जी हां गर भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी में मजबूती चाहिए तो सबसे पहले दोनों देशों के दरमियान व्यापार नीतियों और व्यापक भू-राजनीतिक संतुलन पर गंभीरता से विचार अत्यंत आवश्यक है। अन्यथा उक्त साझेदारी वन साइडिड ही मानी जायेगी, एसा कहना है विभिन्न जाने माने अर्थशास्त्रियों का। उनका मानना है कि वाशिंगटन डीसी में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच हाल ही में हुई उच्च स्तरीय कूटनीतिक साझेदारी ने व्यापक प्रशासनिक अनिश्चितताओं के बीच स्थिरता का एक क्षण प्रदान किया है। हालांकि द्विपक्षीय बैठक में प्रौद्योगिकी, रक्षा, ऊर्जा और क्षेत्रीय सहयोग जैसे कई क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण चर्चा भी हुई। इसने वैश्विक गतिशीलता में बदलाव के बावजूद भारत-अमेरिका संबंधों की समुत्थानशक्ति को प्रदर्शित भी किया, खास तौर पर प्रौद्योगिकी अंतरण और रक्षा सहयोग जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में। मगर बावजूद इसके व्यापार नीतियों और व्यापक भू-राजनीतिक संतुलन के संबंधों में अभी और घनिष्ठता बाकी है। आइये बात करते हैं भारत और अमेरिका के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों के बारे में। भारत और अमेरिका ने अपने रक्षा संबंधों का काफी विस्तार किया है, तथा वे क्रेता-विक्रेता संबंध से आगे बढ़कर सह-उत्पादन एवं प्रौद्योगिकी साझाकरण की ओर बढ़ गए हैं। भारत को प्रमुख रक्षा साझेदार का दर्जा दिये जाने तथा एस टी ए-1 में शामिल किये जाने से उच्च तकनीक रक्षा व्यापार में सुविधा होगी, जिसमें एफ-35 लड़ाकू विमानों तक संभावित अभिगम भी शामिल है। ‘ऑटोनोमस सिस्टम्स इंडस्ट्री अलायंस’ और अंडुरिल्स इडस्ट्रीज़ एवं महिंद्रा ग्रुप और एल3 हैरिस-भारत इलेक्ट्रॉनिक्स के बीच समझौते एआई-संचालित रक्षा क्षमताओं को बढ़ाते हैं। जैवलिन मिसाइलों और स्ट्राइकर व्हीकल्स (वर्ष 2025) की खरीद तथा विस्तारित ‘टाइगर ट्रायम्फ’ त्रि-सेवा अभ्यास बढ़ती हुई अंतर-संचालन क्षमता को प्रदर्शित करते हैं। दोनों देशों का लक्ष्य वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करके 500 बिलियन डॉलर तक पहुँचाना है, जिसमें बाज़ार अभिगम, टैरिफ और आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलता जैसे दीर्घकालिक मुद्दों का समाधान करना शामिल है। वर्ष 2025 तक नियोजित द्विपक्षीय व्यापार समझौता निष्पक्ष व्यापार को बढ़ाएगा, टैरिफ को कम करेगा तथा विनियमन को आसान बनाएगा, विशेष रूप से कृषि,आई सी टी एवं औद्योगिक वस्तुओं में। भारत ने बॉर्बन, मोटरसाइकिल और आई सी टी उत्पादों पर टैरिफ कम कर दिया है, जबकि अमेरिका ने भारतीय आम, अनार और फार्मा उत्पादों तक बाज़ार अभिगम में सुधार किया है। लगभग 155 भारतीय कंपनियों ने अमेरिका में 22 अरब डॉलर का निवेश किया है, जबकि टेस्ला और माइक्रोन जैसी अमेरिकी कंपनियाँ भारत में अपना विस्तार कर रही हैं। ऊर्जा सुरक्षा भारत-अमेरिका संबंधों का एक प्रमुख स्तंभ है, जिसमें अमेरिका भारत को कच्चे तेल, एल एन जी और पेट्रोलियम उत्पादों का प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता बन गया है। अमेरिका-भारत ऊर्जा सुरक्षा साझेदारी (वर्ष 2025) हाइड्रोकार्बन व्यापार, नवीकरणीय और परमाणु ऊर्जा पर केंद्रित है, जिसमें भारत अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी में पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल होने के लिये तैयार है। भारत ने अमेरिका से 5.12 मिलियन टन एल एन जी आयात किया, जो कुल एल एन जी आयात का 20% है। दोनों राष्ट्र ‘यूएस-इंडिया ट्रस्ट’ पहल (2025) के तहत ए आई, अर्द्धचालक, क्वांटम और जैव प्रौद्योगिकी में सहयोग को आगे बढ़ा रहे हैं। रिकवरी और प्रसंस्करण पहल लिथियम, दुर्लभ मृदा तत्त्व और क्रिटिकल मिनरल्स में सहयोग को मज़बूत करती है, जो इ वी एवं रक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। भारत और अमेरिका मानव अंतरिक्ष उड़ान और ग्रह अन्वेषण में नासा इसरो साझेदारी के साथ अंतरिक्ष सहयोग को मज़बूत कर रहे हैं।प्रमुख क्वाड साझेदारों के रूप में, भारत और अमेरिका चीन की आक्रामकता का मुकाबला करते हुए एक स्वतंत्र, खुले और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये प्रतिबद्ध हैं। प्राकृतिक आपदाओं के समय नागरिक मोचन को समर्थन देने के लिये साझा एयरलिफ्ट कैपेसिटी और अंतर-संचालन क्षमता में सुधार के लिये समुद्री गश्त पर क्वाड पहल वैश्विक ध्यान आकर्षित कर रही है। क्वाड क्रिटिकल और इमर्जिंग टेक ग्रुप बुनियादी अवसंरचना, व्यापार एवं डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देते हैं। भारतीय-अमेरिकी समुदाय, जिसकी संख्या वर्ष 2023 में 5 मिलियन तक हो जाएगी, कई बाधाओं को पार कर सबसे प्रभावशाली आप्रवासी समूहों में से एक बन गया है।अमेरिका में 3.3 लाख से अधिक भारतीय छात्रों ने (वर्ष 2024 तक) वहाँ की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है जिसमें शिक्षा इस द्विपक्षीय संबंध की आधारशिला है। अब बात करते हैं भारत और अमेरिका के बीच टकराव के प्रमुख क्षेत्रों के बारे में। इनमें व्यापार विवाद और टैरिफ बाधाएँ, रक्षा प्रौद्योगिकी और निर्यात नियंत्रण प्रतिबंध, चीन नीति और सामरिक स्वायत्तता पर मतभेद, भारतीय पेशेवरों के लिये वीज़ा और आव्रजन प्रतिबंध, असैन्य परमाणु सहयोग में प्रगति का अभाव, डिजिटल व्यापार और डेटा स्थानीयकरण मुद्दे, बहुपक्षीय मंचों और वैश्विक शासन पर मतभेद शामिल हैं। बावजूद इनके अमेरिका के साथ संबंधों को और भी बेहतर बनाने के लिये भारत कई उपाय अपना सकता है जैसे रक्षा सह-विकास और औद्योगिक सहयोग को मज़बूत करना, व्यापार बाधाओं का समाधान और द्विपक्षीय समझौतों का विस्तार, ऊर्जा और जलवायु सहयोग को गहन करना, प्रौद्योगिकी और नवाचार साझेदारी को गति देना, सामरिक और हिंद-प्रशांत सहयोग बढ़ावा देना, आव्रजन और गतिशीलता कार्यढाँचे में सुधार, बहुपक्षीय और वैश्विक शासन सहभागिता का विस्तार, डिजिटल और डेटा गवर्नेंस सहयोग को मज़बूत करना, राजनयिक संलग्नता के माध्यम से द्विपक्षीय मतभेदों का समाधान आदि हैं। अंत में कह सकते हैं कि यद्यपि रक्षा, व्यापार, प्रौद्योगिकी और ऊर्जा सहयोग में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन व्यापार बाधाओं, रणनीतिक स्वायत्तता संबंधी चिंताओं एवं नियामक बाधाओं जैसी प्रमुख चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं। संस्थागत कार्यढाँचों को मज़बूत करना, उभरती प्रौद्योगिकियों में सह-विकास को बढ़ावा देना और व्यापार असंतुलन का हल करना इस साझेदारी की पूरी क्षमता का सदुपयोग करने में महत्त्वपूर्ण सिद्ध होगा।