लखनऊ, 25 मार्च 2025
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘भारतीय योग परंपरा में योगिराज बाबा गंभीरनाथ का योगदान’ को संबोधित किया। इस अवसर पर उन्होंने ‘अप्राप्य आयाम’ एवं ‘एथिक्स, इंटेग्रिटी एवं एप्टीट्यूड’ पुस्तकों का विमोचन किया और नाथ संप्रदाय के 20 गुरुओं के तैलचित्र प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
मुख्यमंत्री ने संगोष्ठी को एक विशिष्ट विषय पर आधारित महत्वपूर्ण आयोजन बताया। उन्होंने कहा कि विश्व के लगभग 200 देशों की अपनी पहचान, परंपराएं और विशिष्टताएँ हैं। कई देशों ने व्यापार, कला, नवाचार और सांस्कृतिक धरोहर के माध्यम से अपनी पहचान बनाई है। लेकिन भारत ने भौतिक सीमाओं को पार करते हुए चेतना के उच्च स्तर तक पहुंचकर ब्रह्मांड के रहस्यों को उद्घाटित किया है।
उन्होंने कहा कि भारतीय मनीषियों ने ‘एकम सत् विप्रा बहुधा वदन्ति’ की अवधारणा प्रस्तुत की है, जिसका अर्थ है कि सत्य एक है, भले ही उसके व्याख्यान के मार्ग भिन्न हों। इस विचारधारा को विश्व ने सम्मान दिया है, लेकिन दुर्भाग्यवश हमारे ही कुछ लोगों ने इसे नकारने का प्रयास किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा आरती कर जब आचमन किया, तो विश्व प्रयागराज महाकुंभ-2025 में भाग लेने को उत्सुक हो गया। 66 करोड़ श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान और आचमन किया, जो भारत के आध्यात्मिक बल का प्रमाण है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि भारत ने न केवल आध्यात्मिकता में बल्कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भी प्राचीन काल से योगदान दिया है। जब विश्व अंधकार में था, तब 5000 वर्ष पूर्व भारतीय ऋषियों ने ज्ञान को संहिताबद्ध किया। महाभारत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के गूढ़ सिद्धांतों को संजोए हुए है, और उपनिषद ब्रह्मांड के रहस्यों का सबसे बड़ा भंडार हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले दस वर्षों में भारत की वैश्विक छवि में सकारात्मक परिवर्तन आया है। पहले भारत को वैश्विक मंच पर वह सम्मान नहीं मिलता था, जो आज प्राप्त हो रहा है। भारत की योग परंपरा को अब 193 देशों ने अपनाया है, और यहां तक कि चीन भी योग को अपने समाज में शामिल कर रहा है।
उन्होंने भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्यों का उल्लेख करते हुए कहा कि हमारे किसी भी शासक ने जबरन किसी अन्य देश पर आधिपत्य स्थापित नहीं किया। भगवान श्रीराम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद विभीषण का अभिषेक किया, स्वयं राजा बनने की इच्छा नहीं जताई। यही भारतीय परंपरा की महानता है।
महाकुंभ प्रयागराज-2025 की तैयारियों के बारे में मुख्यमंत्री ने बताया कि पहली बैठक नवंबर 2022 में हुई थी और योजनाबद्ध ढंग से कार्यों को क्रियान्वित किया गया। इस आयोजन पर 7000 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जिससे उत्तर प्रदेश को 3 लाख करोड़ रुपये का आर्थिक लाभ मिला। इस आयोजन ने यह सिद्ध किया कि आस्था भी आर्थिक उन्नति का आधार बन सकती है।
मुख्यमंत्री ने नाथ पंथ की परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि यह साधना पद्धति भगवान शिव से प्रारंभ होकर महायोगी गोरखनाथ तक विकसित हुई। तिब्बत से श्रीलंका और बांग्लादेश से अफगानिस्तान तक इस परंपरा के चिन्ह विद्यमान हैं। योगिराज बाबा गंभीरनाथ ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया और अपनी साधना से समाज को प्रभावित किया।
योगिराज बाबा गंभीरनाथ की साधना यात्रा के संदर्भ में मुख्यमंत्री ने बताया कि उन्होंने काशी, प्रयागराज और नर्मदा परिक्रमा जैसी कठिन साधनाएँ कीं। गोरखनाथ मंदिर में उनकी समाधि आज भी आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र बनी हुई है। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान दिया, जिससे महाराणा प्रताप कॉलेज की स्थापना हुई, जो बाद में गोरखपुर विश्वविद्यालय का आधार बना।
मुख्यमंत्री ने कहा कि बाबा गंभीरनाथ ने आध्यात्मिक साधना के माध्यम से लोककल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। उनकी शिक्षाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हमें उनसे प्रेरणा लेकर अपनी आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने इस संगोष्ठी को भविष्य की पीढ़ी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया और कहा कि विश्वविद्यालय में बाबा गंभीरनाथ चेयर की स्थापना की जानी चाहिए, जिससे उनकी साधना और योगदान को शोध का विषय बनाया जा सके। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय संत परंपरा के ग्रंथों को अकादमिक अध्ययन का हिस्सा बनाना चाहिए, जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी अपनी सांस्कृतिक विरासत से परिचित हो सके।