सिटी दर्पण
प्रयागराज, 25 दिसंबरः
महाकुंभ के दौरान गंगा और यमुना नदियों में बगैर शोधित मल और जल यानी अनट्रीटेड वाटर छोड़े जाने से रोकने और गंगा जल की पर्याप्त उपलब्धता की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल नई दिल्ली ने बेहद महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. एनजीटी ने केंद्र व यूपी सरकार से कहा है कि महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में गंगाजल की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जाए. इसके साथ ही साथ ही गंगाजल की क्वालिटी पीने-आचमन करने और नहाने योग्य भी होनी चाहिए. संगम नगरी प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ की शुरुआत होने जा रही है.
एनजीटी ने कई तारीखों पर लंबी बहस के बाद सोमवार 23 दिसंबर को जजमेंट रिजर्व कर लिया था. यह फैसला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की डिवीजन बेंच के चेयरपर्सन प्रकाश श्रीवास्तव और एक्सपर्ट मेंबर डाक्टर ए सेंथिल वेल ने सुनाया है. एनजीटी की डिवीजन बेंच ने अपने 30 पन्ने के आदेश में आठ प्रमुख बिंदुओं के अनुपालन का आदेश दिया है. एनजीटी ने केंद्र और यूपी सरकार से इन सभी बिंदुओं पर अनुपालन करने को कहा है. एनजीटी ने अपने फैसले में कहा है कि महाकुंभ के दौरान जो भी श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाने के लिए प्रयागराज आएं. उन्हें गंगाजल को लेकर कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. गंगा में आस्था की डुबकी लगाने पर श्रद्धालुओं की सेहत पर कोई खराब असर कतई नहीं पड़ना चाहिए.
गंगा और यमुना नदियों में सीवेज का जीरो डिस्चार्ज हो
एनजीटी ने अपने फैसले में कहा है कि महाकुंभ के दौरान गंगा और यमुना नदियों में सीवेज का जीरो डिस्चार्ज होना चाहिए. इसके साथ ही नालों और टेनरियों का गंदा पानी कतई नहीं गिरना चाहिए. एनजीटी कोर्ट ने सेंट्रल पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को निर्देश दिया है कि महाकुंभ के दौरान हफ्ते में कम से कम दो दिन प्रयागराज में संगम के आस-पास विभिन्न जगहों पर गंगाजल का सैंपल लेना होगा. फैसले के मुताबिक सैंपल की डुप्लीकेसी नहीं होनी चाहिए. यानी हर बार सैंपल अलग-अलग जगह पर होना चाहिए. महाकुंभ में भीड़ बढ़ने पर सैंपलिंग की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए. यानी हफ्ते में दो दिन से ज्यादा और कई जगहों पर सैंपल लेना होगा.
गंगाजल पीने-नहाने या आचमन के लायक नहीं है तो
केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को लिए गए सैंपल की रिपोर्ट एनजीटी के रजिस्ट्रार जनरल को लगातार भेजनी होगी. एनजीटी इस रिपोर्ट का लगातार एनालिसिस करेगी. अगर कोर्ट को रिपोर्ट के आधार पर यह लगता है कि गंगाजल पीने-नहाने या आचमन के लायक नहीं है तो वह नए सिरे से जरूरी दिशा निर्देश जारी करेगा. केंद्र और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सैंपल की रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर भी नियमित तौर पर अपलोड करनी होगी. एनजीटी ने इसके साथ ही पोस्ट मेला मैनेजमेंट के तहत कचरे और दूसरे वेस्ट मटेरियल को एनवायर्नमेंटल नॉर्म्स के तहत डिस्पोजल करना होगा. गंगाजल की उपलब्धता और शुद्धता को लेकर क्या कदम उठाए गए हैं और सुधार के लिए क्या कुछ किया गया है.