Wednesday, April 16, 2025
BREAKING
Weather: गुजरात में बाढ़ से हाहाकार, अब तक 30 लोगों की मौत; दिल्ली-एनसीआर में भारी बारिश की चेतावनी जारी दैनिक राशिफल 13 अगस्त, 2024 Hindenburg Research Report: विनोद अदाणी की तरह सेबी चीफ माधबी और उनके पति धवल बुच ने विदेशी फंड में पैसा लगाया Hindus in Bangladesh: मर जाएंगे, बांग्लादेश नहीं छोड़ेंगे... ढाका में हजारों हिंदुओं ने किया प्रदर्शन, हमलों के खिलाफ उठाई आवाज, रखी चार मांग Russia v/s Ukraine: पहली बार रूसी क्षेत्र में घुसी यूक्रेनी सेना!, क्रेमलिन में हाहाकार; दोनों पक्षों में हो रहा भीषण युद्ध Bangladesh Government Crisis:बांग्लादेश में शेख हसीना का तख्तापलट, सेना की कार्रवाई में 56 की मौत; पूरे देश में अराजकता का माहौल, शेख हसीना के लिए NSA डोभाल ने बनाया एग्जिट प्लान, बौखलाया पाकिस्तान! तीज त्यौहार हमारी सांस्कृतिक विरासत, इन्हें रखें सहेज कर- मुख्यमंत्री Himachal Weather: श्रीखंड में फटा बादल, यात्रा पर गए 300 लोग फंसे, प्रदेश में 114 सड़कें बंद, मौसम विभाग ने 7 अगस्त को भारी बारिश का जारी किया अलर्ट Shimla Flood: एक ही परिवार के 16 सदस्य लापता,Kedarnath Dham: दो शव मिले, 700 से अधिक यात्री केदारनाथ में फंसे Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एससी एसटी की सब-कैटेगरी में आरक्षण को दी मंज़ूरी

लेख

मौजूदा समय में गांधीवाद की प्रासंगिकता : सुभाष गोयल, समाज सेवक एवं एम.डी.वर्धान आर्युवेदिक आर्गेनाइजेशन

July 11, 2021 08:11 AM

वर्तमान अस्थिरता के दौर में जहाँ एक ओर कोविड-19 जैसी महामारी लोगों को हताश और बेहाल किये हुए है वहीं दूसरी ओर इसके आर्थिक परिणाम भी लोगों को भविष्य के प्रति आशंकित किये हुए हैं। कभी हाथरस जैसे कांड लोगों को मानवीय मूल्यों पर चिंतन हेतु विवश करते हैं तो कभी ड्रग्स जैसे मामले समाज को झकझोरते हैं। आज संपूर्ण विश्व बाजारवाद के दौड़ में शामिल हो चुका है। लालच की परिणति युद्ध की सीमा तक चली जाती है। ऐसे में गांधीवाद की प्रासंगिकता पहले से कहीं अधिक हो जाती है। तो क्या गांधीवाद को अपनाने के लिये हमें टोपी या धोती पहनने की जरूरत है या फिर ब्रह्मचर्य अपनाने या फिर घृणा करने की आवश्यकता है? नहीं, इनमें से कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि घृणा को दूर करने के लिये गांधीवाद को अपनाने की जरूरत है।
अब प्रश्न यह उठता है कि यह गांधीवाद है क्या? किसी भी शोषण का अहिंसक प्रतिरोध, सबसे पहले दूसरों की सेवा, संचय से पहले त्याग, झूठ के स्थान पर सच, अपने बजाय देश और समाज की चिंता करना आदि विचारों को समग्र रूप से गांधीवाद की संज्ञा दी जाती है। गांधीवादी विचार व्यापक रूप से प्राचीन भारतीय दर्शन से प्रेरणा पाते है और इन विचारों की प्रासंगिकता अभी भी बरकरार है। आज के दौर में जब समाज में कल्याणकारी आदर्शों का स्थान असत्य, अवसरवाद, धोखा, चालाकी, लालच व स्वार्थपरता जैसे संकीर्ण विचारों द्वारा लिया जा रहा है तो समाज सहिष्णुता, प्रेम, मानवता, भाईचारे जैसे उच्च आदर्शों को विस्तृत करता जा रहा है। विश्व शक्तियाँ शस्त्र एकत्र करने की स्पर्धा में लगी हुई है लेकिन एक छोटे से वायरस को हरा पाने में असमर्थ और लाचार साबित हो रही है। ऐसे में विश्व शांति की पुनर्स्थापना के लिये, मानवीय मूलों को पुन: प्रतिष्ठित करने के लिये आज गांधीवाद नए स्वरूप में पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो उठा है।
गांधी जी धर्म व नैतिकता में अटूट विश्वास रखते थे। उनके लिये धर्म, प्रथाओं व आंडबरों की सीमा में बंधा हुआ नहीं वरन् आचरण की एक विधि थी। गांधी जी के अनुसार, धर्मविहीन राजनीति मृत्युजाल है, धर्म व राजनीति का यह अस्तित्व ही समाज की बेहतरी के लिये नींव तैयार करता है। गांधी जी साधन व साध्य दोनों की शुद्धता पर बल देते थे। उनके अनुसार साधन व साध्य के मध्य बीज व पेड़ के जैसा संबंध है एवं दूषित बीज होने की दशा में स्वस्थ पेड़ की उम्मीद करना अकल्पनीय है।
गांधीवादी विचारधारा महात्मा गांधी द्वारा अपनाई और विकसित की गई उन धार्मिक-सामाजिक विचारों का समूह है जो उन्होंने पहली बार वर्ष 1983 से 1914 तक दक्षिण अफ्रीका में तथा उसके बाद फिर भारत में अपनाई गई थी।
गांधीवादी दर्शन न केवल राजनीतिक, नैतिक और धार्मिक है, बल्कि पारंपरिक और आधुनिक तथा सरल एवं जटिल भी है। यह कई पश्चिमी प्रभावों का प्रतीक है, जिनको गांधीजी ने उजागर किया था, लेकिन यह प्राचीन भारतीय संस्कृति में निहित है तथा सार्वभौमिक नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों का पालन करता है। गांधीजी ने इन विचारधाराओं को विभिन्न प्रेरणादायक स्रोतों जैसे- भगवतगीता, जैन धर्म, बौद्ध धर्म, बाइबिल, गोपाल कृष्ण गोखले, टॉलस्टॉय, जॉन रस्किन आदि से विकसित किया। टॉलस्टॉय की पुस्तक ह्यद किंगडम आॅफ गॉड इज विदिन यूह्ण का महात्मा गांधी पर गहरा प्रभाव था। गांधीजी ने रस्किन की पुस्तक ह्यअंटू दिस लास्टह्ण से ह्यसर्वोदयह्ण के सिद्धांत को ग्रहण किया और उसे जीवन में उतारा।
गांधीजी ने आजादी की लड़ाई के साथ-साथ छुआछूत उन्मूलन, हिन्दू-मुस्लिम एकता, चरखा और खादी को बढ़ावा, ग्राम स्वराज का प्रसार, प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा और परंपरागत चिकित्सीय ज्ञान के उपयोग सहित तमाम दूसरे उद्देश्यों पर कार्य करना निरंतर जारी रखा। सत्य के साथ गांधीजी के प्रयोगों ने उनके इस विश्वास को पक्का कर दिया था कि सत्य की सदा विजय होती है और सही रास्ता सत्य का रास्ता ही है। आज मानवता की मुक्ति सत्य का रास्ता अपनाने से ही है। गांधी जी सत्य को ईश्वर का पर्याय मानते थे। गांधीजी का मत था कि सत्य सदैव विजयी होता है।
और अगर मनुष्य का संघर्ष सत्य के लिये है तो हिंसा का लेशमात्र उपयोग किये बिना भी वह अपनी सफलता सुनिश्चित कर सकता है।
1. सत्य: गांधीजी सत्य के बड़े आग्रही थे। वे सत्य को ईश्वर मानते थे। सत्य उनके लिये सर्वोपरि सिद्धांत था। वे वचन और चिंतन में सत्य की स्थापना का प्रयत्न करते थे।
लेकिन वर्तमान समय में देखा जाए तो राजनीतिज्ञ, मंत्रीगण अपने पद की शपथ ईश्वर को साक्षी मानकर करने के बावजूद गलत काम करने से पीछे नहीं हटते। अपने कर्मों के पालन के समय वे सत्य को भी नकार देते हैं। अगर गांधीवादी सिद्धांतों का सही तरह से पालन किया जाए तो देश नवनिर्माण की दिशा में आगे बढ़ चलेगा।
2. अहिंसा: गांधीजी के अनुसार मन, वचन और शरीर से किसी को भी दु:ख न पहुँचाना ही अहिंसा है। गांधीजी के विचारों का मूल लक्ष्य सत्य एवं अहिंसा के माध्यम से विरोधियों का हृदय परिवर्तन करना है। अहिंसा का अर्थ ही होता है प्रेम और उदारता की पराकाष्ठा। गांधी जी व्यक्तिगत जीवन से लेकर वैश्विक स्तर पर ह्यमनसा वाचा कर्मणाह्ण अहिंसा के सिद्धांत का पालन करने पर बल देते थे। आज के संघर्षरत विश्व में अहिंसा जैसा आदर्श अति आवश्यक है। गांधी जी बुद्ध के सिद्धांतों का अनुगमन कर इच्छाओं की न्यूनता पर भी बल देते थे।
यदि इस सिद्धांत का पालन किया जाए तो आज क्षुद्र राजनीतिक व आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिये व्याकुल समाज व विश्व अपनी कई समस्याओं का निदान खोज सकता है। आज संपूर्ण विश्व अपनी समस्याओं का हल हिंसा के माध्यम से ढूंढना चाहता है। वैश्वीकरण के इस दौर में ह्यवसुधैव कुटुम्बकम्ह्ण की अवधारणा ही खत्म होती जा रही है। अमेरिका, चीन, उत्तर कोरिया, ईरान जैसे देश हिंसा के माध्यम से प्रमुख शक्ति बनने की होड़ एवं दूसरों पर वर्चस्व के इरादे से हिंसा का सहारा लेते हैं। इस हेतु वैश्विक रूप से शस्त्रों की होड़ लग गई है। यह अंधी दौड़ दुनिया को अंतत: विनाश की ओर ले जाता है। आज अहिंसा जैसे सिद्धांतों का पालन करते हुए विश्व में शांति की स्थापना की जा सकती है जिसकी आज पूरे विश्व को आवश्यकता है।
3. सत्याग्रह: सत्याग्रह का अर्थ है सभी प्रकार के अन्याय, उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ शुद्धतम आत्मबल का प्रयोग करना। यह व्यक्तिगत पीड़ा सहन कर अधिकारों को सुरक्षित करने और दूसरों को चोट न पहुँचाने की एक विधि है। सत्याग्रह की उत्पत्ति उपनिषद, बुद्ध-महावीर की शिक्षा, टॉलस्टॉय और रस्किन सहित कई अन्य महान दर्शनों में मिलती है। गांधीजी का मत था कि निष्क्रिय प्रतिरोध कठोर-से-कठोर हृदय को भी पिघला सकता है। वे इसे दुर्बल मनुष्य का शस्त्र नहीं मानते थे। उनके अनुसार शारीरिक प्रतिरोध करने वाले की अपेक्षा निष्क्रिय प्रतिरोध करने वाले में कहीं ज्यादा साहस होना चाहिये।
आज के समय में सत्याग्रह का प्रयोग विभिन्न स्थानों एवं परिस्थितियों पर सुसंगत एवं तार्किक प्रतीत होता है। राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सरकारी नीतियों, आदेशों से मतभेद की स्थिति में विरोध हेतु सत्याग्रह का प्रयोग कहीं श्रेयस्कर है। आत्मबल शारीरिक बल से अधिक श्रेष्ठ होता है। बुराई के प्रतिकार के लिये यदि आत्मबल का सहारा लिया जाए तो मौजूदा परेशानियाँ दूर की जा सकती हैं।
4. सर्वोदय: सर्वोदय शब्द का अर्थ है ह्यसार्वभौमिक उत्थानह्ण या सभी की प्रगति। यह शब्द पहली बार गांधीजी ने राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर जॉन रस्किन की पुस्तक ह्यअंटू दिस लास्टह्ण में पढ़ा था। सर्वोदय ऐसे वर्गविहीन, जातिविहीन और शोषण-मुक्त समाज की स्थापना करना चाहता है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति और समूह को अपने सर्वांगीण विकास का साधन और अवसर मिले। ऐसे समाज में वर्ण, धर्म, जाति, भाषा आदि के आधार पर किसी समुदाय का न तो संहार हो और न ही बहिष्कार। सर्वोदय शब्द गांधीजी द्वारा प्रतिपादित एक ऐसा विचार है जिसमें ह्यसर्वभूतहितं रता:ह्ण की भारतीय कल्पना, सुकरात की ह्यसत्य साधनाह्ण और रस्किन की ह्यअंत्योदयह्ण की अवधारणा सब कुछ सम्मिलित है। गांधीजी ने कहा था ह्यह्यमैं अपने पीछे कोई पंथ या संप्रदाय नहीं छोड़ना चाहता हूँ।ह्णह्ण यही कारण है कि सर्वोदय आज एक समर्थ जीवन, समग्र जीवन और संपूर्ण जीवन का पयार्य बन चुका है।
आज के दौर में पूरा विश्व एक ऐसे ही समाज की खोज में है जहाँ शोषण , वर्ग, जाति आदि की कोई जगह न हो। कहीं रोहिंग्या तो कहीं शिया और सुन्नी के नाम पर हिंसा हो रही है तो कहीं आतंक फैलाया जा रहा है। एक वर्ग दूसरे का शोषण कर रहा है जिससे समाज में अव्यवस्था फैल रही है। अगर गांधीजी के सर्वोदय की संकल्पना साकार होती है तो संपूर्ण विश्व एक परिवार का रूप ले सकता है।
5. स्वराज: हालाँकि स्वराज शब्द का अर्थ स्व-शासन है, लेकिन गांधीजी ने इसे एक ऐसी अभिन्न क्रांति की संज्ञा दी जो कि जीवन के सभी क्षेत्रों को समाहित करती है। गांधी जी के लिये स्वराज का अर्थ व्यक्तियों के स्वराज (स्व-शासन) से था और इसलिये उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके लिये स्वराज का मतलब अपने देशवासियों हेतु स्वतंत्रता है और अपने संपूर्ण अर्थों में स्वराज स्वतंत्रता से कहीं अधिक है।
आत्मनिर्भर व स्वायत्त्त ग्राम पंचायतों की स्थापना के माध्यम से ग्रामीण समाज के अंतिम छोर पर मौजूद व्यक्ति तक शासन की पहुँच सुनिश्चित करना ही गांधी जी का ग्राम स्वराज सिद्धांत था। आर्थिक मामलों में भी गांधीजी विकेंद्रीकृत अर्थव्यवस्था के माध्यम से लघु, सूक्ष्म व कुटीर उद्योगों की स्थापना पर बल देते थे। उनका मत था कि भारी उद्योगों की स्थापना के पश्चात् इनसे निकलने वाली जहरीली गैसें व धुंआ पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं, साथ ही बहुत बड़े उद्योगों का अस्तित्व श्रमिक वर्ग के शोषण का भी मार्ग तैयार करता है। आज इस महामारी के दौर में जब पूरे विश्व को एक बार फिर आर्थिक मंदी की ओर जाने का खतरा दिखाई दे रहा है ऐसे में इन कुटीर उद्योगों की स्थापना गरीब श्रमिकों के लिये आशा की किरण साबित होगी।
6. ट्रस्टीशिप: ट्रस्टीशिप एक सामाजिक-आर्थिक दर्शन है जिसे गांधीजी द्वारा प्रतिपादित किया गया था। यह अमीर लोगों को एक ऐसा माध्यम प्रदान करता है जिसके द्वारा वे गरीब और असहाय लोगों की मदद कर सकें। यह सिद्धांत गांधीजी के आध्यातिमक विकास को दशार्ता है, जो कि थियोसोफिकल लिटरेचर और भगवतगीता के अध्ययन से उनमें विकसित हुआ था। वर्तमान समय में गांधीजी की यह विचारधारा काफी प्रासंगिक है जब विश्व में गरीबी और भूखमरी चारों तरफ अपना साया फैलाये खड़ी है। गांधीजी का यह विचार कि धन व उत्पादन के साधनों पर सामूहिक नियंत्रण की स्थापना हेतु न्यास जैसी व्यवस्था स्थापित की जाए, काफी मायने रखती है।
7. स्वदेशी: स्वदेशी शब्द संस्कृत से लिया गया है और यह संस्कृत के दो शब्दों का एक संयोजन है। ह्यस्वह्ण का अर्थ है स्वयं और देश का अर्थ देश ही है अर्थात् अपना देश। स्वदेशी का शाब्दिक अर्थ अपने देश से लिया जाता है परंतु अधिकांश संदर्भों में इसका अर्थ आत्मनिर्भरता के रूप में लिया जा सकता है। स्वदेशी राजनीतिक और आर्थिक दोनों तरह से अपने समुदाय के भीतर ध्यान केंद्रित करता है। यह समुदाय और आत्मनिर्भरता की अन्योन्याश्रिता है। गांधीजी का मानना था कि इससे स्वतंत्रता (स्वराज) को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि भारत का ब्रिटिश नियंत्रण उनके स्वदेशी उद्योगों के नियंत्रण में निहित था। स्वदेशी अभियान भारत की स्वतंत्रता की कुंजी थी और महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यव्रमों में चरखे द्वारा इसका प्रतिनिधित्व किया गया था।
आज जब अमेरिका एवं चीन जैसे देश व्यापार-युद्ध के माध्यम से अपने देश को सशक्त और दूसरे देशों की आर्थिक व्यवस्था को कमजोर करने पर तुले हैं। ऐसी स्थिति में स्वदेशी की यह संकल्पना देश के घरेलू उद्योगों और कारीगरों हेतु एक वरदान की भांति सिद्ध होगा।
गांधीजी शिक्षा के संदर्भ में अध्ययन व जीविका कमाने का कार्य एक साथ करने पर बल देते थे। आज जब बेरोजगारी देश की इतनी बड़ी समस्या है तब गांधीजी के इस विचार को ध्यान में रखकर शिक्षा नीतियाँ बनाना लाभप्रद होगा। गांधीजी का राष्ट्र का विचार भी अत्यंत प्रगतिशील था। उनका राष्ट्रवाद वसुधैव कुटुम्बकम के विस्तार से प्रेरित था। वे राष्ट्रवाद की अंतिम परिणति केवल एक राष्ट्र के हितों तक सीमित न मानते हुए उसे विश्व कल्याण की दिशा में विस्तृत करने पर बल देते थे। आजकल राष्ट्रवाद का अतिवादी स्वरूप होता देखकर गांधीवादी राष्ट्रवाद सटीक लगता है।
हम पाते हैं कि गांधीजी के विचार शाश्वत है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि उन्होंने जमीनी तौर पर अपने विचारों का परीक्षण किया और जीवन में सफलता अर्जित की जो न सिर्फ स्वयं के लिये अपितु पूरे विश्व के लिये थी। आज दुनिया गांधी के मार्ग को सबसे स्थायी रूप में देखती है।

Have something to say? Post your comment

और लेख समाचार

रामकृष्ण परमहंस की जयंती पर विशेष : पुरुषार्थ से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त की जा सकती है

रामकृष्ण परमहंस की जयंती पर विशेष : पुरुषार्थ से ही ईश्वर की कृपा प्राप्त की जा सकती है

क्या विपक्षी एकता कायम रहेगी

क्या विपक्षी एकता कायम रहेगी

यूएसएआईडी का दुरुपयोग

यूएसएआईडी का दुरुपयोग

बसंत पंचमी पर विशेष -बसंत पंचमी: ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती को समर्पित पर्व

बसंत पंचमी पर विशेष -बसंत पंचमी: ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती को समर्पित पर्व

रूसी शासन की निशानियां मिटा रहा यूक्रेन:नागरिकों ने देश में बने सोवियत काल के 60 स्मारक तोड़े, इसमें रेड आर्मी कमांडर की मूर्ति शामिल

रूसी शासन की निशानियां मिटा रहा यूक्रेन:नागरिकों ने देश में बने सोवियत काल के 60 स्मारक तोड़े, इसमें रेड आर्मी कमांडर की मूर्ति शामिल

जमीन के धधकते 'पाताल' से बाहर लौटा वैज्ञानिक, जो बताया वह जानकर दंग रह जाएंगे

जमीन के धधकते 'पाताल' से बाहर लौटा वैज्ञानिक, जो बताया वह जानकर दंग रह जाएंगे

सूरत डायमंड बोर्स का आज इनॉगरेशन करेंगे मोदी:ये दुनिया का सबसे बड़ा ऑफिस कॉम्प्लेक्स, डायमंड मैन्युफैक्चरिंग और ट्रेडिंग का वन-स्टॉप हब

सूरत डायमंड बोर्स का आज इनॉगरेशन करेंगे मोदी:ये दुनिया का सबसे बड़ा ऑफिस कॉम्प्लेक्स, डायमंड मैन्युफैक्चरिंग और ट्रेडिंग का वन-स्टॉप हब

जब दुनिया के सबसे छोटे कद के शख्स से मिला विश्व का सबसे लंबा आदमी, कमाल का था नज़ारा

जब दुनिया के सबसे छोटे कद के शख्स से मिला विश्व का सबसे लंबा आदमी, कमाल का था नज़ारा

जब सऊदी प्रिंस ने अपने 80 बाजों के लिए बुक कर ली थी फ्लाइट, पक्षियों के लिए बनवाया था पासपोर्ट

जब सऊदी प्रिंस ने अपने 80 बाजों के लिए बुक कर ली थी फ्लाइट, पक्षियों के लिए बनवाया था पासपोर्ट

चीन में भीषण ट्रेन हादसा, भारी बर्फबारी के कारण टकराईं दो मेट्रो; 515 लोग घायल

चीन में भीषण ट्रेन हादसा, भारी बर्फबारी के कारण टकराईं दो मेट्रो; 515 लोग घायल

By using our site, you agree to our Terms & Conditions and Disclaimer     Dismiss