भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां इस में कोई दो राय नहीं है कि जैसे ही डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार अमेरीका के राष्ट्रपति बने हैं उनकी नई नीतियों के चलते पूरा विश्व प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रहा है। विशेषज्ञों की मानें तो अब वह वक्त आ गया है जब भारत-यूरोपीय संघ अपने अपने हितों को सर्वोपरि रखते हुए आपस में साझेदारी को और मजबूती प्रदान करें। भारत के लिये यूरोपीय संघ के साथ व्यापार, सुरक्षा और प्रौद्योगिकी संबंधों को गहरा करना आर्थिक स्थिरता, रणनीतिक विविधीकरण तथा चीन व अमेरिका के लिये एक भू-राजनीतिक प्रतिपक्ष प्रदान करता है। आइये बात करते हैं भारत-यूरोपीय संघ संबंधों के बारे में। यूरोपीय संघ भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है (साथ ही, भारत यूरोपीय संघ का 9वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है), वर्ष 2023 में भारत के कुल व्यापार में इसका हिस्सा 12.2% होगा, जो अमेरिका और चीन दोनों से आगे होगा। पिछले दशक में भारत और यूरोपीय संघ के बीच वस्तुओं के व्यापार में 90% की वृद्धि हुई, जबकि वर्ष 2020 से वर्ष 2023 तक सेवाओं के व्यापार में 96% की वृद्धि हुई। यूरोपीय संघ से पर्याप्त प्रत्यक्ष विदेशी निवेश होता है, जो भारत के औद्योगिक विकास, रोज़गार सृजन और प्रौद्योगिकी अंतरण में सहायक है। मुक्त व्यापार समझौते पर वार्ता लंबे गतिरोध के बाद वर्ष 2021 में फिर से शुरू हुई, जिसमें टैरिफ कटौती, निवेश संरक्षण और नियामक संरेखण पर ध्यान केंद्रित किया गया। यूरोपीय संघ भारत में अधिक बाज़ार अभिगम चाहता है, जबकि भारत निर्यात और निवेश को बढ़ावा देने के लिये व्यापार बाधाओं को कम करना चाहता है। यूरोपीय संघ भारत के साथ समुद्री सहयोग का विस्तार कर रहा है, गुरुग्राम में भारतीय नौसेना के सूचना संलयन केंद्र में एक संपर्क अधिकारी तैनात कर रहा है। दोनों पक्ष संयुक्त सैन्य अभ्यास और आतंकवाद-रोधी रणनीतियों पर चर्चा के साथ-साथ रक्षा प्रौद्योगिकी में अधिक सहयोग की संभावनाएँ तलाश रहे हैं। यूरोपीय संघ की एशिया के साथ सुरक्षा सहयोग बढ़ाने पहल, भारत सहित एशिया के साथ सुरक्षा संबंधों को बढ़ावा देती है, ताकि हिंद महासागर के प्रमुख समुद्री मार्गों की सुरक्षा की जा सके। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा संबंधों को मज़बूत करना चीन की विस्तारवादी नीति का मुकाबला करने में भारत के हितों के अनुरूप है तथा यूरोपीय भागीदारी के माध्यम से क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाव देता है। भारत-यूरोपीय संघ व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद अर्द्धचालक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करती है। भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा का उद्देश्य वैश्विक व्यापार मार्गों और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाना है। डिजिटल भुगतान और फिनटेक में यूरोपीय संघ-भारत सहयोग बढ़ रहा है, जिसमें सीमा पार डिजिटल लेनदेन पर चर्चा हो रही है। प्रौद्योगिकी संबंधों को मज़बूत करने से नवाचार में भारत का नेतृत्व सुनिश्चित होता है, डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है और चीन के नेतृत्व वाली आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता कम होती है। रूस और चीन के साथ अमेरिका के संभावित साझेदारी से वैश्विक संरेखण में बदलाव आ सकता है, जिससे भारत के लिये साझेदारी को व्यापक बनाना अनिवार्य हो जाएगा। यूरोपीय संघ एक स्थायी और पूर्वानुमानित साझेदार है, जो सुरक्षा निर्भरता के बिना आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग प्रदान करता है। यूरोपीय संघ की रणनीतिक स्वायत्तता का उद्देश्य अमेरिका पर निर्भरता को कम करना है तथा सुरक्षा उलझनों के बिना आर्थिक, तकनीकी और रणनीतिक सहयोग सुनिश्चित करके भारत की बहु-संरेखण नीति के साथ तालमेल स्थापित करना है। यूरोपीय संघ भारत की व्यापार विविधीकरण की रणनीति के साथ तालमेल बिठाते हुए चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम कर रहा है। जैसे-जैसे ट्रान्स-अटलांटिक तनाव बढ़ रहा है, यूरोपीय संघ स्वतंत्र विदेश नीति चाहता है, जिससे भारत का कूटनीतिक प्रभाव बढ़ रहा है। दोनों साझेदार जी 20, विश्व व्यापार संगठन और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सहित बहुपक्षीय संस्थाओं में नियम-आधारित व्यवस्था का समर्थन करते हैं। यह भी सच है कि भारत-यूरोपीय संघ ने इस क्षेत्र में कई प्रयास किये हैं जैसे रणनीतिक सहयोग एवं वैश्विक शासन, ऊर्जा एवं जलवायु कार्रवाई, यूरोपीय संघ-भारत स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु साझेदारी, यूरोपीय संघ-भारत ग्रीन हाइड्रोजन साझेदारी, व्यापार एवं आर्थिक सहयोग, यूरोपीय संघ-भारत व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद, ग्लोबल ग्रीन बॉण्ड पहल, संधारणीय शहरीकरण और कनेक्टिविटी, भारत-यूरोपीय संघ शहरी मंच, सामाजिक विकास और लैंगिक समानता, वी-इम्पॉवर इंडिया पहल आदि हैं। भारत-यूरोपीय संघ संबंधों के लिये कई चुनौतियाँ भी है इन में अवरुद्ध मुक्त व्यापार समझौता वार्ता, निवेश बाधाएँ और विनियामक बाधाएँ, डेटा गोपनीयता विनियम, विदेश नीति में मतभेद, सीमित रक्षा सहयोग, आपूर्ति शृंखला जोखिम शामिल हैं। इन दोनों के संबंधों में मजबूती के लिए कई तरीके अपनाने होंगे जैसे एफ टी ए को तीव्र गति देना और व्यापार बाधाओं को दूर करना, डेटा-साझाकरण कार्यढाँचे पर वार्ता, रक्षा एवं सुरक्षा संबंधों को मज़बूत करना, वैकल्पिक आपूर्ति शृंखला विकसित करना, डिजिटल और हरित प्रौद्योगिकी साझेदारी को बढ़ाना, भारत को वैश्विक कूटनीतिक संतुलनकर्त्ता के रूप में स्थापित करना और घरेलू व्यापार एवं निवेश नीतियों में सुधार आदि हैं। भारत को यूरोपीय निवेश को आकर्षित करने के लिये नियामक कार्यढाँचे को सरल बनाना चाहिये, बुनियादी अवसंरचना को बढ़ाना चाहिये तथा नीतिगत स्थिरता सुनिश्चित करनी चाहिये। बौद्धिक संपदा अधिकार सुरक्षा को दृढ़ करने और इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस सुनिश्चित करने से यूरोपीय प्रौद्योगिकी कंपनियाँ भारत में अनुसंधान एवं विकास केंद्र स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित होंगी। अंत में कह सकते हैं कि भारत-यूरोपीय संघ की साझेदारी एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जिसमें आर्थिक, सुरक्षा और तकनीकी सहयोग उनके भविष्य के संबंधों को आयाम दे रहे हैं। व्यापार विवादों, नियामक बाधाओं और भू-राजनीतिक मतभेदों को सुलझाना इस साझेदारी की पूरी क्षमता को साकार करने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा। एक मज़बूत भारत-यूरोपीय संघ गठबंधन वैश्विक स्थिरता को बढ़ाएगा, आर्थिक समुत्थानशक्ति बढ़ाएगा और विकसित वैश्विक व्यवस्था में भारत की भूमिका को सुदृढ़ करेगा।