भुपेंद्र शर्मा, मुख्य संपादक , सिटी दर्पण, चंडीगढ़
जी हां पूरे देश की जनता अब मासूम हिंदू लड़कियों को पहले ब्लैकमेल फिर उनका यौन शोषण और बाद में जबरन धर्म परिवर्तन कराने के आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा के तहत फांसी की सजा देने की मांग कर रही है। गौरतलब है हाल ही में राजस्थान के ब्यावर जिले के विजयनगर में धर्म परिवर्तन का मामला लगातार हैरान करने वाले खुलासे हुए हैं और अभी भी बदस्तूर इनके बारे में कई नई बातों का पता लग रहा है। जो रौंगटे खड़े कर देने वाली हैं। इस मामले में 12-15 युवकों के एक गिरोह को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, जिन्होंने स्कूलों की नाबालिग लड़कियों के साथ ब्लैकमेल, यौन शोषण और जबरन धर्म परिवर्तन कराने की कथित साजिश रची। मामला तब खुला जब पीड़ित परिवारों ने इस संबंध में लिखित में शिकायत दर्ज करवाई। इसके बाद पुलिस ने पांच युवकों को गिरफ्तार कर लिया। साथ ही दो नाबालिगों को हिरासत में लिया है। पुलिस ने पोक्सो एक्ट सहित कई धाराओं में मामला दर्ज किया है और आगे की जांच अभी भी जारी है। उल्लेखनीय है कि इस पूरे मामले की 1992 के अजमेर ब्लैकमेल कांड से तुलना की जा रही है, जिसमें भी स्कूली नाबालिग लड़कियों को निशाना बनाया गया था। अब आइये समझते हैं धर्मांतरण के इस पूरे गोरखधंधे को। याद रहे पूरे मामले का खुलासा तब हुआ , जब एक पीड़िता परिवार के साथ एक नाबालिग युवती पुलिस थाने रिपोर्ट दर्ज करवाने पहुंची। युवती ने बताया कि उसके संपर्क में आया युवक सोहेल मंसूरी उसे मोबाइल फोन जैसे लुभावने तोहफे देकर फुसला रहा था। युवती ने बताया कि युवक एक दिन उसे एक कैफे में लेकर गया। पीड़िता का कहना है कि 'यहां पर मेरे साथ गलत हुआ। वहां पर सोहेल मंसूरी के दोस्त भी थे। उसने वहां पर मेरी फोटो निकाल ली और इसके बाद वह मुझे टॉर्चर करने की लगा कि मेरी अपनी फ्रेंड से बात करवा। आरोप है कि युवक लड़की पर धर्म परिवर्तन का दबाव बना रहा था। साथ ही युवती की फोटो डिलीट करने की एवज में उसकी स्कूल की दूसरी लड़कियों से अपने दोस्तों को संपर्क में लाने का दबाब बना रहा था। इतना ही नहीं पीड़िता ने आरोपी युवकों पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। युवती के अनुसार युवक के गिरोह में कई लड़के हैं, जो साजिश रच कर युवतियों को धर्मांतरण करने में जुटे थे। एक मीडिया चैनल से युवती ने कहा कि अपने जाल में फंसाने के लिए लड़के हर रोज नई-नई गाड़ियां लेकर आते थे। कभी कार, कभी बुलेट... अलग-अलग गाड़ियां होती थी। छात्रा ने यह भी बताया कि धर्म परिवर्तन कराने वालों का एक पूरा गैंग है जो धर्म और जाति के आधार पर लड़की का रेट तय करते हैं जैसे अगर धर्म परिवर्तन में ब्राह्मण की लड़की है तो मुस्लिम लड़के को उसके आका 20 लाख रु देते हैं, इसी प्रकार दलित और अन्य के 10 लाख मिलते हैं। गिरोह के सदस्य लड़कियों पर अपना धर्म अपनाने का दबाव भी बनाते थे। इन मुस्लिम युवकों की ओर से उन्हें धमकियां दी जाती थी, कलमा पढ़ें और रोज़ा रखें। अश्लील फोटो और वीडियो बनाकर उन्हें वायरल करने की धमकी भी दी जाती थी। युवती के खुलासे के बाद पुलिस पूरे मामले में लगातार तफ्तीश कर रही है। पुलिस ने इस मामले में तीन एफ आई आर दर्ज की हैं। गिरफ्तार आरोपियों में रिहान मोहम्मद, सोहेल मंसूरी, लुकमान, अरमान पठान और साहिल कुरैशी शामिल हैं। बताया जा रहा है कि जिन लड़कों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है, वो पढ़े- लिखे नहीं है। अनपढ़ लड़कों के इस गिरोह का काम मासूम बच्चियों को अपने जाल में फंसाना ही है। पुलिस अभी भी फरार आरोपियों की तलाश कर रही है। पीड़ित लड़कियों के बयान मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कर लिए गए हैं। साथ ही मामले को पोक्सो कोर्ट में भेजा जाएगा। पुलिस का कहना है कि आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। गौरतलब है कि यह पहला अवसर नहीं है जब धर्म परिवर्तन की इस प्रकार की सुनियोजित घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है इस से पहले 1992 में अजमेर में 11 से 20 वर्ष की आयु की 250 छात्राएं कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार और ब्लैकमेलिंग की श्रृंखला का शिकार हुईं थीं। फारूक और नफीस चिश्ती के नेतृत्व में अपराधी अजमेर शरीफ दरगाह के खादिम परिवार के विस्तारित सदस्य थे । 1992 में समाप्त होने वाले कई वर्षों में, वे पीड़ितों को दूरदराज के फार्महाउसों या बंगलों में फुसलाते थे, जहाँ उनमें से एक या कई पुरुषों द्वारा उनका यौन उत्पीड़न किया जाता था और महिलाओं को बोलने से रोकने के लिए उनकी नग्न या अन्य तरह की आपत्तिजनक स्थिति में तस्वीरें खींची जाती थीं। [यह घोटाला स्थानीय समाचार पत्र दैनिक नवज्योति और उसके बाद स्थानीय अधिकारियों द्वारा पूर्व जानकारी के आरोपों के बीच पुलिस जांच के माध्यम से प्रकाश में आया। सितंबर 1992 में, 18 अपराधियों पर आरोप लगाए गए, जिनमें से एक की 1994 में आत्महत्या से मृत्यु हो गई। मुकदमे का सामना करने वाले पहले आठ को आजीवन कारावास की सजा मिली, हालांकि चार को बाद में 2001 में राजस्थान उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया। 2007 में, फारूक चिश्ती को एक फास्ट-ट्रैक कोर्ट ने दोषी ठहराया था, लेकिन समय पूरा करने के बाद 2013 में रिहा कर दिया गया था। अभियुक्तों के प्रभाव ने पीड़ितों के लिए गवाही देना मुश्किल बना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कई पीड़ितों ने कलंक और अपने भावी जीवन पर संभावित नतीजों के कारण गवाही देने से इनकार कर दिया, एक चिंता जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणियों में स्वीकार किया। यह मामला क्षेत्र में अन्य आपराधिक गतिविधियों से भी जुड़ा था, जिसमें खलील चिश्ती की संलिप्तता भी शामिल थी , जिसे 1992 में अजमेर में एक हत्या के मामले में फंसाया गया था। अब दुबारा 32 सालों के बाद 2025 में फिर हिंदू कन्याओं के ब्लैकमेल, यौन शोषण और जबरन धर्म परिवर्तन कराने वालों की बात सामने आई है। अब वक्त आ गया है इन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाये ताकि भविष्य में कोई भी कुख्यात एसी हरकत करने से पहले लाख बार सोचे।