आम जनता के लिए गरीब होता है जिसकी जेब में पैसा नहीं होता मगर वास्तव में गरीब की परिभाषा कुछ और भी है।
गरीब वह होता है जिसका ज़मीर मर चुका हो..
गरीब वह होता है जिसके हाथ मेहनत करने के लिए बंधें हों..
गरीब वह होता है जो किसी की मदद न कर सके..
गरीब वह होता है जो ज्ञान बांट न सके..
गरीब वह होता है जो कुछ नया न कर सके..
याद रखो गरीब किसी धर्म जाति नसल करके गरीब नहीं होता बल्कि अपने कामों के चलते गरीब होता है। मैं स्वयं गांव से ताल्लुक रखता हूं और अपने शुरुआती तकरीबन 25 वर्ष गांव में ही बिताये हैं। पिता जी कृषि किया करते थे तथा कई बार पढ़ाई के साथ साथ कृषि में भी पिता जी का हाथ बंटाता रहा हूं। गांव में खास जाति के लोग अक्सर गांव से बाहर ही रहा करते थे उन्हें ठठ्ठी कहा जाता था भले ही आज समाज में उक्त जातिगत खाइयां दूर होती जा रही हैं और लोग मिलकर रहने लगे हैं। मगर मुझे याद है कि जो लोग खेतों में काम करने के लिए आते थे उनमें भी ज्यादातर काम महिलाएं ही करती थीं जबकि पुरुष महिलाओं के प्रति कम काम करते थे। पुरुष खेतों के किनारों पर बैठ कर बीड़ी सिगरेट सुलगाते और आनंद लेते थे। पूछने पर जवाब मिलता था कि हमने कौन से महल खड़े करने हैं, खाने के लिए अनाज चाहिए और अन्य जरूरतों का सामान सरदार जी दे देते हैं। मतलब सोच केवल खाने पीने अथवा समय बिताने तक सीमित थी। यह जातिगत अंतर शहरों में भी कम हो चुका है मगर अब एक नया ट्रेंड शुरु हो गया है जिसमें खास करके सरकारें बहुत हद तक जिम्मेवार हैं। आप ने देखा होगा सबसे ज्यादा मुश्किल वाले काम सरकारें गरीब मजदूरों से करवाती हैं भले ही ये काम साफ-सफाई अथवा सीवरेज से संबंधित हों और वेतन अथवा मेहनताना भी उन्हें ही सब से कम दिया जाता है। इतना ही नहीं गरीब समाज में हाशिये पर इस लिए भी रहा है क्योंकि भाई ने भाई का ही शोषण किया है। सरकारों ने जो आरक्षण गरीबों को दिया है उसमें भी आरक्षण का लाभ वही गरीब उठा पाये जो या तो जागरूक थे या फिर पढ़े लिखे थे इन्होंने अपने साथी गरीबों को उक्त आरक्षण का लाभ न बता करके केवल इसे अपने परिवारों में ही पुरजोर भुनाया और अपने खानदानों को गरीबी की रेखा से ऊपर ले गये शेष ज्यादातर गरीब वर्ग आज भी सरकारों द्वारा चुनावों के दौरान घोषित आटा,दाल और चावल का मौहताज बन कर रह गया है। क्या सरकारें कभी उक्त गरीबों की बाट जोहेगी? गरीब की सदैव मदद करनी चाहिए भले ही वह किसी भी वर्ग, जाति, नसल और रंग-रूप से ताल्लुक रखता हो।
यहां मैं गरीबों के शोषण का जिम्मेवार सरकारों तथा अन्य कारणों के साथ साथ इन गरीबों को भी मानता हूं क्योंकि मैने 35 वर्ष स्वास्थ्य विभाग में बतौर विभिन्न पदों पर काम करके देखा है कि ये लोग सांस की बीमारी, चर्म रोग, कैंसर तथा रक्त की कमी आदि के रोगों को जानबूझ कर भी लगवा लेते हैं क्योंकि यह अपनी गरीबी को मजबूरी बता कर बीड़ी-सिगरेट तथा तंबाकू का सेवन खूब करते हैं और तो और शराब व भी घटिया क्वालिटी की इस्तेमाल करते हैं इतना ही नहीं ये लोग अपने स्वास्थ्य तथा सफाई का भी कम ही ख्याल रखते हैं नतीजा एक तो गरीबी ऊपर से बीमारी ये लोग नरक के गर्त में डूबते जाते हैं। गर इनका ज़रा सा कुछ बचा रह जाता है तो वह ज्यादा आनंद की चाह में बच्चे पैदा करके पूरा कर देते हैं जो इनकी तरक्की में एक बड़ा रोड़ा साबित होते हैं।
आज गर पंजाब की बिगड़ी हुई हालत पर नजर मारें तो पता लगेगा कि पंजाब का किसान मेहनत से भाग कर केवल नशे में नहीं फंसा बल्कि अपनी वित्तीय तथा शारीरिक हालत भी खराब करके बैठा हुआ है। एक समय ा जब पंजाब पैसे, स्वस्थ्य और बहादुरी को लेकर पूरे विश्व में प्रसिद्ध था और समूचे देश का नंबर वन राज्य माना जाता था। आज हालात बिलकुल उल्ट हैं।
ऊपरोक्त चर्चा के बाद हम कह सकते हैं कि आजका गरीब अपनी जाति, धर्म, नसल अथवा रंग रूप के कारण नहीं बल्कि अपने कर्मों के कारण है।
गर समाज में गरीबी को समूल हटाना है तो
सरकारों को मुफ्तखोरी, नौकरियों में आरक्षण तथा मजदूरों के वेतन, किसानों की सेहत तथा शिक्षा आदि पर पुन: गौर करते हुए अपनी नितियों पर एक बार फिर से विचार करना होगा। ताकि समय के रहते गरीबी को हटाया जा सके न कि गरीबी हटाओ के नारे सिर्फ नारों तक ही सीमित रह जायें।