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मेरे देश में पैसे की नहीं बल्कि प्लानिंग की कमी है: डॉक्टर दलेर सिंह मुल्तानी, सिविल सर्जन (सेवानिवृत्त)

June 02, 2021 08:08 PM

जी हां इस में कोई दो राय नहीं कि हमारे देश में पैसा भरपूर है मगर इसे कहा लगाना है इसकी प्लानिंग की सदैव कमी रहती है यही वजह है कि हम वह नहीं कर पाते जो कर सकते हैं या जो करना चाहते हैं। दोस्तो आपने सुना होगा कि जिस घर में प्लानिंग नहीं होती उस का कुछ नही बनता और वह घर सदा गिरावट की ओर ही जाता है यानि उसकी कभी तरक्की नहीं होती। यही बात राज्य अथवा देश पर भी फिट बैठती है अर्थात जिस राज्य अथवा देश के प्रबंधकों की ओर से प्लानिंग नहीं की जाती वह यकीनन गिरावट की ओर चला जाता है। हमारा देश जो कभी सोने की चिड़ीया माना जाता था तथा कुछ सदीयों पहले हर क्षेत्र भले ही सामाजिक, धार्मिक, शिक्षा तथा ापसी भाईचारा या लोगों की खुशहाली लिए संसार में प्रसिद्ध था वही देश आज संसार के बहुत देशों से पिछड़ा हुआ है। उसका एक ही कारण है कि हमारे देश में उचित प्लानिंग का न होना। जैसे ही हमारा देश गुलामी की जंजीरों को त्याग कर स्वतंत्र हुआ तभी से ही हमारे देश के किसी भी क्षेत्र के उत्थान के लिए सही से प्लानिंग नहीं की गई फिर चाहे वह क्षेत्र  राजनीतिक हो, धार्मिक  हो या फिर सरकारी प्रशासन से संबंधित। इसका नतीजा यह निकला कि हमारा देश आज हर तरफ संसार के उन्नत देशों में पिछली कतार में खड़ा बगले झांक रहा है। बावजूद इस पतन के हमारे देश को चलाने वाले आज भी देश की प्रग्ति के लिए कोई प्लानिंग करने को तैयार नहीं हैं वे केवल वक्त को धक्का देते नजर आते हैं। सदैव पुराने युग  के घिसे पिटे सामाजिक तथा कुछ ना मानने योग्य धार्मिक धारणाओं को अमल में लाते रहते हैं इस से हमारा उन्नत देशों में मजाकअलग से बन रहा है।
आइये जरा राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक, सरकारी प्रबंध तथा माकूल वातावरण पर गौर करें, 74 वर्ष हो चले देश को आजाद हुए मगर हमारी राजनीति आज भी जाति, धर्म, रंग भेद, नसल,परिवारवाद और पैसे पर आधारित माहौल से बद से बदतर हो रही है। विभिन्न जुर्म करने वाले लोग राजनीति पर भारी  होते दिखाई दे रहे हैं। उस के ऊपर शिक्षा की कमी से गरीबी तथा बेहताशा बढ़ रही जनसंख्या सारे मिल कर लोकतंत्र को खत्म करने में लगे हैं। माननीय न्यायालयों ने कई कड़े आदेश दिये मगर जिद्दी और जुर्म पेशा नेताओं ने माननीय न्यायालय के आदेशों को लागू ही नहीं किया इतना ही नहीं संसद को बड़ी कोर्ट के चक्करों में डाल कर लोकतंत्र को तार तार करने में लगे हैं ऊपर से लोगों ने वोटों को जिम्मेवारी नहीं बल्कि एहसान समझ कर वोटों का भी शोषण कर दिया है।
धर्म जो कि जीवन जीने की एक कला होता है इसे जीवन सुखी तथा खुशहाल बनाने के लिए अपनाया जाता है मगर आज हो सब इसके विपरीत रहा है। धर्म को एक नरक और स्वर्ग वाली सीढ़ी बना दिया है और इसकी दिन रात पूजा होने लगी है। अपना वर्तमान अच्छे भविष्य की उम्मीद में नरक बना रहे हैं। यहां तक कि स्कूलों अस्पतालों की संख्या को पीछे छोड़ कर धार्मिक स्थानों की संख्या कहीं आगे ले गये हैं तथा जानते समझते हुए मौजूदा समय में भरपूर पैसे की बर्बादी कर रहे हैं। मैं यह नही कहना चाहता कि धर्म को न मानों पर इस को जीवन की कला बनाओ तथा नाक रगड़ने तथा कट्टरता से दूर हटो।
 समाज में एक दूसरे से हमदर्दी करो ताकि अमन शांति बनी रही, लोग मिल जुल कर रहें तथा एक दूसरे के दुख सुख में काम आये जैसे कि मौजूदा कोरोना संकट के काल में कुछ हद तक आ रहे हैं। जो भारत की सभ्यता थी उसे आज के राजनेताओं तथा धार्मिक नेताओं ने भुला दिया है और सभी रिश्ते नाते तुड़वा दिये हैं तथा लोग आपसी भाईचारे सांझ को छोड़ कर मतलबी बन इकलौते वाली दुख भरी निराशापूर्ण जिंदगी जीने को मजबूर हैं।
सरकारी तंत्र की बात करें तो कोई भी सरकारी अदारा या अफसर अथवा कर्मचारी अपनी जिम्मेवारी को निभाने को तैयार नहीं है और न ही उस जिम्मेवारी को अपने ऊपर लेने को तैयार है जो उसकी ही बनती है उल्टा अपनी जिम्मेवारी से भाग कर रिश्वत को अपनाने में लगे हैं और स्वंय तथा अपने लोगों और फिर पूरे देश को अंधकार में धकेल रहे हैं। आप सब इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि आज क्या कोई सरकारी कार्यालयों में जाने को तैयार है? सब को पता है वहां क्या होता है। मजबूरी में हर किसी को वहां जाना पड़ता है। सरकारी योजनाओं तथा सरकारी विभागों का दिवाला निकला हुआ है इन्हें कार्पोरेट घरानों ने निगल लिया है, जो ये चाहते हैं वही योजनाएं बनती हैं। जबकि दूसरी ओर लोग सड़कों के किनारे धरनों पर बैठे अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ते रह जाते हैं यह सब तभी होता है जब हमारे सरकारी बाबू और राजनेताओं की प्लानिंग की कमी होती है।
अंतत: गर हम पर्यावरण संरक्षण की बात करें तो दुख होता है यह सोच कर कि किस प्रकार हमने अपना कुदरती पर्यावरण स्वयं नरक बना दिया है।  पर्यावरण से छेड़छाड़ करके अपने स्वार्थ हितों के लिए पेड़ों को काट काट कर मिटाने में लगे हैं, कुदरती नदीयों नालों को खत्म करने में लगे हैं, पानी को खाद कीट नाशकों के जरिए गंदा करके आज कैंसर, कोरोना, उच्च रक्तचाप, शूगर, मानसिक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं इसका असर हमारी पीढ़ी पर तो पड़ ही रहा है साथ में हम उन जन्म लेने वाली अगली पीढ़ी के लिए नरक संजो कर जा रहे हैं।
मैं उम्मीद करता हूं कि राजनेता और आमजनता अपने भविष्य की चिंता करते हुए जाति, धर्म, रंग, नसल तथा स्वार्थ से ऊपर उठ कर ईमानदारी तथा लोक हित में प्लानिंग करके देश को फिर से खुशहाल तथा सोने की चिड़िया वाली सभ्यता से रू ब रू करायेंगे और पहले की भांति बुलंदियों तक पहुंचायेंगे।

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