हमारा देश आजाद हुआ और इसकी बागडोर उन नेताओं के हाथ में आई जिन्होंने देश की आजादी के लिए लंबी जद्दोजहद की थी तथा उन्हें पता था कि लोगों की कई मुश्किलें हैं तथा उनका समाधान कैसे करना है। अपनी मेहनत, सूझबूझ तथा तजुर्बे के आधार पर हमारे देश का संविधान बनाया गया तथा उस पर अमल भी किया जाने लगा। मगर आज कुछ नेताओं के ऊपर बड़े सवालिया निशान लगने लगे हैं क्योंकि कुछ नेता सियासत नहीं धंधा या यूं कहें व्यापार कर रहे हैं और हर योजना चुनावों में वोट कैसे हासिल करनी है या फिर पैसे किस प्रकार कमाने हैं या जाति धर्म में लोगों को कैसे बांटना है और उनका शोषण कैसे करना है के आधार पर बनाने लगे हैं। गर इस प्रकार की मानसिकता लिए मेरे देश के तथाकथित नेता योजनाबद्ध तरीके से देश पर राज करेंगे तो मैं पूरी तरह से भयभीत हूं कि लोकतंत्र फिर कहां रह जायेगा?
आप स्वयं भी महसूस करते होंगे कि ये नेता लोग हित नहीं चुनावों के समीप तमाशा करते हैं।
गरीब के घर में एक दिन की रोटी खाने से देश में गरीबी नहीं हट सकती।
गरीब के घर एक मिनट सफाई करके, फोटो खिंचा, इन्साफ की देवी, देवता कहलाने वाले इन्साफ नहीं कर सकते।
गरीब को एक दिन गले से लगा कर अखबार की सुर्खियां बटोरने से हम उस मजलूम का पेट नहीं भर सकते।
बड़े बड़े काफिले बना कर गरीब की मौत का मजाक उड़ा कर गरीबों को रोजगार कतई नहीं दिलाया जा सकता।
गरीब व्यक्ति का मजाक उड़ाने के लिए इस्तीफे, कुर्बानियों का राग अलापते रहते हैं मगर वास्तव में गरीबों का ही रक्त चूस्ते हैं।
74 वर्ष बीतने का बावजूद काले अंग्रेज (मौजूदा नेता)कहां हैं गरीबों की हितैषी?
नेताओ तुम वाकई काले अंग्रेज हो जो चुनाव जीत कर गरीबों को अपने कार्यालयों अथवा घरों में दाखिल होने नहीं देते हो और अक्सर आम आदमी का हाथ पकड़ने से भी गुरेज करते हो।
मेरी गुजारिश है देश की भोली भाली मासूम जनता से कि वह जागरूक हो कर चुनाव के नजदीक नेताओं के तमाशों को समझे और अपने भविष्य की सुरक्षा करे।
इनसे पूछो कि इन तमाशों से देश कैसे और क्योंकर तरक्की करेगा?
आजकल एक और ट्रेंड शुरू हो गया है कि हर नेता जब सरकार में नहीं होता तो प्रोटेस्ट करके सब कुछ मनाने की ठान लेता है।
सड़कों की धूल या बराबरी का जीवन? फैसला हम सब के हाथ में है।
धरने, हड़तालें, झूठ, मुफ्तखोरी से बनी सरकारें धरनों, हड़तालों, झूठ, मुफ्तखोरी वाले समाज को जन्म देती हैं।
वोट आपकी जिम्मेवारी है। वोट डालते समय नेताओं के धरने, हड़तालों, झूठ, मुफ्तखोरी के ऐलानों तथा अखबारी ब्यानों पर विश्वास करना या फिर नेताओं के लोकहित कामों को महत्ता देना।
पिछले तजुर्बों को याद रखो तथा पता लगता है कि कामों को नहीं बल्कि नेताओं के धरनों, हड़तालों, झूठ, मुफ्तखोरी को वोट डाली जाती हैं उसी का परिणाम है कि लोग आज सड़कों पर हैं और नेता महलों में।
अभी भी समय है समझ जाओ और वोट केवल और केवल काम को ही डालो ताकि आने वाले समय में हमें सुख का सांस आये न कि सड़कों की धूल या पुलिस के डंडे न खाने पड़ें।
मैं बात कर रहा था देश की आजादी के बाद आये नेता समझदार और तजुर्बेकार थे मगर क्या आप ने देखा और महसूस किया है कि कुछ देर पहले और इमरजेंसी के बाद देश हो या फिर राज्य उनमें नेताओं की सोच बदलने लगी है और कई नेता देश की बागडोर लंबे अर्से तक संभालने में नाकाम साबित हुए हैं तथा कम समय के लिए प्रधानमंत्री बन पाये हैं। कुछ नेता लंबे अर्से तक तो राज कर पाये मगर आरोपों के घेरों ने उन्हें सदैव घेरे रखा।
पंजाब में तो यहां तक देखा गया है कि नब्बे के दशक के बाद ज्यादातर नेता बिलकुल गैरतजुर्बेकार ही रहे हैं और पंजाब नंबर एक से गिर कर बहुत पीछे जा चुका है।
आज भरोसा उठ चुक ा है नेताओं पर से और जरूरत है कि नेता कुछ निम्नलिखित मापदंडों पर उतर सके।
-नेता ज्ञानी और सूझबूझ वाला हो मेरा मतलब ज्ञानी से ज्ञानवान है। नेता काम में विश्वास रखता हो क्योंकि गर आप में ज्ञान है तो आप अपने ऊपर भरोसा रखते हो और दृढ़ विश्वास से ही फैसले मजबूत और तुरंत लिये जाते हैं।
-नेता ईमानदार होने चाहिएं और लोकहित में बोल सकने वाले हों।
-नेता लोक हित से जुड़ी समस्याओं की पहचान कर सकें और उनका समाधान भी निकाल सकें।
-नेता स्वस्थ हो तथा अपने इलाके में समय बिता सके ताकि रोज़मर्रा जिंदगी के सच झूठ को समझ सके।
-नेता जाति-पाति में विश्वास न रखते हों तथा निष्पक्ष हो कर सरबत के भले की बात करते हों।
-नेता अच्छे प्रवक्ता होने चाहिएं जो अपनी बात कह सकें तथा लोगों को समझा भी सकें।
-नेता पढ़े लिखे होने चाहिएं जो आगे बढ़ कर स्कीमें बना कर देश की तरक्की करवा सकें।
-नेताओं को अपना जीवन अपराध मुक्त रखना चाहिए।
-फैसला वोटरों के हाथ में है उन्हें नेता चाहिए या फिर एक व्यापारी। देश की तरक्की चाहिए या फिर निजी तरक्की वो भी तथाकथित नेताओं की।