जी हां जहां एक ओर हम सब सनातनी सदैव अपने हिंदू धर्म पर आधारित पावन ग्रंथों में लिखित 'वसुधैव कुटुंबकम' अर्थात 'पूरा विश्व एक परिवार है' और अतिथि देवो भव" यानि अतिथि देवता के समान होता है आदि पवित्र लेखों का अनुसरण करते हुए पूरे विश्व को 144 सालों के बाद प्रयागराज स्थित त्रिवेणी के संगम पर होने वाले दुर्लभ संयोग का साक्षी होने के लिए न केवल आमंत्रित कर रहे हैं बल्कि उन्हें इस पावन जल में आस्था की डुबकी लगाने के लिए भी प्रेरित कर रहे हैं वहीं कई हिंदू संस्थाएं, अखाड़े इस महाकुंभ के पावन अवसर पर सांप्रदायिकता के तवे पर अपनी निजी रोटीयां सेकने से बिलकुल भी गुरेज नहीं कर रहीं भले ही इससे उनके अपने देश में सांप्रदायिक माहौल को फलने फूलने के लिए एक बड़ा मौका ही प्रदान क्यों न हो रहा हो। गर हम कुंभ के इतिहास पर गौर करें तो अक्सर हम देखते हैं कि पिछले लंबे अर्से से साधु संत और अखाड़े मेले में आते रहे हैं उन्हें पूजा की दृष्टि से देखते हुए कुंभ को लोकपर्व के तौर पर ही मनाया जाता रहा है मगर इस बार के महाकुंभ को देखते हुए एसा लगता है कि यह लोक पर्व कम बल्कि सांप्रदायिकता का अखाड़ा ज्यादा लगने लगा है जिसमें विभिन्न अखाड़ों के महांमंडलेश्वर और राजनेता लोग खुल कर न केवल इस पर अपनी टिप्पणीयां करने लगे हैं बल्कि इसे सनातन के लिए सही और वैद्य जताने के ठेकेदार की भूमिका में भी सक्रिय होने लगे हैं। यहां सांप्रदायिक विभाजन और नफ़रत की शुरुआत अखाड़ा परिषद ने कुंभ में मुसलमानों को बैन करके की। और तो और अखाड़ा परिषद अध्यक्ष रवींद्र पुरी ने मेले में पत्रकार वार्ता करके यहां न केवल सनातन बोर्ड के गठन की मांग उठा डाली बल्कि यह भी कहा कि सनातन बोर्ड के माध्यम से वे उन सभी मठों और मंदिरों का पुनः अधिग्रहण करेंगे जो मुसलमानों के क़ब्ज़े में हैं। इतना ही नहीं ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेशवरानंद सरस्वती ने ‘मेरे कुंभ में तेरा (मुसलमान) क्या काम है’ का भी एलान कर डाला इसके अलावा उन्होंने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के खिलाफ़ अपनी धर्म संसद में निंदा प्रस्ताव पास भी कर दिया मानो वे इन बातों के लिए किसी खास अवसर का इंतजार कर रहे थे। शंकराचार्य यहीं नहीं रुके उन्होंने उन्हें एक महीने के अंदर माफ़ी मांगने या हिंदू धर्म से बहिष्कृत करने का ऐलान किया। इस बार महाकुंभ में एक बात उभर कर सामने आने लगी है वह यह कि यहां पहले की भांति सांप्रदायिकता के ऊपर दिये गये किसी बयान को ज्यादा तरजीह दी जाने लगी है उसकी समाचार पत्रों में तो सुर्खियां बनती ही हैं साथ में सोशल मीडिया जो आज सरकारों के हाथों से भी बेकाबू हो चुका है में इनका खूब प्रचार व प्रसार होने लगा है इस बात पर ध्यान न देते हुए कि इसका पूरे देश और समाज पर क्या असर होगा। इस बार कुंभ मेले में यति नरसिंहानंद जो जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर हैं, सदैव स्थानीय राज्य सरकार के साथ दिखाई देने लगे हैं याद रहे इन्होंने जूना अखाड़े के अंदर दो-दिवसीय (25-26 जनवरी) ‘धर्म-संवाद’ कार्यक्रम का आयोजन किया था और नफ़रती बयानबाज़ी की थी कहा जाता है कि जूना अखाड़े में इनकी पकड़ मजबूत होती जा रही है और ये दावा करते हैं कि इनके साढ़े पांच लाख सदस्य हैं। इतना ही नहीं इसी अखाड़े के अन्य महंत हरि गिरि जिन्हें अखाड़े का मुख्य संरक्षक भी कहा जाता है ने अपने बयानों में आग उगलते हुए कहा था कि ‘सनातन धर्म पर लगातार हो रहे आक्रमणों और आघातों से जूना अखाड़ा आहत और विचलित है और सनातन धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष को भी तैयार हो रहा है। अखाड़े के वरिष्ठ संत अब युवा संन्यासियों को धर्म की रक्षा के काम में लगाने की तैयारी में जुट गए हैं’। उन्होंने नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर यह मांग भी की है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान पर सैन्य कार्रवाई करके वहां हिंदुओं के लिए अलग राष्ट्र बनाएं। इसके अलावा महाकुंभ में उन्होंने मुस्लिम और हिंदुओं की आबादी की तुलना करते हुए हिंदुओं को मुस्लमानों से ख़तरा भी बताया है और हर हिंदू परिवार को 4-5 बच्चे पैदा करने की नसीहत भी दी है। याद रहे महांमंडलेश्वर यति नरसिंहानंद ख़ुद अपनी ‘धर्म सेना’ भी चलाते हैं, जिसके तहत वे ग़ाज़ियाबाद में शस्त्र ट्रेनिंग दे रहे हैं। कुंभ शुरु होने से पहले सितंबर 2024 में कुख्यात गैंगस्टर और छोटा राजन गिरोह के बदमाश रहे पदाधिकारी, प्रकाश पांडेय को जूना अखाड़े का महामंडलेश्वर बना दिया गया। कुंभ के दौरान जूनागढ़ अखाड़ा परिषद से निकाले जाने के बाद बीजेपी के पूर्व सांसद महेश गिरि ने अखाड़े के संरक्षक हरि गिरि पर अखाड़े में वेश्याएँ और शराब लाने का आरोप भी लगाया था। कुंभ मेला क्षेत्र में 27 जनवरी को लगे एक शांति सेवा शिविर में कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर द्वारा बुलाए गए धर्म संसद में सनातन बोर्ड की स्थापना, वक्फ़ बोर्ड को खत्म करने, दो धर्मों के सदस्यों के बीच शादियों पर प्रतिबन्ध लगाने जैसे प्रस्ताव पारित किये वह भी सरेआम जिसे सभी समाचार चैनलों और पत्रों ने प्रमुखता से दिखाया था। धर्म संसद में जगद्गुरु विद्या भास्कर ने ‘संभल, मथुरा, विश्वनाथ, तीनों लेंगे एक साथ’ नारा देते हुए प्रधानमंत्री मोदी से प्लेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट को खत्म करने की मांग भी की थी। अयोध्या के संत वल्लभदास महाराज ने नारा दिया- रामलला हम आएंगे, मंदिर हर जगह बनाएंगे का नारा दिया था। देवकीनंदन ठाकुर ने -बहुत सह लिया अब न सहेंगे, अपना हक़ हम लेकर रहेंगे का भी एलान किया था। उक्त सभी बातों के जरिए हमारा तात्पर्य यही कतई नहीं है कि हिंदुओं को अपने धर्म की रक्षा के लिए किसी भी तरह से पीछे हटना चाहिए बल्कि हमारा कहने का मतलब सिर्फ इतना ही है कि सांप्रदायिकता की आग इतना भी न बढ़ने दिया जाये जिससे पूरा समाज की लपटों में घिर जाये। क्योंकि आग केवल आग होती है यह किसी धर्म, मजहब, जाति और क्षेत्र को नहीं पहचानती, इसकी एक चिंगारी से कहीं कोई एक दल अपने फायदे के लिए पूरे धर्म की आहूति न दे इस पर केंद्र और राज्य सरकार दोनों को स्तर्क रहने की जरूरत है।