डॉक्टर दलेर सिंह मुल्तानी, सेवानिवृत्त सिविल सर्जन
कोरोना एक महामारी है जो तकरीबन सवा सौ साल पहले स्पेनिश फ्लू के बाद इतने भयानक रूप में विश्व में फैली है तथा इसने भारत समेत दूसरे देशों के सामाजिक, आर्थिक तथा स्वास्थ्य ढांचे की सारी परतों को खोल कर रख दिया है। कोई माने या न माने आज विश्व का स्वास्थ्य तंत्र पूरी तरह से हिल चुका है तथा असमंजस में है कि इस महामारी से कैसे बाहर निकला जा सके, बावजूद इसके यह बीमारी काबू नहीं आ पा रही है। इतना ही नहीं यह बदले रूप में और भी भयानक लग रही है तथा रोजाना लाखों लोगों को अपनी चपेट में ले रही है। इस से भी बड़ी बात तो यह है कि विज्ञान में मेडिकल क्षेत्र के विशेषज्ञ करोना के बारे में किसी भी मुद्दे पर चाह कर भी एक मत नहीं हो पा रहे हैं और न ही कोई स्पष्ट स्टैंड ले पाने में सक्षम हैं, फिर चाहे करोना के फैलाव की बात हो, या फिर इसके इलाज का या इसके वैक्सीन की। बावजूद उक्त मतभेदों के सभी विशेषज्ञों की एक राय अवश्य है वह यह कि गर इस बीमारी से बचना है तो केवल और केवल इससे सावधान रहने में ही भलाई है, जैसे कि सोशल डिस्टेंट बना कर रखना, बार बार हाथ धोना, भीड़ वाली जगह पर मास्क पहनना आदि।
मगर आज का मेरा विषय इस सिलसिले में है कि जिस प्रकार करोना से बचने के लिए सावधानियां जरूरी हैं उसी प्रकार सामाजिक बुराइयां जो लोगों के मनों में घर कर चुकी हैं तथा लोगों का सामाजिक, मानसिक तथा धार्मिक शोषण कर रही हैं उन से कैसे बचा जा सके और इससे कैसे बाहर निकला जा सके।
करोना से बचाव के लिए लगाई गईं सामाजिक पाबंदीयां-जैसे विवाह शादियों पर कम भीड़ करना, भोग आदि पर केवल नजदीकी रिश्तेदारों को ही बुलाना आदि को गर हम अपने सामाजिक रीति रिवाज हिस्सा ही बना लें तो कितना अच्छा हो। पैसों की फिजूलखर्ची तथा समय की बर्बादी से बचने के साथ साथ इससे कई बीमारियों से भी बचा जा सकता है, जो आज साबित भी हो रहा है। करोना से बचाव के लिए बार बार हाथ धोने की सलाह दी जा रही है गर यह आदत सदा के लिए अपना ली जाये तो बहुत सारी अन्य बीमारियां जैसे दस्त, उल्टीयां, टायफायड, बुखार, अनीमिया, पीलिया समेत कई अन्य बीमारियों से सदा के लिए बच कर रहा जा सकता है। याद रखें कि बरसाती मौसम में दस्त, उल्टीयों से बचने तथा पेट के कीड़ों से बचने के लिए एक साल से अठारहां साल तक के बच्चों के लिए हर साल छ: महीने के अंतराल पर पेट के कीड़ों को मारने तथा खून की कमी न हो, दो गोलियां दी जा रही हैं साथ ही हाथ धोने की खास विधि भी समझाई जाती है जिस तरह अब कोरोना में हाथ धोने को कोरोना से बचाव के लिए जागरूक किया जा रहा है। इसी प्रकार कोरोना बचाव के लिए सोशल डिस्टैंस बनाने तथा भीड़ में मास्क पहनने को भी गर हम आदत बना लें तथा कई छूत की बीमारियों जिस में खास करके सांस लेने में होने वाली तकलीफ तथा चमड़ी की बीमारियों से सदा के लिए बचा जा सकता है।
गर उपरोक्त बातों पर गौर किया जाये तो इस नतीजे पर पहुंच सकते हैं कि जो कोरोना महामारी ने सिखाया है उसे पक्के तौर पर निजी तथा सामाजिक जीवन में अपना लेना चाहिए इतना ही नहीं सरकार को इस के बारे में पक्के कानून बना कर भीड़ पर रोक लगा कर फिजूलखर्ची, समय की बर्बादी से बचाना चाहिए साथ ही साथ सामाजिक संस्थाओं को भी आगे आ कर कि सरकार के साथ मिल कर कोरोना बीमारी के अलावा सामाजिक कुरीतियों से छुटकारा पाने में मदद करनी चाहिए। चुनाव के दौरान भीड़ इकट्ठी करके समय तथा फिजूलखर्ची की जगह चुनाव लड़ रहे नेताओं के टी वी डिबेट तथा कामों का हवाला दे कर चुनावी रैलियों तथा ध्वनि प्रदूषण पर स्थायी रोक लगानी चाहिए, तभी हमारे देश का विकास संभव है।