हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region) आज वैश्विक शक्तियों के लिए सामरिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण बन चुका है। अमेरिका, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देश इस क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाने की होड़ में जुटे हुए हैं। यह प्रतिस्पर्धा अब केवल सैन्य मौजूदगी तक सीमित नहीं रही, बल्कि आर्थिक, तकनीकी और भू-राजनीतिक प्रभाव के विस्तार तक जा पहुंची है।
चीन "बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव" (BRI) के तहत श्रीलंका, पाकिस्तान और अफ्रीकी देशों में बंदरगाहों के विकास के माध्यम से समुद्री पकड़ मजबूत कर रहा है। वहीं, अमेरिका अपने पुराने सहयोगियों—भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ क्वाड (QUAD) साझेदारी को सक्रिय कर, क्षेत्र में सामरिक संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।
फ्रांस और ब्रिटेन भी इस दौड़ में पीछे नहीं हैं। फ्रांस ने रीयूनियन और मयोट द्वीपों के माध्यम से इस क्षेत्र में स्थायी उपस्थिति बना रखी है, जबकि ब्रिटेन "डिएगो गार्सिया" द्वीप पर अमेरिकी सहयोग के तहत अपनी सैन्य भूमिका को मजबूत कर रहा है।
भारत के लिए यह स्थिति रणनीतिक रूप से अत्यंत संवेदनशील है। हिंद महासागर उसकी ऊर्जा आपूर्ति, व्यापारिक मार्गों और समुद्री सुरक्षा के लिए रीढ़ की हड्डी समान है। ऐसे में भारत ‘सागर’ (SAGAR – Security and Growth for All in the Region) नीति के तहत क्षेत्रीय सहयोग और संतुलन बनाए रखने के प्रयास कर रहा है।
हिंद महासागर अब सिर्फ एक समुद्री मार्ग नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन का केंद्र बन चुका है।