सिटी दर्पण
नई दिल्ली, 20 दिसंबर:
संसद का शीतकालीन सत्र हंगामेदार रहा और कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पाई। अडानी समूह, संभल हिंसा, मणिपुर हिंसा, बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले और बाबासाहेब आंबेडकर के कथित अपमान जैसे मुद्दे छाए रहे। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक हुई। यहां तक की धक्का-मुक्की और FIR की नौबत भी आ गई। 18वीं लोकसभा का यह तीसरा सत्र ज्यादातर हंगामे की भेंट चढ़ गया। 26 दिनों में सिर्फ 20 बैठकें हुईं और केवल 62 घंटे ही काम हुआ। सत्र की उत्पादकता लगभग 57.87% रही।
39 सदस्यीय कमिटी बनी
इस दौरान जहां संविधान अंगीकार होने के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में संसद के दोनों सदनों में दो-दो दिन की चर्चा हुई तो वहीं लोकसभा में संविधान के 127वें संशोधन के तौर पर 'एक देश, एक चुनाव' बिल आया, जो संसद की संयुक्त समिति के पास भेज दिया गया। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने इस बिल पर चर्चा और मंथन करने के लिए 39 सदस्यीय कमिटी का गठन किया, जिसमें लोकसभा के 27 और राज्यसभा से 12 सदस्यों को शामिल किया गया है।
कई विधेयक पारित
लोकसभा ने साल 2024-25 के लिए अनुदान की अनुपूरक मांगों के पहले बैच और उससे संबंधित विनियोग (संख्यांक-3) बिल 2024 को मंजूरी दी। सत्र के दौरान लोकसभा में 'रेल (संशोधन) विधेयक 2024', 'बैंककारी विधियां (संशोधन) विधेयक 2024', 'आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक 2024' पारित किए गए गए। सरकार ने इस सत्र में लोकसभा में वाणिज्य पोत परिवहन विधेयक 2024 पेश किया, जिसमें अंतरराष्ट्रीय व्यापार के अवसरों का विस्तार करने, जहाजों के स्वामित्व के लिए पात्रता मापदंड बढ़ाने और भारतीय टन भार में बढ़ोतरी के लिए प्रावधान हैं। सदन में प्रियंका गांधी समेत दो सदस्यों ने शपथ ली। इस तरह सत्र के दौरान लोकसभा में पांच सरकारी बिल पेश किए गए और चार बिल पास किए गए। शून्य काल के दौरान अविलंबनीय लोक महत्व के 182 मामले उठाए गए और नियम 377 के अंतर्गत 397 मामले उठाए गए। शुक्रवार को खत्म हुआ यह सत्र 25 नवंबर से शुरू हुआ था।
सदन में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग
यह सत्र इसलिए भी महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि संसद की नई इमारत में 129वें संशोधन बिल के लोकसभा में आने को लेकर सदन में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग हुई। सत्र के अंतिम दिन अपने समापन भाषण में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि संसद की गरिमा और मर्यादा बनाए रखना सभी सदस्यों की सामूहिक जिम्मेदारी है। संसद के किसी भी द्वार पर धरना, प्रदर्शन करना उचित नहीं है। अगर इसका उल्लंघन होता है तो संसद को अपनी मर्यादा और गरिमा बनाए रखने के लिए जरूरी कार्रवाई करने का अधिकार है। बिरला ने सभी सदस्यों से हर हाल में सदन के नियमों को अनुपालन सुनिश्चित करने की भी बात कही।
धनखड़ की अपील, विमर्श की पवित्रता बनाए रखें
राज्यसभा में संसद के शीत सत्र के दौरान विधायी कामकाज और चर्चा केवल 43 घंटे 27 मिनट तक हो सकी और इस तरह उत्पादकता बमुश्किल 40% रही, जिसमें से केवल 43 घंटे और 27 मिनट ही प्रभावी कामकाज हुआ। राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करते हुए यह जानकारी दी। उन्होंने कामकाज कम होने पर निराशा जताई और कहा कि सार्थक चर्चा और कामकाज में बाधा डालने के बीच किसे चुना जाना चाहिए, इस पर उच्च सदन के सदस्यों को मंथन करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हमारी लोकतांत्रिक विरासत की मांग है कि हम राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठें और संसदीय विमर्श की पवित्रता को बनाए रखें। उनका कहना था कि ऐतिहासिक संविधान सदन में संविधान दिवस मनाने का हमारा उद्देश्य लोकतांत्रिक मूल्यों की पुष्टि करना था, लेकिन इस सदन में हमारे कार्य एक अलग ही कहानी बता रहे हैं। सभापति ने सदन के कामकाज को लेकर अपनी निराशा जाहिर करते हुए कहा कि भारत की जनता हम सांसदों की कड़ी आलोचना कर रही है और यह सही भी है। कामकाज में लगातार पड़ रही बाधा से लोकतांत्रिक संस्थानों पर जनता का विश्वास घट रहा है। हमने तेल क्षेत्र संशोधन बिल और बॉयलर्स बिल 2024 पारित किया और भारत-चीन संबंधों पर विदेश मंत्री के बयान को भी सुना, लेकिन ये उपलब्धियां हमारी विफलताओं से ढक गई हैं।
प्रश्न काल का रहा बुरा हाल
- लोकसभा में तय समय के 52% हिस्से में चली कार्यवाही
- राज्यसभा में नियम समय के 39% हिस्से में ही कार्यवाही
- केवल एक विधेयक पास हुआ 18वीं लोकसभा के पहले छह महीनों में
- यह पिछले छह लोकसभा कार्यकालों में सबसे कम संख्या रही
- राज्यसभा में 19 में से 15 दिनों में नहीं चल सका प्रश्न काल
- लोकसभा में 12 दिन ऐसे रहे, जब 10 मिनट से कम चला प्रश्न काल
- प्रश्न काल में सांसद सरकार से नीतियों और कार्यक्रमों पर सवाल पूछते हैं
(स्रोत: PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च)