सिटी दर्पण
नई दिल्ली, 30 दिसंबरः
भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में एक और लंबी छलांग लगाकर विश्व के चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल होने के लिए तैयार है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सोमवार रात 10 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र यानी शार से स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पैडेक्स) लॉन्च किया। पीएसएलवी-सी60 से भेजे गए दोनों यान रॉकेट से सफलतापूर्वक अलग हो गए और करीब 470 किमी की निचली कक्षा में स्थापित कर दिए गए। आने वाले दिनों में इसरो के वैज्ञानिक दोनों यानों की बीच की दूरी कम कर उन्हें जोड़ने की कोशिश करेंगे।
इसरो साल के इस आखिरी मिशन की सफलता के साथ ही भारत अमेरिका, रूस और चीन के विशेष क्लब में शुमार हो जाएगा। मिशन की कामयाबी भारतीय अंतरिक्ष केंद्र की स्थापना और चंद्रयान-4 जैसे मानव अंतरिक्ष मिशन के लिए अहम साबित होगी। पहले स्पैडेक्स को लॉन्च सोमवार रात 9:58 बजे किया जाना था, लेकिन बाद में इसे दो मिनट देरी से 10 बजे किया गया। मिशन निदेशक एम जयकुमार ने बताया कि 44.5 मीटर लंबा पीएसएलवी-सी60 रॉकेट दो अंतरिक्ष यान चेजर (एसडीएक्स01) और टारगेट (एसडीएक्स02) लेकर गया है। पीएसएलवी-सी60 से भेजे गए दोनों यान सफलतापूर्वक अलग हो गए और करीब 470 किमी की वांछित निचली कक्षा में स्थापित कर दिए गए हैं। इसरो के अनुसार, दोनों यानों का झुकाव पृथ्वी की ओर 55 डिग्री होगा। आने वाले दिनों में वैज्ञानिक दोनों यानों की बीच की दूरी कर कम उन्हें जोड़ने की कोशिश करेंगे।
डॉकिंग इसलिए...
इसरो के अनुसार, जब अंतरिक्ष में कई ऑब्जेक्ट होते हैं और जिन्हें किसी खास उद्देश्य के लिए एक साथ लाने की जरूरत होती है तो डॉकिंग की आवश्यकता होती है। डॉकिंग वह प्रक्रिया है जिसके मदद से दो अंतरिक्ष ऑब्जेक्ट एक साथ आते हैं और जुड़ते हैं। यह विभिन्न तरीकों का उपयोग करके किया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष अंतरिक्ष स्टेशन पर चालक दल के मॉड्यूल स्टेशन पर डॉक करते हैं, दबाव को बराबर करते हैं और लोगों को स्थानांतरित करते हैं।
ऐसे होगी डॉकिंग प्रक्रिया
मिशन का उद्देश्य यह है कि जब दोनों यान तेज रफ्तार से पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे होंगे तो चेजर टारगेट का पीछा करेगा और दोनों तेजी से एक दूसरे के साथ डॉक करेंगे। अंतरिक्ष में ‘डॉकिंग’ प्रौद्योगिकी की तब जरूरत होती है जब साझा मिशन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए कई रॉकेट प्रक्षेपित करने की जरूरत होती है। वांछित कक्षा में प्रक्षेपित होने के बाद दोनों अंतरिक्ष यान 24 घंटे में करीब 20 किलोमीटर दूर हो जाएंगे। इसके बाद वैज्ञानिक डॉकिंग प्रक्रिया शुरू करेंगे। ऑनबोर्ड प्रोपल्शन का उपयोग करते हुए टारगेट धीरे-धीरे 10-20 किमी का इंटर सैटेलाइट सेपरेशन बनाएगा। इसे सुदूर मिलन चरण के रूप में जाना जाता है। चेजर फिर चरणों में टारगेट के पास पहुंचेगा। इससे दूरी धीरे-धीरे 5 किमी, 1.5 किमी, 500 मीटर, 225 मीटर, 15 मीटर और अंत में 3 मीटर तक कम हो जाएगी, जहां डॉकिंग होगी। डॉक हो जाने के बाद मिशन पेलोड संचालन के लिए उन्हें अनडॉक करने से पहले अंतरिक्ष यान के बीच पावर ट्रांसफर का प्रदर्शन करेगा।
मिशन के फायदे
भारत की योजना 2035 में अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की है। मिशन की सफलता इसके लिए अहम है। भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन में पांच मॉड्यूल होंगे जिन्हें अंतरिक्ष में एक साथ लाया जाएगा। इनमें पहला मॉड्यूल 2028 में लॉन्च किया जाना है।
- यह मिशन चंद्रयान-4 जैसे मानव अंतरिक्ष उड़ानों के लिए भी अहम है...यह प्रयोग उपग्रह की मरम्मत, ईंधन भरने, मलबे को हटाने और अन्य के लिए आधार तैयार करेगा।
- यह तकनीक उन मिशनों के लिए अहम है, जिनमें भारी अंतरिक्ष यान और उपकरण की जरूरत होती है, जिन्हें एक बार में लॉन्च नहीं किया जा सकता।
उम्मीद है...7 जनवरी तक प्रक्रिया पूरी हो जाएगी
इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा कि 15 मिनट की उड़ान के बाद पीएसएसवी रॉकेट ने यानों को सही कक्षा में स्थापित कर दिया है। दोनों यान एक-दूसरे के पीछे घूम रहे हैं। हमें उम्मीद है कि एक सप्ताह के अंदर या कहें 7 जनवरी तक दोनों यानों को जोड़ने की प्रक्रिया हो सकती है।