जी हां बॉलीवुड की बहुचर्चित हिंदी फिल्म का यह गीत उस जानकारी पर एक दम स्टीक बैठता है जिससे हमें पता चलता है कि प्रधानमंत्री आवास योजना, जल जीवन मिशन और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) जैसी 50 से अधिक प्रमुख योजनाओं के लिए केंद्र द्वारा जारी किए गए 2.46 लाख करोड़ रुपये में से लगभग 62% या लगभग 1.54 लाख करोड़ रुपये 31 दिसंबर तक राज्य एजेंसियों के पास बेकार पड़े रहे। कहने का मतलब यह है कि पूरे देश में अपने अपने राज्यों अथवा केंद्र शासित प्रदेशों में विकास के लिए पैसे फंडिंग का राग अलापने वाले ज्यादातर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने वर्ष 2024 में विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का 62% फंड इस्तेमाल ही नहीं किया यानि गर वे उक्त पैसे का इस्तेमाल कर लेते तो उनके प्रदेशों अथवा केंद्र शासित प्रदेशों में इसका सीधा लाभ आम जनता को ही मिलता। उक्त जानकारी के बाद तो यही गुनगुनाने को मन करता है कि जब कदम ही साथ न दें तो मुसाफिर क्या करे मंजिलें अपनी जगह हैं और फासले अपनी जगह...। इस सच्चाई से एक बात तो उभर कर सामने आती है वह यह कि हर मामले में केंद्र सरकार को जिम्मेवार ठहराना ठीक न होगा। केंद्र सरकार देश के लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाएं ला सकती है उसके लिए फंड दे सकती है खर्च तो राज्य सरकारों को ही करना है। इसमें भी गर राजनीति होने ले तो यकीनन आम जनता की भलाई नहीं होगी। गौरतलब है कि पहली बार 2025-26 के लिए केंद्रीय बजट में एक नया विवरण शामिल किया गया है जो 500 करोड़ रुपये और उससे अधिक की चुनिंदा केंद्र प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) के संबंध में राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ एकल नोडल एजेंसी (एसएनए) खातों के तहत बची हुई निधि को दर्शाता है। व्यय सचिव मनोज गोविल ने कहा कि इसका उद्देश्य व्यय की निगरानी करना और संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों और राज्यों जैसी कार्यान्वयन एजेंसियों को विकास कार्यों में तेजी लाने के लिए प्रेरित करना है. सीएसएस केंद्र और राज्य द्वारा एक निर्धारित अनुपात में संयुक्त रूप से वित्त पोषित योजनाएं हैं और प्रत्येक सीएसएस को लागू करने के लिए राज्य एक एसएनए को नामित करता है। गोविल ने कहा कि बजट में सभी सीएसएस का ब्यौरा नहीं है, लेकिन इसमें कुछ बड़ी योजनाओं का उल्लेख है। उन्होंने कहा, ‘हम देखते हैं कि कुछ योजनाओं में राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों के पास बड़ी मात्रा में धन उपलब्ध है. इसलिए, हम इस पर नज़र रख रहे हैं।’ इसके लिए डेटा सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (पीएफएमएस) से लिया गया है, जो सभी योजना योजनाओं के लिए केंद्र का वित्तीय प्रबंधन प्लेटफ़ॉर्म है। उन्होंने कहा, ‘इसलिए हम इस पर निगरानी रख रहे हैं और हम इन योजनाओं के लिए जिम्मेदार केंद्र सरकार के मंत्रालयों तथा राज्यों से आग्रह कर रहे हैं कि वे देखें कि उन्हें दिया जाने वाला यह पैसा बैंक खाते में न रहे, बल्कि उसी उद्देश्य के लिए उपयोग किया जाए जिसके लिए इसे स्वीकृत किया गया था।’ आंकड़ों के अनुसार, समग्र शिक्षा के लिए केंद्र ने 2024-25 के बजट अनुमान (बीई) में योजना के बजट को मामूली रूप से घटाकर 37,500 करोड़ रुपये से संशोधित अनुमान (आरई) चरण में 37,010 करोड़ रुपये कर दिया था। 31 दिसंबर, 2024 तक केंद्र ने इस योजना के तहत राज्यों को 17,605.05 करोड़ रुपये जारी किए थे, जिसमें राज्य के हिस्से सहित 11,516.03 रुपये की बड़ी अव्ययित राशि अभी भी उपलब्ध है। इसी प्रकार प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) शहरी के लिए संशोधित बजट अनुमान को 23,712.04 करोड़ रुपये से घटाकर 11,609.04 करोड़ रुपये कर दिया गया, क्योंकि आंकड़ों के अनुसार, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पास अभी भी 6,012.39 करोड़ रुपये से अधिक राशि खर्च नहीं की गई थी। जल जीवन मिशन (जेजेएम) या राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन के तहत वित्त वर्ष 25 के लिए बजट अनुमान 70,162.90 करोड़ रुपये था, संशोधित अनुमान चरण में इसे घटाकर 22,694 करोड़ रुपये कर दिया गया। केंद्र ने 31 दिसंबर, 2024 तक 21,871.80 करोड़ रुपये का अपना हिस्सा जारी किया और राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के पास कुल 13,782.82 करोड़ रुपये उपलब्ध थे। हालांकि, जेजेएम के तहत केंद्र का हिस्सा राज्य के खजाने में नहीं बल्कि संबंधित एस्क्रो खातों में स्थानांतरित किया जाता है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम के आंकड़ों से पता चलता है कि 2024-25 के लिए बजट अनुमान और संशोधित अनुमान दोनों 86,000 करोड़ रुपये थे। केंद्र ने 31 दिसंबर, 2024 तक राज्यों को 79,625.97 करोड़ रुपये जारी किए और उस तारीख तक राज्यों के पास उपलब्ध अप्रयुक्त धनराशि 4,351.55 करोड़ रुपये थी। 2021-22 से केंद्र सरकार एसएनए मॉडल के माध्यम से सीएसएस फंडिंग को लागू कर रही है, जिसका उद्देश्य राज्यों को फंड प्रवाह में पारदर्शिता बढ़ाना है। बजट दस्तावेज में कहा गया है, ‘इसका उद्देश्य व्यय की गति के आधार पर राज्यों को योजना निधि का समय पर जारी होना सुनिश्चित करना है।’