चंडीगढ़: जाने माने समाज सेवक एवं पूर्व सिविल सर्जन पंजाब डॉ. दलेर सिंह मुल्तानी का कहना है कि इस कोरोना काल में आम जनता को कोरोना ने कम बल्कि देश में कोरोना से लड़ने के लिये बुनियादी ढांचे में कमी और सरकारों के कुप्रबंधन ने ज्यादा मारा है। उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि हम स्वास्थ जो अब तक नजरअंदाज रहा है को लेकर गंभीर हो जायें।
उन्होंने सुझाव दिया है कि सरकारों को लॉकडाउन और कर्फ्यू को साप्ताहिक तौर पर पक्की तरह लागू कर देना चाहिए ,इस से हम सब के स्वास्थ्य पर भरपूर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। सिटी दर्पण से खास बातचीत में डॉ, मुल्तानी ने बताया कि यह बात शतप्रतिशत सच है कि आधे से ज्यादा बीमारियों की वजह हम सब हैं, हमारा लाइफ स्टाइल और खान पान है, हमें इसे बुनियादी स्तर पर बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं कि हम सबने पर्यावरण को खासा गंदा कर दिया है इससे कई भयानक बीमारियों ने जन्म ले लिया है। मौजूदा कोरोना के चलते लॉकडाउन और कर्फ्यू ने यह साबित कर दिया है कि इन बंदिशों के कारण हमारी हवा और जल स्रोतों का स्तर पहले से कहीं ज्यादा साफ हुआ है क्यों कि लॉकडाउन और कर्फ्यू की वजह से आम जनता को पर्यावरण को गंदा करने का मौका ही नहीं मिला है, सारे वाहन हवा में प्रदूषण नहीं फैला पाये हैं, फैक्टरियां अपना गंदा पानी पीने के जलस्रोतों में नहीं मिला पायी हैं। गंगा तक का पानी साफ हो गया है, उक्त बातों को ध्यान में रखते हुए सरकारों को लॉकडाउन और कर्फ्यू को स्थायी तौर पर साप्ताहिक स्तर पर कुछ शर्तों के साथ लागू कर देना चाहिए ताकि इससे देश की अर्थव्यवस्था पर भी फर्क न पड़े और दूसरी ओर देश के नागरिक एक स्वस्थ जीवन जीयें।
कोरोना वायरस पर उन्होंने कहा कि हालांकि ये सुनने में आया है कि मौजूदा हालात में कोरोना कम हो रहा है और फिर तीसरी वेब में दुबारा से बढ़ेगा,पर ये अभी पूरे विश्व के विशेषज्ञों की महज कल्पना ही है। वायरस आज भी हम सब के लिए अन्परडिक्टेबल ही है। क्यों कि यह हर समय अपना रूप और आकार दोनों ही बदलता है। आज मार्केट में वायरस के कई म्युटेंट हैं जैसे अल्फा कोरोना वायरस (229ई), अल्फा कोरोना वायरस (एन एल 63), बीटा कोरोना वायरस (ओ सी 43), बीटा कोरोना वायरस (एच के यू 1) हैं इनके अलावा एम ई आर एस-कोव, सार्स-कोव, सार्स-कोव-2, सार्स कोव-19- डेल्टा और अब डेल्टा प्लस भी हंै।
एक बात तो तय है कि उक्त समस्याओं से निबटने के लिए हमारी मेडिकल भाषा में तीन बातों पर फोकस किया जाता है-पहली प्रीवेंटिव, दूसरी प्रोमोटिव और तीसरी क्युरेटिव।
प्रीवेंटिव यानि हमें संभावित खतरे को भांपते हुए पहले से ही अपने प्रबंध कर लेने चाहिएं ताकि उक्त बीमारी लगे ही न। जैसे कोरोना के जी-नॉम सीक्वेंस पढ़ कर उन टेस्टों पर जोर दें जिन से पता चले कि इसका ढांचा कै सा है यानि दुश्मन से लड़ने से पहले उसके बारे में विस्तृत जानकारी हासिल कर लें। प्रीवेंटिव मैय्यर में इसके अलावा आम जनता को वायरस के प्रति जागरूक भी कर सकते हैं जैसे कि सरकार पहले से ही यह काम कर रही है। सभी को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना, हाथ बार बार धोना और मास्क का प्रयोग करने की हिदायत दी जा रही है ताकि आम जनता वायरस से इन्फेक्टिड व्यक्ति के संपर्क में कम से कम आये। यह भी सच है कि यह वायरस अक्सर हाथ के जरिये मूंह, नाक और आखों से शरीर में प्रवेश करता है जब हम लोग बार बार हाथ धोते हैं तो यह वायरस साबुन के झाग वाले पानी में ज्यादा देर नहीं रह पाता, यह डिसोल्व होने लगता है और हम इससे बच जाते हैं। वैसे भी मुंह पर मास्क रहने से यह मुंह, नाक और आंखों के सीधे संपर्क में नहीं आता।
इस में कोई दो राय नहीं कि वायरस पर किसी तरह की स्प्रे का कोई फर्क नहीं पड़ता है। क्योंकि स्प्रे में सोडियम हाइपोक्लोराइट होता है जिसे बलीचिंग पाउडर भी कहा जाता है। मगर यह भी सच है कि सैनेटाइजर की जगह साबुन से हाथ धोना ज्यादा कारगर साबित होता है। साबुन वायरस को डिसोल्व करना शुरु कर देता है जबकि सेनेटाइजर से अन्य समस्याएं आने लगती हैं वैसे भी वह सैनेटाइजर इफेक्टिव माना जाता है जिसमें 70 प्रतिशत अल्कोहल हो मार्केट में अक्सर मिलने वाले सैनेटाइजर में अल्कोहल की मात्रा कम मिलती है।
यह भी सच है कि कोरोना जितना खतरनाक है उससे कहीं ज्यादा सरकारों की इससे बचाव के लिये जारी गाइड लाइन्ज़ परेशान करने वाली हैं जैसे गर व्यक्ति विशेष अपनी गाड़ी में अकेला सफर कर रहा है या फिर अपने परिवार के साथ सफर कर रहा है या फिर खुले में अकेला सैर कर रहा है और वह बाहरी दुनिया के कांटेक्ट में नहीं आ रहा है उसे मास्क पहनने की उतनी जरूरत नहीं होनी चाहिए, जितनी कि भीड़ में या फिर ज्यादा लोगों के कांटेक्ट में आने वाले व्यक्ति को मास्क की जरूरत होती है, मगर सरकारें मास्क को लेकर सारे लोगों को एक ही नजर से देखती हैं और पुलिसिया तरीके से इसका अनुपालन करवाने में लगी हैं। वैसे भी मास्क हार्ट और दमा के रोगियों को खासी दिक्कत दे रहा है। इन के लिए खुली हवा ज्यादा जरूरी होती है। इसी प्रकार कसरत करने वालों को भी ताजा हवा की जरूरत रहती है। सरकारों ने प्रीवेंटिव मैजर के चक्कर में इसके वे नियम गढ़ दिये हैं जो व्यवहारिक तौर पर सही नहीं हैं।
अब बात करते हैं प्रोमोटिव की। इसमें हम सारी जनता की अच्छी सेहत, रोगों से लड़ने की ज्यादा ताकत, अच्छी खुराक मगर जो आपको पसंद हो पर ज्यादा ध्यान दे सकते हैं। यह तभी संभव है गर हम अपना खान-पान सही रखें और अपनी इम्यूनिटी को न केवल बचा कर रखें बल्कि बढ़ायें भी। वैसे भी अक्सर यह कहा जाता है कि सबसे बढ़िया खाना मां के हाथ का बना खाना होता है। हमें प्रोमोटिव मैय्यर में तले हुए और जंक फूड से बचना चाहिए। गर ये बाहर से लाये गये हों तो इस पर पूरी तरह से रोक लगानीा चाहिए। इसके अलावा हर किसी को अपनी इम्युनिटी बढ़ाने के लिए खुले में कसरत करनी चाहिए इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस उम्र के हैं। भले ही बच्चे हैं या फिर बुजुर्ग हर किसी को अपनी क्षमता अनुसार कसरत करनी चाहिए। जब आप खुले में बाहर निकलते हैं तो और लोगों के संपर्क में आते हैं उनसे सामाजिक कांटेक्ट बढ़ता है आप शारीरिक ही नहीं मानसिक तौर पर भी स्वस्थ होते हैं।
मौजूदा हालात में सरकारें जो वैक्सिन लगा रही है वह भी इम्युनिटी बूस्टर ही तो है जो आपकी इम्युनिटी को अस्थायी तौर पर बढ़ा देता है मगर यह कब तक असरकारी रहता है यह वैक्सिन-वैक्सिन पर निर्भर करता है, हर कंपनी अपने वैक्सिन के प्रभाव का अपने स्तर पर दावा करती है।
इसमें एक बात और अहम है कि आज वैक्सिन के बारे में जो भ्रांतियां खुले आम पब्लिक फोरम पर आम शरारती तत्वों जिनमें कुछ पढ़े लिखे बुद्धिजीवि भी शामिल हैं द्वारा फैलायी जा रही हैं उन पर तुरंत रोक लगाने की जरूरत है-जैसे वैक्सिन लगवाने से दो साल बाद कैंसर होने लगेगा, पुरुषों की बच्चे पैदा करने की क्षमता जाती रहेगी, यह आबादी कम करने का तरीका है आदि आदि, सरकार को इसे गंभीरता से लेकर इस पर अंकुश लगाना चाहिये।
हमें कोरोना से लड़ने के लिए इम्युनिटी बूस्टर के तौर पर वैक्सिन के अलावा अपनी खुराक पर भी ध्यान देना चाहिए इसमें हम अपने खाने में फल और सब्जियां बढ़ा सकते हैं। इन से शरीर में ताकत आती है जबकि दूसरी ओर आम रोज का खाना हमारे अंदर केवल ऊर्जा पैदा करता है दोनों में फर्क होता है। हमें इम्युनिटी बढ़ाने के लिए विटामिन्ज़ और मिनरल्ज़ की जरूरत रहती है। जो हमें फलों और सब्जियों से मिलती है। यह बड़े दुख की बात है कि आज सरकारों की लाप्रवाही के चलते खादों और कीटनाशकों का प्रयोग आवश्यकता से अधिक हो रहा है नतीजा ये हमारे फल और सब्जियां ही नहीं पूरे पर्यावरण को ही प्रदूषित कर रहे हैं। इससे आम स्वस्थ व्यक्ति भी बीमार होने लगा है। सरकारों को इस पर भी गंभीरता से सोचना चाहिए।
आज हमारी खुराक प्रदूषित है, बाहर हवा और धरती तथा पानी तक प्रदूषित हो रहे हैं। दुख की बात तो यह है कि हमारे राजनेता उक्त समस्याओं की गंभीरता से पूरी तरह से अनजान नजर आते हैं। उन्हें ज्ञान ही नहीं कि वे किस माहौल में जनता का नेतृत्व कर रहे हैं। सब कुछ मिलावटी हो रहा है इस पर किसी का कोई ध्यान नहीं जा रहा। आम जनता को खुराक के बारे में पता ही नहीं उसे क्या खाना चाहिए क्या नहीं। इसका सरकारें नहीं बल्कि हम स्वयं भी हैं। हम सब बदलाव को कम पसंद करते हैं जो लंबे अर्से से खा रहे हैं या जिस वातावरण में रह रहे हैं उसे छोड़ना नहीं चाहते। जनता की अपने खाने को लेकर अपनी प्राथमिक्ताएं समय के साथ बदलनी होंगी। लोग अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा बाहर से खाना मंगवाने पर खर्च करते हैं बजाय कि फलों और सब्जियों के सेवन करने पर।
अब बात करते हैं क्युरेटिव यानि इलाज की। डॉ. मुल्तानी ने आरोप लगाया कि इसमें ज्यादा कसूरवार सरकार नजर आती है। क्योंकि सरकार के पास वायरस जैसी आपदा से निबटने के लिए आज भी कोई कानून नहीं है। वह आज भी एपिडेमिक कंट्रोल एक्ट 1897 अथवा डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 के सहारे कोरोना वायरस से लड़ने में लगी है। जो मौजूदा परिस्थितियों के मुकाबले कब के औब्सीलीट या समय के प्रतिकूल हो चुके हैं। आपको ताज्जुब होगा कि डिसास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 में हेल्थ शब्द है ही नहीं ये तो प्राकृतिक आपदा जैसे फ्लड, भुकंप और तुफान आदि से लड़ने के लिए बनाया गया था न कि स्वास्थ्य संबंधी रोगों को नियंत्रित करने के लिए। जबकि दूसरा एपिडेमिक कंट्रोल एक्ट 1897 स्पेनिश फ्लू को नियंत्रित करने के लिये था उस समय हवा से फैलने वाले रोगों पर ध्यान नहीं दिया जाता था।
डॉ. मुल्तानी कहते हैं कि मौजूदा हालात में कोविड-19 से लड़ने के लिए कुप्रबंधन ज्यादा नजर आ रहा है। आज वायरस को नियंत्रित करने के लिए सारा नियंत्रण उन प्रशासनिक अधिकारियों के हाथ में है जिन्हें वायरस अथवा बीमारी का ए बी सी तक नहीं आता। सिविल एडमिनिसट्रेशन हर नियम को न केवल मनमाने तरीके से बना रही है बल्कि पुलिसिया तरीके से लागू भी करने में लगी है कभी टेस्टिंग पर जोर देती है तो कभी वैक्सिन पर, उसे पता ही नहीं कि उसे करना क्या चाहिए। वह स्वास्थ्य के विशेषज्ञों की राय लेने के बजाय उन्हें काम कैसे किया जाये सिखाने में लगी है इस से नुकसान आम जनता का ही हो रहा है। ऐसे में रोग कैसे दूर होगा। हाल ही में पूरे देश में आॅक्सीजन की कमी, फिर टेस्टिंग किट की कमी और फिर वैक्सिन की कमी सब ने देखी ही नहीं झेली भी है।
आपको ताज्जुब होगा कि पूरे देश में आज भी कोई हेल्थ पॉलिसी ही नहीं है। वर्ष 2009 में एक हेल्थ पॉलिसी बनी थी मगर उस पर न तो आज तक कोई गंभीर चर्चा हुई है और न ही उसे लागू किया गया है अब वर्ष 2021 आ गया है तो उक्त पॉलिसी भी वक्त की रफतार के आगे ओब्सीलीट हो चुकी है। सिविल एडमिन्स्ट्रेशन पूरी ताकत अपने हाथों में केंद्रित रखना चाहती है वह स्वास्थ्य विशेषज्ञों को काम करने के तरीके बता रही है जबकि होना यह चाहिए कि कोरोना से लड़ने अथवा इसे नियंत्रित करने के तरीके स्वास्थ्य विशेषज्ञ बतायें और उन्हें लागू सिविल एडमिन्स्ट्रेशन करे मगर अफसोस हो इसके बिलकुल उल्ट रहा है। इससे स्वास्थ्य विभागों में काम करने वाले डाक्टरों से लेकर सभी वर्ग के स्टाफ डीमोटिवेटिड हो रहे हैं। उन्हें हेल्थ में कम बजट होने के चलते वे सुविधायें नहीं मिल रही है जिनकी कि उन्हें जरूरत है। हमारे राज्यों में स्वास्थ्य मंत्री तक उतना पढ़े लिखे नहीं हैं जितने कि होने चाहिएं। उन्हें अपनी बात कहने में संकोच महसूस होता है नये रोगों पर टिप्पणी तो दूर बात करने से भी वे कतराते हैं।
मौजूदा हालात में वायरस से लड़ने के लिए हमारे पास एंटी वायरस ड्रग कम है और एक्सपैरिमेंटल ड्रग्स ज्यादा। दुख की बात है कि इस पर हमारे कुछ मेडिकल एक्पर्टस ने भी आम जनता को सोशन किया है। जो दवायें कोरोना के रोगियों को ठीक करने में प्रयोग में लायी गयीं वे कभी भी प्रयोग में लाने की अनुमति नहीं थी क्यों कि ये प्रोटोकोल में थी ही नहीं। इनकी कीमतों को लेकर भी अस्पतालों, डाक्टरों और तो और कैमिस्टों ने आम लाचार जनता को खूब लूूटा है जो सही नहीं है।
हमारे देश में खास कर देहात और कालोनियों अथवा छोटे शहरों में अनआॅर्गेनाइज्ड मेडिकल प्रोफेशनल्ज़ ने स्टीरोयेड का जम कर प्रयोग किया है। इन स्टीरोयेड ने अन्य बीमारियों को जन्म दिया है जैसे चार तरह के फंगल इन्फेक्शन्जÞ-ब्लैक, व्हाइट, येलो आदि। ये फंगस रोगी के दीमाग में, फेफड़ों में और पेट में पैदा हो कर उसे मार रहा है।
हम सब मेडिकल प्रोफेशनल्ज़ जानते हैं कि पंजाब तो क्या पूरे भारत में शूगर यानि मधुमेह के रोगियों की संख्या काफी ज्यादा है। जो रोगी के अंदर इम्युनिटी को कम करता है, इसके अलावा स्टीरोयेड के ज्यादा प्रयोग से भी इम्युनिटी कम होती हैऔर ये नई बीमारियों को जन्म देते हैं। इन सब ने मिलकर मौतों के आंकड़ों को बढ़ाने का काम किया है और पूरा जिम्मेवार कोरोना वायरस को ठहरा दिया है।
सुझाव
डॉ. मुल्तानी के मुताबिक हमें कोरोना वायरस को समझकर इसे नियंत्रित करने के प्रयास करने चाहिए न कि हर किसी को मौके का फायदा उठा कर डाक्टर बन जाना चाहिए क्योंकि हाफ नालेज इज आल्वेज डेंजरस। मौजूदा हालात में हमें हेल्थ से जुड़े सभी पहले से ट्रेंड परसोनल को हायर करना चाहिए। हमारे देश में करोड़ों की तादाद में लैब टेक्नीशियन्ज़, मल्टी परपज़ हेल्थ वर्करज़, मेल फिमेल नर्स स्टाफ, आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, युनानी, सिद्ध, योगा और नेच्रोपैथी के विशेषज्ञ मौजूद हैं इनके हुनर का वायरस को कंट्रोल करने में फायदा उठाना चाहिए न कि इन्हें सिविल प्रशासन द्वारा डिक्टेट करके इन्हें मौजूदा परिस्थितियों से दूर बैठने के लिए कहना चाहिए।
कोविड-19 के इलाज को लेकर राजनेताओं को कोई भी स्टेटमेंट देने से बचना चाहिए क्योंकि उन्हें इसके बारे में कोई ज्ञान नहीं है। मीडिया पर कोरोना के इलाज पर परिचर्चाओं पर पूरी तरह से रोक लगनी चाहिए क्योंकि आम जनता मीडिया में आने पर उसे आजमाने लगती है जिससे खासा नुकसान हो जाता है। सरकार को ब्लैक मार्कीटिंग पर अंकुश लगाना चाहिए। पिछले कुछ महीनों में आॅक्सीजन की कमी से इस की ब्लैक होने के समाचार सुनने में मिले हैं। रोगी को आॅक्सीजन कितनी देनी चाहिए और कौनी सी देनी चाहिए इसका ज्ञान केवल और केवल स्वास्थ्य विशेषज्ञों को होता है न कि आॅक्सीजन का लंगर लगाने वालों को। देखा गया है कि आॅक्सीजन की कमी के दौर में लोगों ने अपने घर पर आॅक्सीजन के सिलंडर स्टोर करने शुरु कर दिये थे जो सही नहीं है। कोरोना के हर रोगी को आॅक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ती। वैसे भी मेडिकल आॅक्सीजन और इंडस्ट्रीयल आॅक्सीजन में फर्क रहता है। आॅक्सीजन के प्रयोग के समय इसे बार बार साफ करना होता है अन्यथा इसे रोगी में फंगस पैदा होने के चांस रहते हैं हुआ भी यही कई रोगी इसका शिकार हुए हैं।
दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि सरकार मौजूदा हालात में एडहॉक मैजरमैंट अपनाने पर गौर कर रही है बजाय कि इसका स्थायी हल ढूंढने के। सरकार को मौजूदा काम करने के तरीकों में ढांचागत परिवर्तन लाने की जरूरत है। सरकार को बिना किसी देरी के देश की हेल्थ पॉलिसी की घोषणा करनी चाहिए जिसे लागू सिविल प्रशासन करे। दूसरी ओर स्वास्थ्य विभाग को आगे आकर अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करना चाहिए।
डा. मुल्तानी का कहना है कि इस कोरोना काल में आम जनता को कोरोना ने कम बल्कि देश में कोरोना से लड़ने के लिये बुनियादी ढांचे में कमी और सरकारों के कुप्रबंधन ने ज्यादा मारा है। गल्त अफवाहों और धारणाओं के चलते लोग अस्पताल गये ही नहीं। नतीजा बद से बदतर होता चला गया। कोरोना काल में किसी तरह के दोषी को यकीनन सजा देनी चाहिए। सरकार को आॅक्सीजन, दवाओं की कालाबजारी रोकने के लिए कठोर कदम उठाने चाहिएं। गैरसरकारी संगठनों को सरकारी अस्पतालों की मदद करनी चाहिए बजाय कि स्वयं सरकारी अस्पताल बनने के। सरकार को प्राइवेट सेक्टर को नियंत्रित करने के लिए क्लीनिकल इस्टेबलिश्मेंट एक्ट को प्रयोग में लाना चाहिए। कोरोना से संबंधित हर तरह की सेवा अथवा काम को शुरु करने से पहले पूरी तरह से आंका जाना चाहिए। जो जरूरत ही नहीं बल्कि समय की भी मांग है।