भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां विश्व स्तर पर मौजूदा हालात में जैसे मुक्त व्यापार का सहारा लेकर अपनी अपनी व्यापारिक बाधाओं को पार करने का जो प्रचलन चल पड़ा है उस पर सवालीय निशान लगने लगे हैं। गौरतलब है हाल ही में अमेरिका में चुनावों ने ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडे को वापस ला दिया है, जो व्यापारिक सिद्धांतों, उच्च टैरिफ और डबल्यू टी ओ जैसे स्थापित बहुपक्षीय कार्यढाँचे के बाहर द्विपक्षीय साझेदारी की ओर वापसी का संकेत देता है। भारत को द्विपक्षीय, बहुपक्षीय द्विपक्षीय व्यापार संबंधों और समग्र भू-आर्थिक दृष्टिकोण में अपने हितों की रक्षा के लिये सावधानीपूर्वक साझेदारी एवं प्रभावी सौदाकारी रणनीतियों के माध्यम से इस बदलते परिदृश्य को समायोजित करने की आवश्यकता है। आइये समझते कि हमारे यहां मुक्त व्यापार समझौते क्या भूमिका निभाते हैं। मुक्त व्यापार भारतीय निर्यातकों को तरजीही बाज़ार अभिगम प्रदान करते हैं, टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करते हैं, जिससे भारतीय उत्पाद वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनते हैं। यह वस्त्र, फार्मास्यूटिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण है, जहाँ भारत को तुलनात्मक लाभ प्राप्त है। बढ़ते वैश्विक व्यापार विखंडन के साथ, मुक्त व्यापार भारतीय उद्योगों को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकृत करने में मदद करते हैं, जिससे निर्यात-आधारित विकास को बढ़ावा मिलता है। बाज़ार के अवसरों का विस्तार करके, मुक्त व्यापार विनिर्माण विस्तार को प्रोत्साहित करते हैं, तथा वस्त्र, चमड़ा और कृषि जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में रोज़गार को बढ़ावा देते हैं। मुक्त व्यापार के तहत शुल्क मुक्त आयात के कारण कम इनपुट लागत से MSME को आगे बढ़ने और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने में मदद मिलती है। मुक्त व्यापार के माध्यम से घरेलू उद्योगों को सुदृढ़ करना भारत की उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन योजनाओं के अनुरूप है, जो विदेशी निवेश को आकर्षित करता है।भारत का वस्त्र उद्योग, जो एक समय असफलता का सामना कर रहा था, अब विस्तार की कगार पर है तथा अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 तक कुल वस्त्र निर्यात 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा, जिसका श्रेय मुख्य रूप से भारत के बढ़ते व्यापार समझौतों को जाता है। मुक्त व्यापार मध्यवर्ती वस्तुओं में व्यापार को बढ़ावा देकर वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकरण की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे चीन जैसे एकल स्रोतों पर निर्भरता कम होती है। यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' के तहत स्वयं को एक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहता है। ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और कनाडा के साथ भारत की मुक्त व्यापार वार्ता का उद्देश्य ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं IT सेवाओं जैसे क्षेत्रों को बढ़ावा देना है, जिससे भारत की जी वी सी भागीदारी बढ़ेगी। मुक्त व्यापार एक स्थिर व्यापार वातावरण सुनिश्चित करके निवेशकों का विश्वास बढ़ाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप विशेष रूप से विनिर्माण और सेवाओं में एफ डी आई प्रवाह में वृद्धि होती है। टैरिफ रियायतों की पेशकश करके भारत अपने बड़े घरेलू बाज़ार तक पहुँच बनाने के इच्छुक साझेदार देशों से निवेश आकर्षित करता है। इसके अलावा, अक्तूबर 2021 में, यू ए इ ने स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने में मदद के लिये भारत को 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर की संप्रभु निधि आवंटित करने का वचन दिया।व्यापार समझौते कच्चे तेल, एल एन जीऔर दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे महत्त्वपूर्ण कच्चे माल के शुल्क मुक्त या रियायती आयात की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलन सुनिश्चित होता है। यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत का लक्ष्य स्वच्छ ऊर्जा का अंगीकरण तथा कुछ देशों पर आयात निर्भरता कम करना है। भारत सक्रिय रूप से खनिज सुरक्षा साझेदारी जैसी पहलों में शामिल होकर, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ साझेदारी के माध्यम से दुर्लभ तत्त्वों को सुरक्षित करने का प्रयास कर रहा है। मुक्त व्यापार से चावल, मसाले और समुद्री उत्पादों जैसे भारतीय कृषि निर्यात के लिये नए बाज़ार खुलेंगे, जिससे किसानों की आय एवं ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिलेगा। हालाँकि, डेयरी जैसे कमज़ोर क्षेत्रों को अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धा से बचाने के लिये वार्ता की आवश्यकता है। मुक्त व्यापार आर्थिक कूटनीति के लिये महत्त्वपूर्ण साधन हैं, जो भारत के वैश्विक प्रभाव को मज़बूत करते हैं और चीन-केंद्रित आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता को कम करते हैं। विविध साझेदारों के साथ जुड़कर भारत क्षेत्रीय व्यापार में चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करता है तथा अपनी हिंद-प्रशांत रणनीति को बढ़ावा देता है। हमारे देश में संरक्षणवाद के कारण कई प्रमुख मुद्दे उत्पन्न हुए हैं जैसे निर्यात अवसरों में कमी और व्यापार बाधाएँ, व्यापार युद्ध और प्रतिशोधात्मक शुल्क, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश और पूंजी प्रवाह में कमी, आई टी और सेवा निर्यात पर प्रतिबंध, आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान और उच्च आयात लागत, भारतीय फार्मा निर्यात और जेनेरिक दवा बाज़ार की बढ़ती लागत, बहुपक्षीय व्यापार समझौतों में भारत की भूमिका कमज़ोर होना, सस्ते आयात तक सीमित पहुँच के कारण मुद्रास्फीति संबंधी दबाव, वैश्विक व्यापार नीति में भारत के भू-राजनीतिक प्रभाव पर प्रभाव आदि हैं। बदलते भू-आर्थिक परिदृश्य में भारत अपने आर्थिक हितों की रक्षा कई तरीकों से कर सकता है इन में बाज़ार विविधीकरण के लिये मुक्त व्यापार समझौतों में तीव्रता, घरेलू विनिर्माण और वैश्विक मूल्य शृंखला एकीकरण को मज़बूत करना, व्यापार कूटनीति और रणनीतिक आर्थिक गठबंधनों को बढ़ाना, सेवा व्यापार और डिजिटल अर्थव्यवस्था सहयोग का विस्तार, विविधीकरण और हरित परिवर्तन के माध्यम से ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूत करना, कृषि व्यापार को सुदृढ़ बनाना और वैश्विक खाद्य सुरक्षा में भूमिका बढ़ाना, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करना और औद्योगिक नीति को सुदृढ़ बनाना, वैश्विक झटकों के विरुद्ध वित्तीय और मौद्रिक समुत्थानशक्ति को सुदृढ़ करना आदि शामिल हैं। अंत में कह सकते हैं कि संरक्षणवाद की ओर तीव्रता से बढ़ रहे विश्व में, भारत को बाज़ार अभिगम बढ़ाने, वैश्विक मूल्य शृंखलाओं को सुदृढ़ करने और निवेश आकर्षित करने के लिये मुक्त व्यापार का रणनीतिक रूप से लाभ उठाना चाहिये। वैश्विक व्यापार व्यवधानों से निपटने के लिये घरेलू उद्योग संरक्षण और व्यापार उदारीकरण के बीच संतुलन बनाना महत्त्वपूर्ण है। विनिर्माण को मज़बूत करना, अनुकूल व्यापार शर्तों पर वार्ता करना और आर्थिक कूटनीति को बढ़ावा देना भारत को अपने भू-आर्थिक हितों को सुरक्षित करने में मदद करेगा।