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चंडीगढ़

Africa: अफ्रीका के 24 ट्रिलियन डॉलर के खजाने को लूटने की रेस, चीन-अमेरिका के चक्कर में जंग का मैदान कैसे बना कांगो?

January 29, 2025 05:21 AM

सिटी दर्पण

ब्राजाविल, 28 जनवरी: अफ्रीकी देश गरीब और बदहाल भले ही हों, लेकिन उनकी मजबूरी का फायदा उठाने की रेस सुपरपारवर्स के बीच लगी है। पूर्वी लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो (DRC) के सबसे बड़े शहर गोमा में हालात खतरनाक हो चुके हैं और सोमवार (27 जनवरी) को रवांडा समर्थित विद्रोहियों ने शहर पर कब्जा करने का दावा किया है। ये शहर सामरिक तौर पर काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहां की जमीन में खरबों डॉलर की खनिज संपदा है, जिसे अभी तक बाहर नहीं निकाला गया है। एक्सपर्ट्स का कहना है, कि M23 के लड़ाकों ने शहर को अपने कंट्रोल में ले लिया है। इस शहर में करीब 20 लाख लोग रहते हैं और कब्जे का मतलब ये है, कि पहले से ही अशांत इस अफ्रीकी देश में संघर्ष का और भी तेज होना। माना जा रहा है, कि हालात खतरनाक होने के बाद पहले से ही गंभीर मानवीय संकट और भी गंभीर हो सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, गोमा शहर पर विद्रोहियों के कब्जे के बाद हजारों लोग अपने घरों से भाग चुके हैं और इस शहर से अभी तक 10 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं। वहीं, अस्पतालों में भीड़ हद से ज्यादा बढ़ गई है और संघर्ष की वजह से हर दिन सैकड़ों लोग घायल हो रहे हैं। घटनास्थल से आ रही रिपोर्ट्स के मुताबिक, हजारों हजार नागरिक गोलीबारी में फंस गये हैं, जिससे भारी संख्या में लोगों के मारे जाने की आशंका बढ़ गई है।

गोमा पर कब्जा करने वाला विद्रोही समूह M23 कौन है?
M23, मुख्य तौर पर जातीय तुत्सी लोगों का एक ग्रुप है, जो पूर्वी कांगो में वर्चस्व जमाने की कोशिश कर रहा है, जो सालों से संघर्ष की आग में झुलस रहा है। तुत्सी को कांगों की सेना में शामिल नहीं किया गया और उन्होंने साल 2012 में देश की सरकार की उखाड़ फेंकने की कोशिश की, लेकिन वो नाकाम रहे थे। हालांकि, इस घटना के बाद कई सालों तक ये ग्रुप निष्क्रिय रहा था, लेकिन 2022 में इसने एक बार फिर से सिर उठाना शुरू कर दिया। आपको बता दें, कि पूर्वी कांगो साल 1996 से 2003 के बीच इस संघर्ष के केन्द्र में था, जिसे इतिहास की किताबों में 'अफ्रीका का विश्वयुद्ध' कहा गया है। इस दौरान इस क्षेत्र में कई विद्रोही गुट एक्टिव थे, जो धातुओं, तांबे, कोबाल्ट, लिथियम और सोने के खदानों पर कब्जा जमाने के लिए खूनी संघर्ष में शामिल थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस दौरान 60 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हुई।

ये संघर्ष कितना भयावह था, इसका अंदाजा 1994 में कांगो के पड़ोसी देश रवांडा में हुए नरसंहार से लगाया जा सकता है, जब हुतु मिलिशिया ग्रुप ने 5 लाख से 10 लाख के बीच जातीय तुत्सी लोगों के साथ-साथ उदारवादी हुतु और मूलनिवासी त्वा के लोगों की बेरहमी से हत्या कर दी थी। इसके बाद, जब हुतु मिलिशिया ने जवाबी संघर्ष शुरू किया, तो डर के मारे करीब 20 लाख से ज्यादा हुतु लोग भागकर कांगो चले गये। रवांडा के अधिकारियों का आरोप है, कि देश से भागे हुए हुतु लोगों ने नरसंहार किया है और कांगो के अधिकारी उनकी रक्षा करते हैं। रवांडा के अधिकारियों का कहना है, कि हुतु, रवांडा की तुत्सी आबादी के लिए खतरा हैं। वहीं, M23 दावा करता है, कि वो रवांडा के मूल निवासी तुत्सी और कांगोली लोगों को भेदभाव से बचाता है, लेकिन आलोचकों का मानना है, कि उसका मकसद पूर्वी कांगो पर राजनीतिक और आर्थिक प्रभुत्व हासिल करना है।

पूर्वी कांगो को कंट्रोल क्यों करना चाहता है M23?
दरअसल, पूर्वी कांगो में दुर्लभ खनिज धातुओं का विशाल भंडार है और दुनिया इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स के निर्माण में इस्तेमाल में होने धातुओं के लिए कांगो पर बहुत ज्यादा निर्भर है, जिसकी वजह से अमेरिका और चीन जैसे देशों के लिए कांगो और रवांडा काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं। अमेरिकी वॉणिज्य विभाग का आकलन है, कि पूर्वी कांगो में मौजूद खनिज संसाधनओं की अनुमानित कीमत 24 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा हो सकती है।

लेकिन, बदकिस्मती ये है, कि विशालकाय खजाना होने के बाद भी पूर्वी कांगो के लोगों को कुछ नहीं मिल पाता है। देश में रहने वाले 10 करोड़ की आबादी में से 60 प्रतिशत से ज्यादा गरीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं और संघर्ष ने उनकी जिंदगी के रास्ते पर मौत लिख डाली है।

संघर्ष में रवांडा का किरदार क्या है?
कांगो, अमेरिका और यूनाइटेड नेशंस के एक्सपर्ट्स ने रवांडा पर M23 विद्रोही समूह का समर्थन करने का आरोप लगाया है। इस ग्रुप में अनुमानित तौर पर 6500 से ज्यादा लड़ाके हैं। 2021 के बाद से इसमें भारी संख्या में लड़ाके शामिल हुए हैं। हालांकि रवांडा ने आरोपों को खारिज किया है, लेकिन उसने इस बात को माना है, कि पूर्वी कांगो में उसके सैनिक और मिसाइल सिस्टम तैनात हैं। यूनाइटेड नेशंस के मुताबिक, पूर्वी कांगो में रवांडा के 4000 से ज्यादा सैनिक तैनात हैं।

बात अगर गोमा शहर की करें, तो ये कारोबार और मानवीय मदद पहुंचाने के लिए एक सेंटर के तौर पर काम करता है। शहर में एक हवाई अड्डा भी है। साल 2021 के बाद से यूनाइटेड नेशंस की सेना, कांगो सरकार के सैनिक और बुरुंडी के सैनिकों ने M23 विद्रोहियों को रोककर रखा था, लेकिन अब M23 ने शहर पर कब्जा कर लिया है। जिसका मतलब है, कि सरकारी सेना की हार हुई है। जिसका मतलब है, कि गोमा के पतन से कांगो के हजारों नागरिकों पर विनाशकारी असर होने वाला है।

क्या कांगो में संघर्ष की आग शांत हो पाएगी?
साल 2012 में भी M23 के विद्रोहियों ने करीब एक हफ्ते के लिए शहर पर कब्जा किया था, लेकिन बाद में उसे सरेंडर करना पड़ा था। लेकिन, एक्सपर्ट्स का कहना है, कि इस बार के हालात काफी अलग हो चुके हैं। समाचार एजेंसी AP की रिपोर्ट में इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के एक्सपर्ट डैरेन डेविड्स ने कहा है, कि "पहले, उनकी (M23) मांगे काफी स्पष्ट थीं, कि उन्हें कांगो की सेना में शामिल किया जाए और देश में उनकी राजनीतिक भागीदारी बढ़े, लेकिन अब उनका मकसद बदल गया है और अब वो सप्लाई चेन पर नियंत्रण के साथ साथ पूरे गोमा पर कब्जा चाहते हैं।

संघर्षों की वजह से पूर्वी कांगो में 40 लाख से ज्यादा लोग अपने घरों से विस्थापित हैं और यूएन शरणार्थी एजेंसी का कहना है, कि इस साल के पहले महीने में ही 4 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं। जिसकी वजह से गोमा शहर के आसपास बनाए गये शरणार्थी शिविरों में भारी भीड़ है और लोग हताश हैं। हैजा भी फैलने लगा है, वहीं गोमा शहर के अस्पतालों के कर्मचारी बंकरों में शरण लिए हुए हैं और घायलों का इलाज कर रहे हैं।

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