सिटी दर्पण
नई दिल्ली, 18 सितंबर: 'क्रोनॉलजी समझिए।' पहले जनगणना करवाने की चर्चा छेड़ी गई और आज 'एक देश, एक चुनाव' पर कोविंद समिति की रिपोर्ट को सरकार से स्वीकृति दे दी गई। मोदी कैबिनेट ने आज पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी समिति की उस रिपोर्ट पर मुहर लगा दी है जिसमें कहा गया है कि देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ करवाए जाएं। इससे पहले अधिकारियों की तरफ से खबर आई कि मोदी सरकार जनगणना करवाने की तैयारियां कर रह रही है। फिर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जल्द ही जनगणना की घोषणा की जाएगी। उन्होंने मोदी सरकार 3.0 के पहले 100 दिनों की उपलब्धियों की चर्चा के दौरान कहा, 'हम जल्द ही इसकी (जनगणना की) घोषण करेंगे।'
इस बार जनगणना कई मायनों में खास
इस बार जनगणना कई मायनों में अलग होने वाली है। एक तो कि कोविड के कारण जनगणना टल गई थी और 10 साल की जगह अब इसे 13वें साल में शुरू कराया जाएगा। दूसरी यह कि इस बार जाति जनगणना का बड़ा शोर रहा है। विपक्ष और खासकर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का इस पर खासा जोर है। फिर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने भी जातीय जनगणना के लिए हामी भर दी तो लगता है कि मोदी सरकार ने भी इसका मन बना लिया है। तीसरी खास बात यह है कि पहली बार डिजिटल माध्यम से जनगणना होगी। फिर जनगणना में आए आंकड़ों के आधार पर ही चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन भी होना है। इसके लिए नई संसद की दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा में सदस्यों के बैठने की सीटें बढ़ा दी गई हैं। ऐसा लगता है कि मोदी सरकार परिसीमन के साथ 'वन नेशन, वन इलेक्शन' का प्रॉजेक्ट भी पूरा करने का इरादा रखती है।
कोविंद समिति की रिपोर्ट पर मुहर का मतलब क्या?
दरअसल, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' पर उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट को आज केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्वीकृति दे दी है। इस बारे में केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि 1951 से 1967 के बीच एक साथ चुनाव हुए थे और अब कोविंद पैनल की सिफारिशों पर पूरे भारत में विभिन्न मंचों पर चर्चा की जाएगी। वैष्णव ने कहा कि एक साथ चुनाव पर कोविंद पैनल की सिफारिशों को आगे बढ़ाने के लिए वर्किंग ग्रुप का गठन किया जाएगा।वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने संबोधन में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' के लिए एक मजबूत तर्क दिए थे।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि बार-बार चुनाव होने से देश का विकास धीमा हो रहा है। मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने पर गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को कहा कि उनके तीसरे कार्यकाल में 'एक राष्ट्र एक चुनाव' लागू किया जाएगा।उधर उम्मीद की जा रही है कि विधि आयोग भी 2029 तक सरकार के तीनों स्तरों, लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों जैसे नगर पालिकाओं और पंचायतों में एकसाथ चुनाव प्रस्तावित करेगा। विधि आयोग किसी भी सदन में अविश्वास प्रस्ताव या अविश्वास प्रस्ताव आने की स्थिति में बचे हुए कार्यकाल तक मिलीजुली सरकार बनाए जाने के प्रावधान पर भी विचार कर रहा है।
कोविंद समिति की सिफारिशें जानिए
एक साथ चुनाव: समिति ने पहले कदम के रूप में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की। समिति ने कहा है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का चुनाव खत्म होने के 100 दिनों के भीतर पूरे देश में स्थानीय निकायों के चुनाव कराए जाएं।
वर्किंग ग्रुप का गठन: इन सिफारिशों के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए एक 'वर्किंग ग्रुप' के गठन का प्रस्ताव रखा गया है।
एक साथ चुनाव के लाभ: एक देश एक चुनाव से संसाधनों की बचत, विकास को बढ़ावा, सामाजिक सामंजस्य को बढ़ावा, लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने की उम्मीद है।
समान मतदाता सूची तथा मतदाता पहचान पत्र: भारत का चुनाव आयोग (ईसीआई) राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से एक समान मतदाता सूची और एकल मतदाता पहचान पत्र तैयार करेगा।
संवैधानिक संशोधन: 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की गई, जिनमें से अधिकांश के लिए राज्य विधानसभा के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है, लेकिन संविधान संशोधन विधेयकों के माध्यम से संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता है।
राज्यों के अनुमोदन की आवश्यकता: समान मतदाता सूची तथा मतदाता पहचान पत्र जैसे कुछ प्रस्तावित परिवर्तनों के लिए कम से कम आधे राज्यों से अनुमोदन की आवश्यकता होगी।
एक देश, एक चुनाव का इतिहास
वैसे भी देश को अंग्रेजी शासन से आजादी मिली तो 1952,1957,1962 और 1967 के शुरुआती चार चुनावों में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एकसाथ ही मतदान हुए थे।फिर कुछ नए राज्य बने और कुछ पुराने राज्यों का पुनर्गठन हुआ जिस कारण केंद्र और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव की प्रक्रिया बंद हो गई। 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभा को भंग कर दिया गया तो एकसाथ चुनाव की प्रक्रिया पूरी तरह से बंद हो गई। हालांकि, एक राष्ट्र, एक चुनाव पर लौटने की जरूरत तुरंत महसूस होने लगी और 1983 में चुनाव आयोग ने अपनी सालाना रिपोर्ट में इसकी सिफारिश कर दी। 1999 में विधि आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में देशभर में एकसाथ चुनाव करवाने की जरूरत याद दिलाई गई। विधि आयोग ने ही 2018 में एक मसौदा रिपोर्ट सरकार को सौंपी। फिर मोदी सरकार ने 2023 में कोविंद समिति का गठन कर दिया और अब उसकी सिफारिश को सरकार ने मान भी लिया है।
जनगणना के बाद परिसीमन, फिर एकसाथ चुनाव
जनगणना का काम अगले वर्ष शुरू हो जाएगा और फाइनल रिपोर्ट आने में कम से कम एक वर्ष का वक्त लगेगा। 2026 में जनगणना का फाइनल डेटा आने के बाद परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होगी। सूत्रों और विशेषज्ञों की राय में परिसीमन का काम पूरा होने के बाद 2027 में एक 'राष्ट्र, एक चुनाव' की वापसी हो जाएगी। तब तक असम, बंगाल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल में 2026 में होने वाले चुनावों को रोका जा सकता है। वहीं, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और मणिपुर जैसे राज्यों के होने वाले चुनावों में कुछ दिन, सप्ताह या महीने का अंतर रह जाएगा क्योंकि इनके चुनाव 2027 में ही होने वाले हैं। त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड, कर्नाटक, मिजोरम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलांगाना जैसे राज्यों के विधानसभा चुनावों को थोड़ा पहले कराया जा सकता है क्योंकि उनके चुनाव 2028 में शेड्यूल होंगे।