द्वारा पोषित वन और आर्द्रभूमि, कार्बन सिंक एवं जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध प्रतिरोधक के रूप में कार्य करते हैं। प्रजातियों की सुरक्षा से प्राकृतिक परागण, बीज प्रसार और रोग नियंत्रण सुनिश्चित होता है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के लिये आवश्यक हैं। विविध वन्य जीवन द्वारा समर्थित वन, आर्द्रभूमि और घास के मैदान, जल विज्ञान चक्र एवं भूजल पुनर्भरण को नियंत्रित करते हैं। वनों के संरक्षण से नदी के प्रवाह को बनाए रखने, गाद जमने को रोकने तथा बाढ़ और भूस्खलन की गंभीरता को कम करने में मदद मिलती है। वन्यजीव मृदा की उर्वरता बनाए रखने और राजस्थान जैसे क्षेत्रों में रेगिस्तान के प्रसार को रोकने में भी भूमिका निभाते हैं। वन्यजीव-आधारित पर्यटन लाखों लोगों को रोज़गार प्रदान करता है और संरक्षण प्रयासों के लिये राजस्व उत्पन्न करता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होता है। राष्ट्रीय उद्यान, बाघ अभयारण्य और पक्षी अभयारण्य अंतर्राष्ट्रीय व घरेलू पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, जिससे स्थायी आजीविका के अवसर उत्पन्न होते हैं। अच्छी तरह से प्रबंधित पारिस्थितिकी पर्यटन यह सुनिश्चित करता है कि स्थानीय समुदायों को आर्थिक लाभ मिले तथा अवैध शिकार एवं निर्वनीकरण पर निर्भरता कम हो। हालिया रिपोर्टों के अनुसार, वन्यजीव पर्यटन व्यापक पर्यटन क्षेत्र के लिये एक प्रमुख प्रेरक है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 5-6.5% का योगदान देता है। संरक्षण, मानव और वन्य प्रजातियों के बीच प्राकृतिक अवरोधों को बनाए रखकर वायरस प्रसार की संभावना को कम करता है। अवैध वन्यजीव व्यापार और निर्वनीकरण के कारण वन्यजीवों की संख्या अज्ञात रोगाणुओं के संपर्क में आ जाती है, जिससे स्वास्थ्य सुरक्षा के लिये सख्त वन्यजीव विनियम आवश्यक हो जाते हैं। संरक्षण को सुदृढ़ करने से जैव-विविधता बरकरार रहती है और घातक बीमारियों की उत्त्पत्ति एवं प्रसार कम होता है। वन्यजीव संरक्षण मधुमक्खियों, तितलियों और पक्षियों जैसे परागणकों के अस्तित्व को सुनिश्चित करता है, जो कृषि उपज के लिये आवश्यक हैं। उल्लू, सर्प और बिग कैट प्रजाति जैसे प्राकृतिक शिकारी कीटों की आबादी को नियंत्रित करते हैं, जिससे रासायनिक कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो जाती है। वन जैव-विविधता मृदा की उर्वरता और जल धारण क्षमता को बढ़ाती है, जिससे संधारणीय कृषि पद्धतियों में योगदान मिलता है। गिद्धों की संख्या में कमी के कारण आवारा कुत्तों की संख्या में वृद्धि हुई, जिससे रेबीज़ जैसी बीमारियाँ फैल गईं।यह पर्यावरण और वन्य जीवन की सुरक्षा एवं सुधार के लिये अनुच्छेद 48ए और अनुच्छेद 51ए(जी) के तहत संवैधानिक कर्त्तव्य को पूरा करता है। जैव-विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन और पेरिस समझौते जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षरकर्त्ता के रूप में, भारत अपनी जैव-विविधता को संरक्षित करने के लिये बाध्य है। वन्यजीव संरक्षण को सुदृढ़ करना संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन कार्रवाई और थालिय जीवों की सुरक्षा के अनुरूप है। वन्यजीव संरक्षण भारत के स्वदेशी समुदायों से गहराई से जुड़ा हुआ है, जिनकी आजीविका और परंपराएँ प्रकृति पर निर्भर हैं। कर्नाटक के सोलीगा और राजस्थान के बिश्नोई जैसी कई जनजातियों ने ऐतिहासिक रूप से जैव-विविधता की रक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वन्यजीव संरक्षण से पवित्र उपवनों, धार्मिक स्थलों और स्थायी संसाधन प्रबंधन से संबंधित पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों का भी संरक्षण होता है। भारत के वर्तमान वन्यजीव संरक्षण उपायों से जुड़े कई प्रमुख मुद्दे हैं। जैसे बढ़ता मानव-वन्यजीव संघर्ष, अपर्याप्त आवास प्रबंधन और वहन क्षमता संबंधी समस्याएँ, वन्यजीव पुनर्वास और संरक्षण में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव, वन्यजीवन और पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, अपर्याप्त वन्यजीव गलियारे और विखंडित संपर्क, अपर्याप्त वित्तपोषण और संसाधनों का अप्रभावी उपयोग, बढ़ता अवैध शिकार और वन्यजीवों का अवैध व्यापार, विकास और संरक्षण लक्ष्यों के बीच संघर्ष, कमज़ोर सामुदायिक भागीदारी और लाभ-साझाकरण तंत्र और वन्यजीव संरक्षण में प्रौद्योगिकी अंगीकरण में कमी आदि है। दूसरी ओर यह भी सच है कि वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को गति देने के लिये भारत कई उपाय अपना सकता है इनमें मानव-वन्यजीव संघर्ष शमन रणनीतियों को सुदृढ़ करना, संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार और सुदृढ़ीकरण, वैज्ञानिक और वन्यजीव पुनर्वास हेतु पारदर्शी नीतियों को लागू करना, अवैध शिकार विरोधी तंत्र और वन्यजीव अपराध नियंत्रण को दृढ़ करना, समुदाय-नेतृत्व वाली संरक्षण पहल को प्रोत्साहित करना, बेहतर वन्यजीव निगरानी के लिये प्रौद्योगिकी अंगीकरण, जलवायु परिवर्तन और पर्यावास क्षरण पर ध्यान देना, वन्यजीव संरक्षण के लिये भूमि उपयोग और बुनियादी अवसंरचना की नीतियों में सुधार आदि शामिल हैं। अंत में यही कहा जा सकता है कि भारत के वन्यजीव संरक्षण प्रयास एक ऐसे मोड़ पर हैं, जहाँ विकास की ज़रूरतों के साथ पारिस्थितिक अखंडता को संतुलित करने के लिये सक्रिय रणनीतियाँ आवश्यक हैं। आवास संपर्क को सुदृढ़ करना, तकनीक का लाभ उठाना और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना दीर्घकालिक संधारणीयता सुनिश्चित कर सकता है। एक समग्र दृष्टिकोण से न केवल भारत के समृद्ध वन्यजीवों की रक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि इसके पारिस्थितिक और आर्थिक भविष्य को भी सुरक्षा मिलेगी।