हाल ही में भारत सरकार ने अपने नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्य को वर्ष 2022 के 175 गीगावाट से बढ़ाते हुए वर्ष 2030 तक 450 गीगावॉट कर दिया है। इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु केंद्रीय बजट 2021 में राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन का प्रस्ताव दिया गया है।
हाइड्रोजन एक ऐसा तत्त्व है जो पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। अत: इसका उपयोग स्वच्छ ईंधन के लिये वैकल्पिक तौर पर किया जा सकता है। भविष्य में स्वच्छ ईंधन के प्रयोग एवं बिजली की उच्चतम मांग को पूरा करने के लिये सरकार को हाइड्रोजन ईंधन के उत्पादन की दिशा में कार्य करना चाहिये।
काउंसिल आॅन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर के एक विश्लेषण के अनुसार अमोनिया, स्टील, मेथनॉल, ऊर्जा भंडारण और परिवहन जैसे क्षेत्रों में भारत में ग्रीन हाइड्रोजन की मांग 1 मिलियन टन तक हो सकती है। हालाँकि वाणिज्यिक-पैमाने पर हाइड्रोजन के उपयोग को बढ़ाने में कई चुनौतियाँ हैं।
ग्रीन हाइड्रोजन का महत्त्व
ग्रीन हाइड्रोजन ऊर्जा भारत के राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान लक्ष्य को पूरा करने एवं क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
ग्रीन हाइड्रोजन ऊर्जा भंडारण के एक विकल्प के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है, जिसका उपयोग भविष्य में नवीकरणीय ऊर्जा के रूप में किया जा सकता है।
परिवहन के संदर्भ में शहरी या अंतर्राज्यीय स्तर पर या लंबी दूरी के लिये रेलवे, बड़े जहाजों, बसों या ट्रकों आदि में ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग किया जा सकता है।
हाइड्रोजन प्रमुख अक्षय स्रोत होने के साथ-साथ आधारभूत संरचनाओं के लिये भी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
व्यावसायिक रूप से हाइड्रोजन का उपयोग करने के लिये सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक ग्रीन हाइड्रोजन का निष्कासन है। हाइड्रोजन निष्कासन की प्रक्रिया बेहद खचीर्ली होती है।
वर्तमान में अधिकांश नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन, जिससे कम लागत में बिजली का उत्पादन किया जा सकता है, उनका उत्पादन केंद्र उन स्थानों से दूर स्थित है जहॉं उनकी मांग है।
हाइड्रोजन के उत्पादन में उपयोग की जाने वाली तकनीक, जैसे- कार्बन कैप्चर और स्टोरेज एवं हाइड्रोजन ईंधन सेल प्रौद्योगिकी अभी प्रारंभिक अवस्था में हैं। इस कारण भी ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत काफी अधिक है।
कानूनी बढ़ाएँ: विद्युत अधिनियम, 2003 ने राज्य की सीमाओं के पार खुली बिजली का परिचालन करने का प्रावधान किया है। हालॉंकि जमीनी स्तर पर इसे लागू नहीं किया जा सका है।
विकेंद्रीकृत उत्पादन: विकेन्द्रीकृत हाइड्रोजन उत्पादन को एक इलेक्ट्रोलाइजर (जो जल को एच 2 और ओ 2 में विभाजित करता है) में अक्षय ऊर्जा की पहुँच सुनिश्चित कर किया जाता है।
न्यूनतम आंतरायिकता: विकेंद्रीकृत हाइड्रोजन उत्पादन के लिये चौबीस घंटे नवीकरणीय ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये एक तंत्र की आवश्यकता है।
नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़ी आंतरायिकता जिसका अर्थ है किसी शक्ति स्रोत को अनजाने में रोका जाना या आंशिक रूप से अनुपलब्ध होना, को कम करने के लिये, ईंधन सेल को निरंतर हाइड्रोजन आपूर्ति सुनिश्चित करना होगा।
समवर्द्धित उत्पादन: पारंपरिक रूप से उत्पादित हाइड्रोजन के साथ ग्रीन हाइड्रोजन के उत्पादन से हाइड्रोजन की आपूर्ति की विश्वसनीयता में सुधार करने से ईंधन के अर्थशास्त्र में काफी सुधार होगा।
इस संदर्भ में मौजूदा प्रक्रियाओं, विशेष रूप से औद्योगिक क्षेत्र में ग्रीन हाइड्रोजन सम्मिश्रण जैसे कदम मददगार साबित हो सकते हैं।
वित्त की उपलब्धता: नीति निमार्ताओं को इस तकनीक पर कार्य करने वाली संस्थाओं को प्रारंभिक चरण में निवेश की सुविधा प्रदान करनी चाहिये और भारत में ग्रीन हाइड्रोजन से जुड़ी प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने के लिये आवश्यक अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करना चाहिये।
इसके लिये सरकार को तो आगे आना ही होगा साथ ही निजी क्षेत्र को भी भविष्य के लिये ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये आगे आना होगा।
घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना: भारत को राष्ट्रीय सौर मिशन के अनुभव से सीखना चाहिये और घरेलू विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
एंड-टू-एंड इलेक्ट्रोलाइजर विनिर्माण सुविधा की स्थापना के लिये उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना जैसे उपायों की आवश्यकता होगी।
इसके लिये एक मजबूत विनिर्माण रणनीति की भी आवश्यकता है जो उपलब्ध संसाधनों का लाभ उठा सके और वैश्विक मूल्य श्रृंखला के साथ एकीकरण करके इससे जुड़े खतरों को कम कर सके।
जलवायु परिवर्तन के खतरे को देखते हुए ग्रीन हाइड्रोजन से जुड़ी तकनीकों को प्रोत्साहित करना आवश्यक हो जाता है। ऊर्जा के इस विकल्प पर उल्लेखनीय कार्य करके भारत हाइड्रोजन तकनीक और उससे जुड़े अनुसंधान एवं विकास जैसे मुद्दों पर विश्व का नेतृत्व कर सकता है।