भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां गर विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र देश भारत को अन्य विकसित देशों की भांति प्रगति करनी है तो उसे स्वच्छ ऊर्जा को पूरी तरह से अपनाना होगा। इससे यहां न केवल साफ पर्यावरण बरकरार रखने में मदद मिलेगी बल्कि देश आर्थिक तौर पर भी संपन्न हो जायेगा। यह भी सच है कि जलवायु परिवर्तन कार्रवाई के प्रति वैश्विक प्रतिरोध, बढ़ती लागत और बीमा चुनौतियों के कारण प्रगति के लिये खतरा उत्पन्न हो रहा है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव आये दिन बढ़ रहे हैं, वैसे वैसे स्वच्छा ऊर्जा जैसे समाधानों को प्राथमिकता देना वक्त की मांग हो चली है। आइये बात करते हैं स्वच्छ ऊर्जा भारत के लिए क्योंकर महत्त्वपूर्ण है। इसके कई कारण हैं जैसे भारत अपनी आवश्यकता का लगभग 85% कच्चा तेल और 50% प्राकृतिक गैस आयात करता है, जिससे यह वैश्विक मूल्य आघात एवं आपूर्ति व्यवधानों के प्रति अत्यधिक सुभेद्य हो जाता है। घरेलू नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार करने से ऊर्जा स्वतंत्रता बढ़ सकती है और उच्च आयात बिल का भार कम हो सकता है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार वर्ष 2023 में भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का निवल आयातक रहा, जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध ने जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता के जोखिमों को उजागर किया है। भारत की सी ओ पी 26 प्लेज के अनुसार, वर्ष 2030 तक नवीकरणीय क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने से इन कमज़ोरियों को कम किया जा सकता है।स्वच्छ ऊर्जा से औद्योगिक विस्तार, नवाचार और रोज़गार को बढ़ावा मिल सकता है, विशेष रूप से सौर, पवन एवं ग्रीन हाइड्रोजन क्षेत्रों में। ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद का अनुमान है कि भारत का नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र वर्ष 2030 तक दस लाख लोगों को रोज़गार दे सकता है।इस परिवर्तन से विनिर्माण और ग्रिड अवसंरचना में नए अवसर खुलेंगे तथा आर्थिक असमानताएँ कम होंगी। भारत जलवायु परिवर्तन के प्रति सर्वाधिक सुभेद्य देशों में से एक है, जो लगातार हीट वेव्स, बाढ़ और बढ़ते समुद्री स्तर का सामना कर रहा है। स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन से कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी आ सकती है तथा वायु प्रदूषण में कमी आ सकती है, जो प्रतिवर्ष लाखों लोगों की मृत्यु के लिये जिम्मेदार है। वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2021 में विश्व भर में 8.1 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई है, जिसमें से आधे से अधिक मौतें चीन और भारत में हुई हैं।नवीकरणीय ऊर्जा, विशेष रूप से विकेंद्रीकृत सौर और पवन समाधान, दूरदराज़ के क्षेत्रों को विश्वसनीय बिजली प्रदान कर सकते हैं, जिससे ऊर्जा अपर्याप्तता कम हो सकती है। इससे वंचित क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। वर्ष 2024 में, भारत में 24.5 गीगावाट सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित किये जाने का लक्ष्य था, जो वर्ष 2023 की तुलना में दो गुना से अधिक वृद्धि है। उपयोगिता-स्तरीय संयंत्र 18.5 गीगावाट क्षमता तक पहुँच गए, जो वर्ष 2023 की तुलना में 2.8 गुना अधिक है। भारत ने स्वयं को नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी के रूप में स्थापित किया है, स्वच्छ ऊर्जा पहल के माध्यम से वैश्विक निवेश को आकर्षित किया है और राजनयिक संबंधों को मज़बूत किया है। इस क्षेत्र के विस्तार से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है। वित्त वर्ष 2021-22 में भारत में अक्षय ऊर्जा में निवेश रिकॉर्ड 14.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया। वहीं वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन जैसी पहल वैश्विक जलवायु कूटनीति में भारत के नेतृत्व को प्रदर्शित करती हैं। भारत के भारी उद्योग, जैसे इस्पात और सीमेंट, कोयला आधारित ऊर्जा पर निर्भर हैं, लेकिन ग्रीन हाइड्रोजन एक स्थायी विकल्प प्रदान करता है। हाइड्रोजन उत्पादन को बढ़ाने से भारत को औद्योगिक उत्सर्जन को कम करने के साथ-साथ वैश्विक निर्यातक बनने में भी मदद मिल सकती है। वर्ष 2023 में ₹19,744 करोड़ के परिव्यय के साथ शुरू किये जाने वाले राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन का लक्ष्य वर्ष 2030 तक सालाना 5 एम एम टी ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करना है। भारत का तीव्रता से हो रहा शहरीकरण स्वच्छ ऊर्जा चालित परिवहन और अवसंरचना पारिस्थितिकी तंत्र की मांग करता है। इलेक्ट्रिक वाहनों और स्मार्ट ग्रिडों का विस्तार करने से शहरों को अधिक संधारणीय बनाया जा सकता है, साथ ही तेल पर निर्भरता भी कम की जा सकती है। इ वी अंगीकरण को बढ़ावा देने के लिये प्रधानमंत्री ई-ड्राइव योजना में दो वर्षों (अप्रैल 2024 – मार्च 2026) के लिये ₹ 10,900 करोड़ का परिव्यय है। भारत ने वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है, जिसके लिये स्वच्छ ऊर्जा में बड़े बदलाव की आवश्यकता होगी। कार्बन ट्रेडिंग और उत्सर्जन न्यूनीकरण योजनाओं में भागीदारी से वित्तीय प्रोत्साहन एवं वैश्विक विश्वसनीयता मिल सकती है। ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 के तहत शुरू की गई कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम (वर्ष 2023) उद्योगों को कार्बन क्रेडिट का व्यापार करने की अनुमति देती है, जबकि भारत के अद्यतन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 45% उत्सर्जन में कमी लाना है। एसा नहीं है कि स्वच्छ ऊर्जा के रास्ते में कोई मुश्किल नही होती। इस में बाधाओं के कई कारण होते हैं जैसे अपर्याप्त ग्रिड अवसंरचना और भंडारण सीमाएँ, जीवाश्म ईंधन लॉबी और नीतिगत विसंगतियाँ, घरेलू विनिर्माण और आपूर्ति शृंखला अंतराल में धीमी प्रगति, भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय मंजूरी, नवीकरणीय ऊर्जा की आंतरायिकता और विश्वसनीयता, इलेक्ट्रिक वाहनों और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के अंगीकरण में धीमी गति आदि हैं। भारत स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ाने में तेजी लाने के लिये कई उपाय अपना सकता है इनमें ग्रिड अवसंरचना और ऊर्जा भंडारण को सुदृढ़ करना, डिस्कॉम और नवीकरणीय निवेश के लिये वित्तीय सुधार, घरेलू विनिर्माण और आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलन बढ़ाना, भूमि अधिग्रहण और पर्यावरणीय अनुमोदन में तीव्रता लाना, इलेक्ट्रिक वाहन पारिस्थितिकी तंत्र और ग्रीन मोबिलिटी का विस्तार, ग्रीन हाइड्रोजन और जैव ऊर्जा के साथ ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाना, नीति स्थायित्व और नियामक कार्यढाँचे को मज़बूत करना, कोयला-निर्भर क्षेत्रों के लिये न्यायोचित परिवर्तन सुनिश्चित करना, ग्रामीण और कृषि विकास के लिये विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और जलवायु वित्तपोषण को बढ़ाना आदि शामिल हैं। अंततः कहा जा सकता है कि भारत का स्वच्छ ऊर्जा-संक्रमण ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक विकास और पर्यावरणीय संधारणीयता के लिये आवश्यक है।